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दिल्ली में दोहरे शासन की दुविधा

(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन-संविधान, राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारतीय संविधान- विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान, संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ)

संदर्भ

विगत वर्ष राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 पारित किया गया था। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 में संशोधन करता है। यह संशोधन दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल की शक्तियों के मध्य टकराव के कई बिंदुओं की स्पष्ट तौर पर व्याख्या करने के लिये किया गया। साथ ही, हाल ही में राष्ट्रपति ने ‘दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2022 को मंजूरी दे दी है। ऐसी स्थिति में दिल्ली में दोहरे शासन की समस्या पुन: चर्चा के केंद्र में है।

दिल्ली में दोहरे शासन की दुविधा

  • संविधान की अनुसूची 1 के तहत दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त है। संविधान (69वां संशोधन) अधिनियम, 1991 द्वारा अनुच्छेद 239AA के तहत इसे 'राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र' (National Capital Territory : NCT) कहा जाता है।
  • इसने दिल्ली में निर्वाचित मंत्रिपरिषद् और केंद्र सरकार के बीच संबंधों की गतिशीलता को गंभीर संकट में डाल दिया है। इस संशोधन अधिनियम के तहत ही उपराज्यपाल (L-G) को दिल्ली के प्रशासक के रूप में नामित किया गया था।
  • हालिया वर्षों में उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के मध्य कई मुद्दों पर विवाद की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है, जिसमें भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, सिविल सेवा और बिजली बोर्ड जैसी एजेंसियों पर नियंत्रण शामिल है। 
  • दिल्ली में लोक अभियोजक की नियुक्ति की शक्ति और जाँच आयोग अधिनियम के तहत एक जाँच आयोग नियुक्त करने की शक्ति आदि से संबंधित विवादस्पद कानूनी मुद्दों के कारण संवैधानिक पहलुओं की समीक्षा करने की आवश्यकता है।

संशोधन विधेयक 2021 के प्रमुख प्रावधान 

  • यह अधिनियम वर्ष 1991 के अधिनियम की धारा 21, 24, 33 तथा 44 में संशोधन करता है। इसके तहत दिल्ली में 'सरकार' शब्द का आशय 'उपराज्यपाल' से होगा। साथ ही, इसके अंतर्गत उपराज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का विस्तार किया गया है एवं उपराज्यपाल को उन मामलों में भी और अधिक विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, जिन पर कानून बनाने का अधिकार विधानसभा के पास है।
  • यह विधेयक सुनिश्चित करता है कि मंत्रिपरिषद (या दिल्ली मंत्रिमंडल) द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय को लागू करने से पहले उपराज्यपाल की राय आवश्यक रूप से ली जाएगी। 
  • विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि उक्त विधेयक विधानसभा और कार्यपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों का संवर्द्धन करेगा। साथ ही, निर्वाचित सरकार एवं उपराज्यपाल के उत्तरदायित्वों को दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के शासन की संवैधानिक योजना के अनुरूप परिभाषित करेगा। 

न्यायालय का निर्णय 

  • उल्लेखनीय है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दिल्ली की स्थिति पर भरोसा करते हुए केंद्र सरकार के पक्ष में फैसला किया है।
  • एन.सी.टी. की अपील पर सर्वोच्च न्यायालय ने इससे संबंधित मामले को संविधान पीठ को संदर्भित कर दिया ताकि निर्वाचित सरकार तथा उपराज्यपाल के मध्य शक्तियों से संबंधित कानून के महत्वपूर्ण प्रश्नों पर निर्णय लिया जा सके। 
  • पाँच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने उद्देश्यपूर्ण निर्माण के नियम को लागू कर एन.सी.टी. के प्रशासन के संदर्भ में एक नया न्यायशास्त्रीय अध्याय शामिल किया, जिसमें कहा गया है कि 69वां संविधान संशोधन अधिनियम के पीछे का उद्देश्य अनुच्छेद 239AA की व्याख्या का मार्गदर्शन करेंगे और अनुच्छेद 239AA में संघवाद और लोकतंत्र के सिद्धांतों को समाहित करेंगे। इससे अन्य केंद्र शासित प्रदेशों से अलग एन.सी.टी. को एक नया दर्जा देने की संसदीय भावना का पता चलता है।

दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2022

  • इसके अंतर्गत पहले से दिल्ली के तीन उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी नगर निगम को आपस में विलय कर दिया जाएगा। तीनों निगमों के एक में विलय हो जाने के बाद इसे ‘दिल्ली नगर निगम’ कहा जाएगा। केंद्र सरकार निगम के कार्यों का निर्वहन करने के लिये एक विशेष अधिकारी नियुक्त करेगी।
  • तीनों निगमों की नीतियां अलग-अलग हैं। इस कारण एक ही शहर में तीनों निगमों के अलग-अलग कार्यविधि हैं। तीनों निगमों की अलग-अलग कार्यविधि होने के कारण निगमों के बीच आपसी समन्वय सही तरीके से नहीं हो पाया। इसमें दो नगर निगम तो वित्तीय रूप से काफी कमजोर हैं।
  • वर्ष 2011 में दिल्ली विधानसभा ने दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में विभाजित कर दिया था। विदित है कि तीनों निगमों के विलय का विधेयक केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद-239AA के तहत प्राप्त अधिकार के माध्यम से लाया गया था।

उपराज्यपाल की शक्ति 

  • न्यायालय के अनुसार, किसी मामले को अंतिम निर्णय के लिये राष्ट्रपति को संदर्भित करने के अतिरिक्त उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद की ‘सहायता और सलाह’ से कार्य करना चाहिये। साथ ही, दिल्ली विधानसभा के पास समवर्ती सूची के सभी विषयों और राज्य सूची के तीन विषयों को छोड़कर अन्य सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है।
  • किसी मामले को राष्ट्रपति को संदर्भित करने की उपराज्यपाल की शक्ति के संदर्भ में उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच मतभेद होने की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि ‘किसी भी मामले’ का अर्थ ‘प्रत्येक मामला’ नहीं हो सकता है और इस तरह का संदर्भ केवल असाधारण परिस्थितियों में उत्पन्न होगा। 
  • उपराज्यपाल, निर्वाचित मंत्रिपरिषद के विरोधी के रूप में कार्य करने के बजाए एक समन्वयक के रूप में कार्य करेंगे। साथ ही, न्यायालय ने निर्णय दिया कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को संवैधानिक योजना के तहत राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।

सेवाओं के संदर्भ में निर्णय

  • संविधान पीठ द्वारा शामिल व्यापक मुद्दों पर कानून निर्धारित किये जाने के बाद विवादित प्रश्नों को दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से निर्णय दिया कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो केंद्र के क्षेत्राधिकार से संबंधित है, जबकि विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत विद्युत बोर्ड एन.सी.टी. सरकार के अंतर्गत उपयुक्त प्राधिकरण है।
  • कुछ सेवाओं के संबंध में विभिन्न न्यायाधीशों के अलग-अलग मत थे। एक मत के अनुसार 1952 अधिनियम के तहत केवल केंद्र सरकार के पास जाँच आयोग का गठन करने की शक्ति है, जबकि लोक अभियोजक नियुक्त करने की शक्ति एन.सी.टी. सरकार में निहित है। 

निष्कर्ष

दिल्ली राजधानी राज्य क्षेत्र को अन्य केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में कुछ विशेषाधिकार प्रदान किये गए हैं। हालाँकि, यहाँ राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल तथा निर्वाचित सरकार के मध्य क्षेत्राधिकार को लेकर प्राय: मतभेद की स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार की सलाह से कार्य करते हुए एक समन्वयक की भूमिका निभानी चाहिये।

दिल्ली से संबंधित प्रमुख तथ्य

  • 69वें संविधान संशोधन, 1991 के द्वारा दिल्ली को दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र घोषित किया गया। साथ ही, दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिये 70 सदस्यीय विधानसभा और सदस्यों के 10% मंत्रिपरिषद का प्रावधान किया गया। 
  • वर्ष 1991 के संविधान संशोधन के पश्चात् दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र के लिये अनुच्छेद-239(AA) और अनुच्छेद-239(AB) लागू किया गया। 
  • अनुच्छेद-239(AA) के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल को अन्य राज्यपालों की तुलना में अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। अन्य राज्यों की तरह दिल्ली सरकार को पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि संबंधी अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
  • अनुच्छेद-239(AB) की शक्तियाँ राष्ट्रपति शासन की स्थिति में लागू होती है। राष्ट्रपति शासन की स्थिति में निर्णय लेने का अधिकार उपराज्यपाल को होगा।
  • उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के अतिरिक्त सभी केंद्र शासित प्रदेशों में अनुच्छेद-239 लागू होता है।

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