यह एक स्वदेशी 155 मिमी x 52 कैलिबर हॉवित्ज़र तोप है, जिसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया गया है। हॉवित्ज़र लंबी दूरी की तोपों को संदर्भित करता है।
डी.आर.डी.ओ. द्वारा इस परियोजना की शुरुआत वर्ष 2013 में भारतीय सेना में शामिल पुरानी तोपों को आधुनिक 155 मिमी. आर्टिलरी गन से बदलने के लिये की गई थी। इसका उपयोग पारंपरिक ब्रिटिश मूल के '25 पाउंडर्स' आर्टिलरी गन के साथ किया गया था।
लाल किले में स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान आज़ादी के बाद 75 वर्षों में पहली बार तिरंगे को दी जाने वाली 21 तोपों की सलामी में स्वदेशी आर्टिलरी गन का उपयोग किया गया।
भारत को यह परंपरा ब्रिटिश शासकों से विरासत में मिली, जिन्हें पदानुक्रम के आधार पर 101, 31 और 21 तोपों की सलामी दी जाती थी। भारत में गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और अन्य अवसरों के साथ-साथ राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह के समय भी तोपों की सलामी दी जाती है।