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मनरेगा के माध्यम से विमरुस्थलीकरण

(प्रारंभिक परीक्षा- पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

वर्तमान में सरकार बंजर भूमि को बहाल करने और विमरुस्थलीकरण के लिये महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) तथा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) को अभिसरित करने की योजना बना रही है। 

विभिन्न विभागों के मध्य समन्वय

  • हाल ही में, ग्रामीण विकास विभाग तथा भूमि संसाधन विभाग ने संयुक्त रूप से हस्ताक्षरित परामर्श द्वारा राज्यों से मनरेगा एवं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को मिलाकर कार्य करने का आग्रह किया है।
  • भूमि संसाधन विभाग के अंतर्गत पहाड़ी क्षेत्र सुधार (Ridge Area Treatment), जल निकासी रेखा सुधार, मृदा एवं नमी संरक्षण, वर्षा जल संग्रहण, नर्सरी उगाना, वनीकरण, बागवानी और चारागाह विकास जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।

भारत में बंजर भूमि की स्थिति

  • वर्ष 2021 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित मरुस्थलीकरण एवं भूमि अवक्रमण मानचित्र के अनुसार, भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का कम-से-कम 30% ‘बंजर भूमि’ की श्रेणी में आता है।
  • झारखंड, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात और गोवा में 50% से अधिक भूमि क्षेत्र मरुस्थलीकरण या अवक्रमण (क्षरण) का सामना कर रहा है।
  • 10% से कम भूमि क्षरण वाले राज्य केरल, असम, मिजोरम, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश हैं।

मरुस्थलीकरण (Desertification)

  • मरुस्थलीकरण एक ऐसी भौगोलिक प्रक्रिया है, जिसमें प्राकृतिक या मानव निर्मित कारकों के कारण उपजाऊ क्षेत्रों में भी मरुस्थल जैसी विशिष्टताएँ विकसित होने लगती हैं।
  • इसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिवधियों समेत अन्य कई कारणों से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क, निर्जल क्षेत्रों की जैविक उत्पादकता कम हो जाती है और भूमि रेगिस्तान में बदल जाती है।
  • इससे भूमि की उत्पादन क्षमता में ह्रास, प्राकृतिक वनस्पतियों का क्षरण और कृषि उत्पादकता में कमी आती है, हालाँकि इसका तात्पर्य मौजूदा रेगिस्तानों का विस्तार नहीं है।

सरकार का लक्ष्य

वर्ष 2019 में मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (COP-14) के दौरान की गई प्रतिबद्धता के बाद सरकार ने अपने लक्ष्य में वृद्धि की है। 

सरकार ने वर्ष 2030 तक अवक्रमित भूमि को बहाल करने का लक्ष्य 21 मिलियन हेक्टेयर से बढ़ाकर 26 मिलियन हेक्टेयर कर दिया है। हालाँकि, लगभग तीन वर्ष बाद भी सरकार इस लक्ष्य के निकट नहीं पहुँच पाई है।

चुनौतियाँ

  • कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में उत्पन्न बाधाओं ने इस लक्ष्य को वर्ष 2025-26 तक 4.95 मिलियन हेक्टेयर तक सीमित कर दिया। 
  • ऐसे में उपरोक्त प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिये वैकल्पिक अवसरों का उपयोग करना सरकार के लिये अनिवार्य हो गया है।

संभावनाएं 

  • ग्रामीण विकास मंत्रालय का अनुमान है कि मनरेगा का उपयोग करके सरकार सुधार के अंतर्गत कवर किये जाने वाले क्षेत्र में वृद्धि कर सकती है। 
  • उल्लेखनीय है कि मनरेगा के लिये वित्त वर्ष 2022-23 में 73,000 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है। 
  • अब तक 4.95 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र की पुनर्बहाली के लिये 8,134 करोड़ रुपए का केंद्रीय आवंटन किया गया है।
  • मनरेगा को साथ में लाने से संभावना से लगभग 30% अधिक भूमि का सुधार करने में मदद मिल सकती है।

