शॉर्ट न्यूज़: 26 अगस्त, 2022
थलाईवेट्टी मुनियप्पन
लचित बोरफुकन
थलाईवेट्टी मुनियप्पन
चर्चा में क्यों
हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के सलेम के पेरियारी गाँव में स्थित थलाईवेट्टी मुनियप्पन मंदिर को एक बौद्ध स्थल के रूप में पुनर्स्थापित करने का निर्णय दिया है।
प्रमुख बिंदु
- एक विशेषज्ञ समिति ने सलेम के पास थलाईवेट्टी मुनियप्पन मंदिर का निरीक्षण कर यह निष्कर्ष निकाला कि यह 'मूर्तिकला बुद्ध के कई महालक्षणों’ (प्रमुख विशेषताओं) को दर्शाती है।
- अभी तक इस स्थल पर हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार एक स्थानीय देवता की पूजा की जाती है किंतु उच्च न्यायालय के आदेश के पश्चात इसे बौद्ध मंदिर माना जाएगा।
- न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत एक विशेषज्ञ समिति की निरीक्षण रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करने वाली मौजूदा मंदिर संरचना आधुनिक मूल की है।
- निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार कठोर पत्थर से निर्मित यह मूर्ति कमल के आसन पर 'अर्धपद्मासन' की स्थिति में थी। साथ ही, हाथ 'ध्यान मुद्रा' में हैं।
- सिर में बुद्ध के लक्षण जैसे घुंघराले बाल, उष्निसा और लम्बी कर्णपाली दिखाई देती है। माथे पर उरना (Urna) दिखाई नहीं दे रहा है और सिर धड़ से अलग हो गया था जिसे पुन: चिपका दिया गया था।
- अर्धपद्मासन मुद्रा में छवि की ऊंचाई लगभग 108 सेमी. है। साथ ही, मूर्तिकला का पिछला भाग बिना किसी कलात्मक कार्य के सपाट था।
- तकनीकी और वैज्ञानिक निरीक्षण पर आधारित यह आदेश दक्षिण भारत में ऐसे कई मंदिरों की उत्पत्ति पर बहस को पुनर्जीवित कर सकता है
लचित बोरफुकन
चर्चा में क्यों
हाल ही में, असम के मुख्यमंत्री ने अन्य राज्यों से अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले स्कूलों व कॉलेजों के पाठ्यक्रम में लचित बोरफुकन को शामिल करने का अनुरोध किया है।
प्रमुख बिंदु
- 24 नवम्बर, 1622 को जन्मे लचित बोरफुकन का पूरा नाम चाउ लचित फुकनलुंग था। वे अहोम साम्राज्य के एक सेनापति और बोरफुकन थे। इनको सन् 1671 के सराईघाट की लड़ाई में मुग़ल सेनाओं के विरुद्ध नेतृत्व-क्षमता के लिये जाना जाता है।
- बोरफुकन की नेतृत्व क्षमता के कारण ही तत्कालीन अहोम साम्राज्य मुगल बादशाह औरंगजेब के साम्राज्यवादी मंसूबों को असफल कर सका।
- उल्लेखनीय है कि बोरफुकन अहोम राज्य के पाँच पात्र मंत्रियों में से एक थे। इस पद का सृजन अहोम राजा स्वर्गदेव प्रताप सिंह ने किया था।
- लचित बोरफुकन की वीरता और सराईघाट के युद्ध में असमिया सेना की जीत के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष 24 नवम्बर को असम में लचित दिवस (लच्छित दिवस) मनाया जाता है।
- गौरतलब है कि यह पहल असम सरकार द्वारा बोरफुकन की 400वीं जयंती के उपलक्ष्य में वर्ष भर चलने वाले उत्सव से संबंधित हैं।