शॉर्ट न्यूज़: 22 मार्च, 2022
परमाणु अपशिष्ट के भंडारण का विरोध
भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम
चेयर ऑफ एक्सीलेंस
चंद्रमा पर ऑन-साइट जल का साक्ष्य
परमाणु अपशिष्ट के भंडारण का विरोध
चर्चा में क्यों
हाल ही में, कुडनकुलम ग्राम पंचायत ने कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना (के.के.एन.पी.पी) साइट पर परमाणु अपशिष्ट के भंडारण के लिये 'अवे फ्रॉम रिएक्टर' (AFR) सुविधा के निर्माण को रोकने के उद्देश्य से एक प्रस्ताव जारी किया है।
प्रमुख बिंदु
- इस क्षेत्र में रेडियोधर्मी परमाणु ईंधन अपशिष्ट के भंडारण को पर्यावरण के लिये गंभीर खतरा बताते हुए ग्राम पंचायत के सभी 15 वार्ड सदस्यों ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया है।
- इस रेडियोधर्मी अपशिष्ट को भूमि से 15 मीटर नीचे दबाया जाएगा, जिससे भूमि के नीचे रेडियोधर्मिता के फैलने से भूजल के दूषित होने की समस्या उत्पन्न होगी। यह पीने के पानी के साथ- साथ सिंचाई के लिये भी संकट उत्पन्न करेगा।
कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना
- भारत के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा केंद्रों में से एक कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र तमिलनाडु के तिरुनेलवेली ज़िले के कुडनकुलम में स्थित है। इस संयंत्र का निर्माण रूस के सहयोग से किया जा रहा है।
- इस परियोजना के तहत वर्तमान में 1,000 मेगावाट के दो परमाणु रिएक्टरों का संचालन किया जा रहा है। इसके अलावा समान क्षमता वाले चार और रिएक्टरों का निर्माण कार्य भी प्रगति पर है।
भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम
चर्चा में क्यों
हाल ही में, भारत और जापान ने नई दिल्ली में भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम की छठी संयुक्त बैठक का आयोजन किया।
प्रमुख बिंदु
- इस बैठक में दोनों पक्षों ने जलविद्युत, संपर्क, वन प्रबंधन, कौशल विकास, जल आपूर्ति और सीवेज, तथा जापानी भाषा में शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में चल रही परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा की और सहयोग के संभावित नए क्षेत्रों पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया।
- भारत की 'एक्ट ईस्ट नीति' और जापान की 'फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक' विजन के तहत, यह फोरम भारत और जापान को उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में सहयोग करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- इस फोरम की स्थापना के लिये वर्ष 2017 में भारत एवं जापान के मध्य एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- यह फोरम भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक आधुनिकीकरण के लिये विशिष्ट परियोजनाओं जैसे- कनेक्टिविटी, विकासात्मक बुनियादी ढाँचे, औद्योगिक संपर्क और पर्यटन, संस्कृति और खेल से संबंधित गतिविधियों की पहचान करता है।
एक्ट ईस्ट नीति:
- इस नीति को वर्ष 2014 में म्यांमार में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान शुरू किया गया था। यह नीति मुख्य रूप से दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है।
- आर्थिक और सुरक्षा एकीकरण पर ध्यान देने के उद्देश्य से शुरू यह नीति ‘लुक ईस्ट नीति’ का संशोधित एवं अग्र सक्रिय रूप माना जाता है।
चेयर ऑफ एक्सीलेंस
चर्चा में क्यों
हाल ही में, भूतपूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सी.डी.एस.) जनरल बिपिन रावत की स्मृति में भारतीय सेना ने चेयर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना की है।
प्रमुख बिंदु
- प्रस्तावित चेयर ऑफ एक्सीलेंस का मुख्य उद्देश्य सशस्त्र बलों से संबंधित रणनीतिक मुद्दों पर शोध करना है।
- यह तीनों सेनाओं के पूर्व सैनिकों और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सैन्य मामलों के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले नागरिकों के लिये खुली रहेगी।
- इस वर्ष के शोध के लिये चुना गया विषय ‘भारत में भूमि युद्ध के संदर्भ में संयुक्तता और एकीकरण’ (jointness and integration in the context of land warfare in India) है। उम्मीदवारों का चयन यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के द्वारा किया जाएगा, जिसकी अवधि प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई से 30 जून तक होगी।
- विदित है कि जनरल रावत की मृत्यु तमिलनाडु के नीलगिरी में एक विमान दुर्घटना में हो गई थी, जिन्होंने भारत के पहले सी.डी.एस. के साथ-साथ 27वें सेना प्रमुख के रूप में भी कार्य किया था।
चंद्रमा पर ऑन-साइट जल का साक्ष्य
चर्चा में क्यों
चीन के चांग'ई-5 (Chang'e-5) लूनर लैंडर ने चंद्रमा की सतह पर जल का पहला ऑन-साइट साक्ष्य (लैंडिंग साइट पर) खोजा है। यह चंद्रमा के सूखने का भी नवीनतम साक्ष्य है।
चंद्रमा पर जल की उपलब्धता
- ‘साइंस एडवांस’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, लैंडिंग साइट पर चंद्रमा की मृदा में 120 भाग-प्रति-मिलियन (ppm) से कम जल पाया गया है, जबकि हल्की वेसिकुलर चट्टान में 180 पी.पी.एम. जल मौजूद है। यह पृथ्वी की तुलना में अत्यंत शुष्क स्थिति है।
- उल्लेखनीय है कि रिमोट ऑब्जर्वेशन से चंद्रमा पर जल की मौजूदगी की पुष्टि हो चुकी है किंतु अब लैंडर पर लगे एक उपकरण ने रेजोलिथ और चट्टान के वर्णक्रमीय परावर्तन को मापकर पहली बार ऑन-साइट जल का पता लगाया।
- शोधकर्ताओं के अनुसार जल के अणु या हाइड्रॉक्सिल लगभग तीन माइक्रोमीटर की आवृत्ति पर अवशोषित होते हैं, जिससे जल की मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है।
- वस्तुतः चंद्रमा की मृदा की आर्द्रता में सर्वाधिक योगदान सौर पवनों का है क्योंकि ये हाइड्रोजन का वाहक होने के कारण जल के निर्माण में उत्तरदायी होती हैं। संभवत: चंद्रमा के मेंटल जलाशय के विलुप्त होने के कारण यह एक निश्चित अवधि के भीतर सूख गया था।
महत्ता
- विदित है कि चांग'ई-5 अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर मध्य-उच्च अक्षांश में स्थित सबसे नवीनतम बेसाल्ट सतह में से एक पर उतरकर उसका नमूना लिया। यह नमूना सतह और नीचे की परतों के रवों का मिश्रण हैं। जबकि स्व-स्थाने परीक्षण चंद्रमा की सतह की सबसे बाह्य परत का ही परीक्षण कर सकती है।
- चंद्रमा पर जल भंडार संबंधी अध्ययन चांग'ई-6 और चांग'ई-7 मिशनों के लिये महत्त्वपूर्ण होने के साथ-साथ मानवयुक्त चंद्र स्टेशनों के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।