शॉर्ट न्यूज़: 27 अगस्त, 2022
लम्पी स्किन डिजीज
फूडनेट
लम्पी स्किन डिजीज
चर्चा में क्यों
हाल ही में, राजस्थान और गुजरात में लम्पी स्किन डिजीज (LSD) नामक वायरल संक्रमण के कारण हजारों मवेशियों की मौत हो गई है।
लम्पी स्किन डिजीज (LSD)
- ग्लोबल अलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्यूनाइजेशन (GAVI) के अनुसार, लम्पी स्किन डिजीज रोग कैप्रिपॉक्सवायरस (Capripoxvirus) नामक विषाणु के कारण होता है और दुनिया भर में पशुधन के लिये एक उभरता हुआ खतरा है।
- आनुवंशिक रूप से यह गोटपॉक्स (Goatpox) और शीपपॉक्स (Sheeppox) वायरस परिवार से संबंधित है।
- एल.एस.डी. मुख्य रूप से रक्त पोषित कीटों जैसे वाहकों के माध्यम से मवेशियों और जलभैंसों को संक्रमित करता है।
लक्षण
- जानवर की त्वचा पर गोलाकार और कठोर गांठों का होना।
- संक्रमित जानवरों के वजन में कमी होना तथा दूध उत्पादन में गिरावट आना।
- बुखार के साथ-साथ मुंह में घाव होने की संभावना।
- अत्यधिक नाक और लार का स्रवण।
- गायों और भैंसों में प्राय: गर्भपात की संभावना
- कुछ मामलों में रोगग्रस्त जानवरों की मृत्यु भी संभव।
बचाव
- रोग का शीघ्र निदान तथा स्वस्थ्य जानवरों में गोटपॉक्स वैक्सीन के माध्यम से तीव्र एवं व्यापक टीकाकरण अभियान।
- संक्रमण के बाद बेहतर संरक्षण और स्वस्थ्य जानवरों से आइसोलेशन (अलगाव)।
- कीटनाशकों और कीटाणुनाशक रसायनों के छिड़काव से वाहक को समाप्त करके पशु-शेड की सफाई।
- शवों का उचित निपटान।
अन्य बिंदु
- अधिकांश अफ्रीकी देशों में यह रोग स्थानिक है और वर्ष 2012 से यह मध्य-पूर्व, दक्षिण-पूर्वी यूरोप और पश्चिम एवं मध्य एशिया में तेजी से फैल गया है। भारत में भी इस रोग का प्रसार देखा जा चुका है।
- विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH : जिसका एक सदस्य भारत भी है) के अनुसार, इस रोग में मृत्यु दर 1 से 5 फीसदी तक सामान्य मानी जाती है।
- यह जूनोटिक रोग नहीं है अर्थात् यह जानवरों से मनुष्यों में नहीं फैलता है और मनुष्य इससे संक्रमित नहीं होते हैं।
फूडनेट
चर्चा में क्यों
हाल ही में, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research : ICMR) ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में खाद्यजनित रोगज़नक़ सर्वेक्षण नेटवर्क (Foodborne Pathogen Survey Network) या फूडनेट का शुभारंभ किया है।
प्रमुख बिंदु
- यह पूर्वोत्तर में एक अनूठी सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल की शुरुआत है। यह नवीनतम पहल वर्ष 2020 में आई.सी.एम.आर. द्वारा शुरू की गई परियोजना का एक हिस्सा है।
- एकीकृत कार्यबल अनुसंधान और चिकित्सा संस्थानों तथा खाद्य क्षेत्रों के साथ सहयोग कर परियोजना-आधारित गतिविधि अभियानों का समन्वय करता है।
- यह खाद्य जनित आंत्र रोग के प्रकोप की निगरानी करने के साथ ही चार उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्यों में गहन व्यवस्थित प्रयोगशाला-आधारित निगरानी करता है।
- इस परियोजना में बीमारी के बोझ का आकलन, इसके प्रकोप के लिये जिम्मेदार विशिष्ट रोगजनकों का पता लगाना, आंतों के बैक्टीरिया के बीच रोगाणुरोधी प्रतिरोध पैटर्न का दस्तावेजीकरण करना शामिल है।
- साथ ही, इसके कार्यों में बाहरी गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली के रूप में कार्य करना और संदर्भ सेवाएँ प्रदान करने वाले एक केंद्रीकृत डाटाबैंक को बनाए रखना शामिल है।