‘एक्वामेशन’ या ‘क्षारीय हाइड्रोलिसिस’ की प्रक्रिया में मृतक के शरीर को जल तथा अत्यधिक क्षारीय मिश्रण से युक्त एक दाबानुकूलित धात्विक सिलेंडर में कुछ घंटों के लिये डुबोया जाता है, जिसे लगभग 150 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तक गर्म किया जाता है।
इसमें अग्नि से पाँच गुना कम ऊर्जा का उपयोग होता है। यह दाह संस्कार के दौरान उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को लगभग 35% कम कर देता है।
हल्का जल प्रवाह, तापमान और क्षारीयता का उच्च संयोजन कार्बनिक पदार्थों के विघटन में मदद करता है। इस प्रक्रिया में हड्डियों के अवशेष तथा तटस्थ तरल का बहिःस्राव होता है। इस विसंक्रमित बहिःस्राव में लवण, शर्करा, अमीनो अम्ल और पेप्टाइड होते हैं। प्रक्रिया के पूर्ण होने पर इसमें कोई ऊतक या डी.एन.ए. पदार्थ शेष नहीं बचता है।
अंत में इस अपशिष्ट को दूसरे अपशिष्ट जल के साथ बहा दिया जाता है। इसे जल दाह संस्कार, हरित दाह संस्कार या रासायनिक दाह संस्कार के रूप में भी जाना जाता है। यह मृत शरीर को विनष्ट करने का पर्यावरण अनुकूल तरीका है।
इस प्रक्रिया को वर्ष 1888 में अमोस हर्बर्ट हैनसन द्वारा विकसित और पेटेंट कराया गया था।