शॉर्ट न्यूज़: 23 अगस्त, 2022
खरीफ फसलों के लिये एम.एस.पी.
भारत-ऑस्ट्रेलिया जल सुरक्षा पहल
खरीफ फसलों के लिये एम.एस.पी.
चर्चा में क्यों
हाल ही में, आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने विपणन वर्ष 2022-23 के लिये सभी अधिदेशित खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि को मंजूरी दी है।
विपणन मौसम 2022-23 के लिये महत्त्वपूर्ण खरीफ
फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (₹ प्रति क्विंटल)
फसल
|
एम.एस.पी. (2021-22)
|
एम.एस.पी. (2022-23)
|
धान (सामान्य)
|
1940
|
2040
|
धान (ग्रेड ए)
|
1960
|
2060
|
ज्वार (हाईब्रीड)
|
2738
|
2970
|
बाजरा
|
2250
|
2350
|
रागी
|
3377
|
3578
|
मक्का
|
1870
|
1962
|
तूर (अरहर)
|
6300
|
6600
|
मूंग
|
7275
|
7755
|
उड़द
|
6300
|
6600
|
मूंगफली
|
5550
|
5850
|
सूरजमुखी बीज
|
6015
|
6400
|
तिल
|
7307
|
7830
|
प्रमुख बिंदु
- विगत वर्ष की तुलना में एम.एस.पी. में सर्वाधिक वृद्धि तिल (523 रुपए प्रति क्विंटल) में हुई है। इसके बाद मूंग (480 रुपए प्रति क्विंटल), सूरजमुखी के बीज (385 रुपए प्रति क्विंटल) और अरहर, उड़द व मूंगफली में 300 रुपए प्रति क्विंटल वृद्धि की सिफारिश की गई है।
- बाजरा, तूर, उडद का एम.एस.पी. पर लाभ अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत का क्रमश: 85%, 60% और 59% हैं।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021-22 के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार देश में खाद्यान्न का उत्पादन रिकॉर्ड 314.51 मिलियन टन होने का अनुमान है जो कि 2020-21 के खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 3.77 मिलियन टन अधिक है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया जल सुरक्षा पहल
चर्चा में क्यों
हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ऑस्ट्रेलिया-भारत जल सुरक्षा पहल (AIWASI) के लिये तकनीकी सहयोग पर भारत तथा ऑस्ट्रेलिया के मध्य एक समझौता ज्ञापन (MoU) को मंजूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- ए.आई.डब्ल्यू.ए.एस.आई. ऑस्ट्रेलिया के विदेश मामले एवं व्यापार विभाग (DFAT) की दक्षिण एशिया जल सुरक्षा पहल (SAWASI) के तहत एक परियोजना है।
- इसका उद्देश्य जल संवेदनशील शहर विजन की दिशा में कार्य करना है जो एकीकृत जल चक्र के समग्र प्रबंधन पर आधारित है। यह भारत के जल प्रशासन को मजबूत करेगा और निवेश प्रदान करेगा।
समझौते के उद्देश्य
- शहरी जल प्रबंधन के लिये सभी स्तरों पर संस्थागत क्षमताओं को मजबूत करना।
- जल और स्वच्छता सेवाओं की पहुंच, सामर्थ्य तथा गुणवत्ता में सुधार लाना।
- जल और जल की उपलब्धता वाले शहरों की चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।
- जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन कार्यों को प्रोत्साहित करना।
- जल प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने और सुलभ बुनियादी ढांचे के लिये पहल के माध्यम से सामाजिक समावेशन में सुधार करना।