मरुस्थलीकरण पर अंकुश लगाने के सरकारी प्रयास

कमांड एरिया डेवलपमेंट (Command Area Development)

  • सिंचाई सुधार एवं कुशल जल प्रबंधन के माध्यम से कृषि उत्पादन के अनुकूलन के लिये इसे 1974 में प्रारंभ किया गया था।
  • इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन जल संसाधन मंत्रालय द्वारा संबंधित राज्य सरकारों के साथ किया जाता है।

एकीकृत जलग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP)

  • वर्ष 1989-90 में प्रारंभ किये गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार सृजन द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण एवं विकास करके पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना है।
  • वर्तमान में इसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (2015-16 से 2019-20) के अधीन रखा गया है जिसे नीति अयोग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

मरुस्थल विकास कार्यक्रम (DDP)

  • इस कार्यक्रम को वर्ष 1995 में प्रारंभ किया गया था। इसका उद्देश्य सूखे के प्रतिकूल प्रभाव को कम करना और चिन्हित किये गए रेगिस्तानी क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधन आधार को पुन: जीवंत करना था।
  • इसे राजस्थान, गुजरात, हरियाणा के गर्म रेगिस्तानी क्षेत्रों और जम्मू एवं कश्मीर व हिमाचल प्रदेश के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्रों के लिये शुरू किया गया था। इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय कार्यान्वित करता है।

नदी घाटी परियोजनाओं और बाढ़ प्रवण नदियों से मिट्टी का संरक्षण

  • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही दोनों परियोजनाओं को वर्ष 2000 में जोड़ा गया तथा लागू किया गया।
  • इस योजना का उद्देश्य क्षारीय मृदा की भौतिक स्थितियों और उत्पादकता की स्थिति में सुधार करना है ताकि अधिकतम फसल उत्पादन किया जा सके।

राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (National Afforestation Programme)

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किये जा रहे इस कार्यक्रम को वर्ष 2000 से लागू किया गया है।
  • इसे निम्नीकृत वन भूमि के वनीकरण के उद्देश्य से शुरू किया गया है।  

चारा एवं चारा विकास योजना (Fodder and Feed Development Scheme)

  • वर्ष 2010 में लॉन्च किये गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य निम्नीकृत घास के मैदानों में सुधार करना है।
  • इसका कार्यान्वयन मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।

राष्ट्रीय हरित भारत मिशन (NMGI)

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा यह मिशन जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) का एक हिस्सा है।
  • इसे वर्ष 2014 में 10 वर्षों की समय-सीमा के साथ भारत के घटते वनों के संरक्षण, पुनर्स्थापन एवं वृद्धि के उद्देश्य से अनुशंसित किया गया था।
  • राष्ट्रीय मरुस्थलीकरण रोकथाम कार्य योजना (National Action Programme to Combat Desertification)
  • इस कार्यक्रम को वर्ष 2001 में मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये तैयार किया गया था।
  • भारत मरुस्थलीकरण एवं भूमि अवक्रमण मानचित्र (Desertification and Land Degradation Atlas of India)
  • वर्ष 2016 में इसरो द्वारा जारी किये गए इस मानचित्र का उद्देश्य मरुस्थलीकरण एवं भूमि क्षरण का मुकाबला करना है।

मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये वैश्विक प्रयास

  • बॉन चैलेंज : बॉन चैलेंज एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया भर में वर्ष 2020 तक 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर और वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाने का लक्ष्य है।
  • सतत विकास लक्ष्य- 15 : यह लक्ष्य टिकाऊ उपभोग और उत्पादन के माध्यम से ग्रह को अवक्रमण से बचाने से संबंधित हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मलेन (UNCCD): इसे 1994 में स्थापित किया गया था, जो पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। 
  • वर्ष 1994 में भारत इसका हस्ताक्षरकर्ता बन गया और वर्ष 1996 में इसकी पुष्टि की गई।
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