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दक्षिण चीन सागर और भारत का दृष्टिकोण

संदर्भ 

हाल ही में, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने फिलीपींस यात्रा के दौरान फिलीपींस की राष्ट्रीय संप्रभुता के प्रति भारत का पूर्ण समर्थन व्यक्त किया। यह टिप्पणी फिलीपींस एवं चीन के बीच जारी दक्षिण चीन सागर या पश्चिम फिलीपींस सागर विवाद के बीच की गई थी। 

दक्षिण चीन सागर के प्रति भारत की नीति

  • तटस्थ नीति से अलगाव : वर्ष 2023 में इस क्षेत्र में लगातार तनाव व राजनयिक संघर्ष देखा गया। भारतीय विदेश मंत्री की दक्षिण चीन सागर के संबंध में हालिया टिप्पणी भारत की पूर्व में अधिक सतर्क एवं तटस्थ स्थिति से अलगाव का संकेत देती है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के पालन पर जोर : इसी वर्ष भारत एवं फिलीपींस के एक संयुक्त बयान में भी चीन से नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था का पालन करने और फिलीपींस के पक्ष में वर्ष 2016 के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को स्वीकारने का आह्वान किया गया था। 
  • रणनीतिक व आर्थिक आकांक्षा : हाल के वर्षों में दक्षिण चीन सागर पर भारत के दृष्टिकोण में काफी बदलाव आया है। यह बदलाव दक्षिण चीन सागर में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून, संप्रभुता एवं संप्रभु अधिकारों के समर्थन में अधिक स्पष्टता से वैश्विक मंच पर इसकी रणनीतिक व आर्थिक आकांक्षाओं का प्रतिबिंबि है। 

    गतिशील दृष्टिकोण

    • प्रारंभिक आर्थिक दृष्टिकोण : इस क्षेत्र के साथ भारत की भागीदारी प्रारंभ में ‘पूर्व की ओर देखो नीति (Look East Policy)’ के अनुरूप मुख्यत: आर्थिक क्षेत्र में केंद्रित थी। 
      • इसका उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ आर्थिक एकीकरण को बढ़ाना और अपनी वृद्धिशील अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए ऊर्जा संसाधनों को सुरक्षित करना था। 
    • आर्थिक स्वतंत्रता पर जोर : वियतनाम के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) और तेल एवं गैस अन्वेषण परियोजनाओं में भारत के स्वामित्व वाले उद्यमों, जैसे- ओएनजीसी विदेश की भागीदारी भारत के आर्थिक अवसर का प्रतीक है।
      • यह संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय के अनुसार समुद्री संसाधनों के अन्वेषण एवं दोहन की स्वतंत्रता के सिद्धांत के लिए भारत का समर्थन भी है।
    • रणनीतिक दृष्टिकोण की ओर झुकाव : लुक ईस्ट से एक्ट ईस्ट की ओर भारत की नीति परिवर्तन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ अधिक रणनीतिक व सक्रिय जुड़ाव को चिह्नित किया है।
    • बहुआयामी विदेश नीति दृष्टिकोण : यह बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के प्रति भारत की स्वीकार्यता और एक्ट ईस्ट नीति के साथ अधिक सक्रिय एवं बहुआयामी विदेश नीति की आवश्यकता को दर्शाता है। 
      • इसमें न केवल आर्थिक एकीकरण बल्कि वियतनाम सहित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों- फिलीपींस, मलेशिया एवं सिंगापुर के साथ रणनीतिक साझेदारी व विस्तारित सुरक्षा सहयोग पर भी बल दिया गया है। 
    • क्षमताओं पर ध्यान : भारत ने मिशन-आधारित तैनाती, सुदृढ़ समुद्री डोमेन जागरूकता एवं गहरे पानी की समुद्री सुविधाओं के माध्यम से अपनी क्षमताओं को भी मजबूत किया है।

चीन के साथ भारत के जटिल संबंध 

  • क्षेत्रीय दावें एवं सैन्यीकरण : दक्षिण चीन सागर में भू-राजनीतिक तनाव लगातार बढ़ने के साथ विशेष रूप से चीन के मुखर क्षेत्रीय दावों और सैन्यीकरण प्रयासों के कारण भारत का रुख अधिक संवेदनशील हो गया है। 
    • दक्षिण चीन सागर एवं भारत की स्थलीय सीमा को लेकर चीन के आक्रामक दृष्टिकोण व क्षेत्रीय दावों का क्षेत्रीय स्थिरता पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • सीमा विवाद एवं गलवान संघर्ष : दक्षिण चीन सागर पर भारत के वर्तमान दृष्टिकोण को चीन के साथ उसके जटिल संबंधों से अलग करके नहीं देखा जा सकता है। दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक सीमा विवाद वर्ष 2020 की गलवान घाटी घटना के बाद से तेज हो गया है। 
    • इन विवादों में चीन द्वारा भारतीय क्षेत्र में समय-समय पर घुसपैठ और अरुणाचल प्रदेश में भारतीय गांवों के नाम में परिवर्तन भी शामिल है।
    • गलवान घाटी की घटना के बाद भारत ने क्षमता प्रदर्शन एवं संयुक्त अभ्यास के लिए दक्षिण चीन सागर में युद्धपोत भी भेजा है।
  • भारत की प्रतिक्रिया : नियमित नौसैनिक अभ्यास और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ सैन्य सहयोग को मजबूत करने सहित भारत का रणनीतिक जुड़ाव दोहरे उद्देश्यों की पूर्ति करता है :
    • क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता 
    • चीन के गैरकानूनी दावों के जवाब में कार्यवाही

     आसियान कारक

    • चीन सागर का महत्त्व : भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण में बदलाव क्षेत्रीय सुरक्षा एवं वैश्विक समुद्री व्यवस्था के लिए दक्षिण चीन सागर के महत्व से प्रेरित है। दक्षिण चीन सागर में विवाद का प्रभाव नेविगेशन एवं ओवरफ़्लाइट की स्वतंत्रता पर पड़ता है।
      • ये सिद्धांत भारत सहित विश्व के सभी देशों के व्यापार एवं ऊर्जा परिवहन मार्गों के लिए महत्वपूर्ण हैं। 
    • दृष्टिकोण स्पष्टता : हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक जिम्मेदार हितधारक के रूप में भारत अब महत्वपूर्ण मामलों पर स्पष्ट रुख अपनाता है। इसकी परिधि अब केवल हिंद महासागर नहीं है बल्कि व्यापक समुद्री क्षेत्र भी है। 
    • आसियान का महत्त्व : भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति में आसियान की केंद्रीय भूमिका भी भारत के लिए आसियान की स्थिति को मजबूत करना अनिवार्य बनाती है। 
      • हालाँकि, क्षेत्रीय समूह के भीतर मतभेद ऐसे प्रयासों के लिए चुनौती बने हुए हैं।

निष्कर्ष

भारत का नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यवस्था पर बल क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालने वाली एकतरफा कार्रवाइयों के खिलाफ रुख को दर्शाता है। यह रुख भारत के सैद्धांतिक विदेश नीति दृष्टिकोण में निहित है। यह क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध एक जिम्मेदार हितधारक के रूप में भारत की स्थिति को दर्शाता है। दक्षिण चीन सागर में भारत के वर्तमान दृष्टिकोण का लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता व अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान को बनाए रखने के सामूहिक प्रयास में योगदान करते हुए अपने हितों की रक्षा करना है।

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