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चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3  - आपदा और आपदा प्रबंधन।)

संदर्भ

पिछले कुछ समय से विनाशकारी चक्रवातों की आवृत्ति में लगातार वृद्धि हुई है। अतः इस संदर्भ में भारत को ‘दीर्घकालिक शमन उपायों’ (Long-term Mitigation Measures) पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

हालिया घटनाएँ एवं उनका प्रभाव

  • इस वर्ष के आरंभ में आए भीषण चक्रवात ‘तौकते और यास’ (Tauktae & Yaas) ने देश के पश्चिमी तट गुजरात एवं पूर्वी तट ओडिशा में व्यापक नुकसान पहुँचाया।
  • दोनों तूफानों ने बुनियादी ढाँचे, कृषि और आवासों को भारी नुकसान पहुँचाया।
  • भारत सरकार के अनुसार, इन घटनाओं में अनुमानित 199 लोग मारे गए, 37 मिलियन लोग प्रभावित हुए तथा 320 बिलियन का आर्थिक नुकसान हुआ।
  • इसके अतिरिक्त, 0.24 मिलियन हेक्टेयर फसल क्षेत्र प्रभावित हुआ और लगभग 0.45 मिलियन घर क्षतिग्रस्त हुए। साथ ही, इन दोनों राज्यों में 25 लाख लोगों को ‘चक्रवात आश्रयों और राहत शिविरों’ में शरण लेनी पड़ी।
  • शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वृक्षों के उखड़ने से पहले से ही कम हो रहे ‘हरित आवरण’ पर प्रभाव पड़ा है।

बारंबारता में वृद्धि

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के वर्ष 2013 के आँकड़ों के अनुसार, उत्तरी हिंद महासागर के ‘समुद्री सतह के तापमान’ में वृद्धि तथा भारत में ‘भू-जलवायविक परिस्थितियों’ के कारण तटीय राज्यों में विनाशकारी चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि हुई है। वैश्विक उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में इनकी कुल हिस्सेदारी 7 प्रतिशत है।
  • प्रत्येक वर्ष बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में लगभग पाँच से छह उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का निर्माण होता है; इनमें से दो से तीन गंभीर श्रेणी के होते हैं।
  • भारत की तटरेखा की कुल लंबाई लगभग 7,500 किमी है, जिसमें 96 तटीय ज़िले शामिल हैं। इससे 262 मिलियन नागरिक चक्रवात और सुनामी से प्रभावित होते हैं।
  • विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र (2010) का अनुमान है कि भारत में वर्ष 2050 तक लगभग 200 मिलियन नागरिक ‘तूफान और भूकंप’ से प्रभावित होंगे।
  • वर्ष 1891 से 2020 के मध्य भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों से टकराने वाले 313 चक्रवातों में से 130 को ‘गंभीर चक्रवाती तूफान’ के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
  • पश्चिमी तट ने 31 चक्रवातों को तथा पूर्वी तट से 282 चक्रवातों का अनुभव किया है।
  • राज्यवार, ओडिशा में 97, आंध्र प्रदेश में 79, तमिलनाडु में 58, पश्चिम बंगाल में 48, गुजरात में 22, महाराष्ट्र/गोवा में 7 तथा केरल में 2 चक्रवात आए।

आर्थिक एवं मानवीय क्षति

  • वर्ष 1999-2020 के मध्य प्राकृतिक आपदाओं में चक्रवात 15 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ दूसरी सबसे बड़ी और लगातार होने वाली घटना है।
  • इसी अवधि के दौरान 12,388 लोग मारे गए थे तथा आर्थिक क्षति का अनुमान $32,615 मिलियन था।
  • प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित आर्थिक क्षति के संबंध में चक्रवात (29 प्रतिशत) दूसरे स्थान पर हैं, इसके विपरीत बाढ़ (62 प्रतिशत) से सबसे ज़्यादा आर्थिक नुकसान हुआ है।
  • चक्रवात, भूकंप (42 प्रतिशत) और बाढ़ (33 प्रतिशत) के पश्चात् भारत में तीसरी सबसे घातक आपदा है।
  • हालाँकि, चक्रवातों के कारण होने वाली मौतें वर्ष 1999 के 10,378 से घटकर वर्ष 2020 में 110 हो गईं है। इस महत्त्वपूर्ण गिरावट के लिये बेहतर पूर्व चेतावनी प्रणाली, चक्रवात की भविष्यवाणी तथा बेहतर आपदा प्रबंधन गतिविधियाँ, जैसे- समय पर निकासी, पुनर्वास और राहत वितरण संबंधी कारक ज़िम्मेदार हैं।
  • यद्यपि, ये उपाय ‘ज़ीरो मृत्य दृष्टिकोण’ प्राप्त करने तथा चक्रवातों से होने वाली आर्थिक क्षति को कम करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
  • वर्ष 1999 से 2020 के मध्य चक्रवातों ने सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को काफी नुकसान पहुँचाया। दीर्घकालिक शमन उपायों के अभाव में $2,990 मिलियन से $14,920 मिलियन तक की हानि में वृद्धि हुई।
  • इसके अतिरिक्त, इसी अवधि के दौरान चक्रवातों से होने वाली क्षति में नौ गुना वृद्धि हुई है।
  • परिणामस्वरूप, प्राकृतिक आपदाओं पर प्रत्यक्ष सरकारी व्यय 13 गुना बढ़ गया। वर्ष 2014 में एशियन डेवलपमेंट बैंक की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि भारत को जलवायु संबंधी घटनाओं से वर्ष 2050 तक वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.8 प्रतिशत नुकसान होगा।
  • वर्ष 1999 से 2020 तक भारत को सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2 प्रतिशत तथा कुल राजस्व का 15 प्रतिशत का नुकसान हुआ।

ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स

  • ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स रिपोर्ट, 2021 के अनुसार, ‘चरम मौसमी घटनाओं’ की बारंबारता के कारण वर्ष 2019 में भारत को विश्व स्तर पर सातवाँ सर्वाधिक प्रभावित देश माना गया।
  • उक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 2,267 मानव जीवन की क्षति हुई है, जबकि वर्ष 2019 में ही ‘क्रय शक्ति समानता’ (PPP) के आधार पर $68,812 मिलियन की आर्थिक क्षति हुई।

‘ओडिशा मॉडल’

  • वर्ष 1999 के सुपर साइक्लोन के उपरांत ओडिशा सरकार ने विभिन्न ‘चक्रवात शमन उपाय’ अपनाए, जिसमें तटीय ज़िलों में ‘आपदा चेतावनी प्रणाली’ स्थापित करना तथा ‘चक्रवात-प्रवण’ ज़िलों में निकासी आश्रयों (Evacuation Shelters) का निर्माण शामिल था।
  • अन्य कदमों में, ‘ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (OSDMA) की स्थापना, आपदा तैयारियों के लिये नियमित कैबिनेट बैठकें तथा ‘ओडिशा आपदा रैपिड एक्शन फोर्स’ (ODRAF) का निर्माण करना शामिल है।
  • इन सभी गतिविधियों ने हुदहुद, फानी, अम्फान और यास जैसे चक्रवाती तूफानों से होने वाली क्षति को कम करने में मदद की है।
  • फिर भी, ओडिशा का आपदा प्रबंधन मॉडल चक्रवात से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने के लिये अपर्याप्त है।
  • अतः, भारत सरकार को आपदा क्षति और मृत्यु दर को कम करने के लिये आवश्यक उपाय अपनाने चाहिये।

उपाय

  • चक्रवात चेतावनी प्रणाली और आपदा तैयारियों के उपायों में सुधार करने की आवश्यकता है।
  • सरकार को ‘शेल्टरबेल्ट वृक्षारोपण’ के तहत हरित पट्टी को चौड़ा करना चाहिये और चक्रवातों के प्रभाव को कम करने के लिये तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव वन क्षेत्र को बढ़ाना चाहिये।
  • लागत प्रभावी दीर्घकालिक शमन उपायों को अपनाना, जिसमें ‘चक्रवात-लचीला बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना शामिल है, जैसे चक्रवात-लचीला तटबंधों व नहरों का निर्माण तथा निचले इलाकों में जलभराव को रोकने के लिये नदी संपर्क में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है।
  • तटीय ज़िलों में आपदा-रोधी विद्युत अवसंरचना स्थापित करना।
  • गरीब और कमज़ोर परिवारों को पक्के घर उपलब्ध कराना तथा व्यापक सामुदायिक जागरूकता अभियान संचालित करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

  • आपदा न्यूनीकरण उपायों को सामूहिक रूप से तैयार करने के लिये केंद्र और संबंधित राज्यों के मध्य ‘स्वस्थ समन्वय’ आवश्यक है।
  • केंद्र और राज्यों द्वारा सामूहिक शमन प्रयास राज्यों के वित्तीय बोझ को कम करने में मदद कर सकते हैं। साथ ही, यह आपदा से होने वाली मौतों को कम करने में भी प्रभावी हो सकता है।
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