शॉर्ट न्यूज़: 15 अप्रैल, 2022
एंटी-आर्मर लोइटर एम्युनिशन
हेलिना मिसाइल
एंटी-आर्मर लोइटर एम्युनिशन
चर्चा में क्यों
हाल ही में, भारत ने लद्दाख के नुब्रा घाटी क्षेत्र में 'मेड इन इंडिया' अभियान के तहत नव विकसित तीन लोइटरिंग म्युनिशन (LM0, LM1 और Hexacopter) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
वर्तमान प्रस्ताव
- सेना ने कनस्तर से दागे जाने वाले एंटी-आर्मर लोइटर एम्युनिशन (Canister Launched Anti-Armour Loiter Ammunition : CALM) के लिये एक सूचना अनुरोध (Request for Information : RFI) जारी किया है।
- आर.एफ.आई. के अनुसार, मैदानी और रेगिस्तानी क्षेत्रों में यह प्रणाली 0 0C से 45 0C तापमान के बीच काम करने में सक्षम होनी चाहिये, जबकि अधिक ऊंचाई वाले स्थानों में यह -15 0C से -40 0C के बीच कार्यक्षम होनी चाहिये।
- इसका प्रयोग मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री इकाइयों द्वारा दिन व रात्रि में वास्तविक समय में दृष्टि से परे लक्ष्यों, दृश्य सीमा से परे बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों और अन्य स्थल आधारित हथियार प्लेटफार्मों की निगरानी के लिये किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- लोइटरिंग म्युनिशन हथियार प्रणालियों की एक श्रेणी है, जिसका मुख्य तत्व वारहेड युक्त एक मानव रहित प्लेटफार्म है। सरल शब्दों में, ये सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल और ड्रोन का संयोजन है।
- सी.ए.एल.एम. प्रणाली लोइटर एम्युनिशन या ड्रोन से युक्त एक प्री-लोडेड कनस्तर है, जिसे एक बार दागने के बाद संचालन वाले क्षेत्र (Area of Operation) में कुछ समय के लिये हवा में रखा जा सकता है और लक्ष्य के दिखाई देने पर उसे नष्ट करने के लिये निर्देशित किया जा सकता है।
- प्राय: लोइटर एम्युनिशन में एक कैमरा लगा होता है जिसका उपयोग ऑपरेटर द्वारा संचालन वाले क्षेत्र में देखने और लक्ष्य को चुनने के लिये किया जा सकता है।
- इन म्युनिशन के भी विभिन्न रूप हैं जिन्हें किसी लक्ष्य पर लक्षित न किये जाने की स्थिति में पुन: प्राप्त और पुन: उपयोग किया जा सकता है। ।
प्रयोग
- भारतीय सेना द्वारा इसका प्रयोग देश के मैदानी और पश्चिमी रेगिस्तानी क्षेत्रों के साथ-साथ उत्तरी सीमा पर लद्दाख में ऊंचाई वाले स्थानों पर किया जा सकता है।
- वर्ष 2021 में अज़रबैजान की सेनाओं ने इजराइल से प्राप्त इस प्रणाली का प्रयोग आर्मेनिया-अज़रबैजान संघर्ष में बहुत प्रभावी ढंग किया गया था।
- ऐसा माना जा रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में इस प्रणाली का व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जा रहा है।
हेलिना मिसाइल
चर्चा में क्यों
11 अप्रैल, 2022 को राजस्थान के पोखरण में स्वदेश में विकसित उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (ALH) से टैंक-रोधी निर्देशित मिसाइल (ATGM) ‘हेलिना’ का सफल परीक्षण किया गया।
हेलिना मिसाइल : प्रमुख बिंदु
- इसको ‘इन्फ्रारेड इमेजिंग सीकर’ (IIR) द्वारा निर्देशित किया गया, जो लॉन्च से पहले लॉक ऑन मोड में कार्य करती है।
- हेलिना को रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला, हैदराबाद ने डी.आर.डी.ओ. के ‘मिसाइल और सामरिक प्रणाली’ (MSS) क्लस्टर के तहत विकसित किया गया है।
- इसकी अधिकतम रेंज सात किमी. है और इसे थल एवं वायु सेना दोनों में हेलिकॉप्टरों के साथ एकीकृत करने के लिये विकसित किया गया है। हेलिना के वायु सेना संस्करण को ध्रुवास्त्र (Dhruvastra) भी कहते है ।
- हेलिना मिसाइल प्रणाली सभी मौसम में दिन व रात्रि के समय संचालन में सक्षम है और ये पारंपरिक बख्तरबंद और विस्फोटक प्रतिक्रियाशील बख्तरबंद वाले युद्धक टैंक को लक्ष्य बना सकती है।
- हेलिना, डायरेक्ट हिट मोड (Direct Hit Mode) के साथ-साथ टॉप अटैक मोड (Top Attack Mode) दोनों तरीके से लक्ष्य को भेद सकती है।
अन्य प्रमुख एंटी टैंक मिसाइल
डी.आर.डी.ओ. द्वारा डिजाइन और विकसित अन्य प्रमुख टैंक रोधी मिसाइल प्रौद्योगिकियां इस प्रकार हैं-
- नाग- तीसरी पीढ़ी की ‘दागो और भूल जाओ’ (Fire and Forgot) सिद्धांत पर आधारित।
- हेलिना मैन-पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल- 2.5 किमी. रेंज वाली ‘दागो और भूल जाओ’ सिद्धांत पर आधारित मिसाइल।
- स्मार्ट स्टैंड-ऑफ एंटी-टैंक (SANT) मिसाइल- वायु सेना के एंटी-टैंक ऑपरेशन के लिये एम.आई.-35 (Mi-35) हेलीकॉप्टर से लॉन्च करने के लिये विकसित किया जा रहा।
- मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन के लिये एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल- लेजर-निर्देशित और सटीक-निर्देशित म्युनिशन मिसाइल।