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कोविड काल में वित्त आयोग

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय अर्थव्यवस्था; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।) 

संदर्भ

  • 15वें वित्त आयोग ने वर्ष 2021-22 से 2025-26 के दौरान राज्यों को केंद्र की विभाजन योग्य कर प्राप्तियों में 42% हिस्सा दिये जाने की सिफारिश की है।
  • आयोग ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र और राज्यों, दोनों को आने वाले वर्षों में वित्तीय घाटे और ऋण को सीमित रखने के सुझाव दिये हैं और सिफारिश की गई है कि विद्युत क्षेत्र में सुधार के आधार पर राज्यों को अतिरिक्त उधार लेने की अनुमति दी जाय।

प्रमुख बिंदु

  • 15वें वित्त आयोग ने कोविड-19 महामारी के दौरान संसाधनों की स्थिति को विश्वसनीय रखने की सिफारिश की गयी है और कहा है कि 2020-21 के लिये राज्यों की सीधी हिस्सेदारी को 41% पर रखा जाए।
  • आयोग का कहना है कि यह 14वें वेतन आयोग की सिफारिशों में राज्यों का हिस्सा 42% रखने के ही समान है क्योंकि जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों में पुनर्गठित करने से करीब एक % समायोजन की आवश्यकता है।
  • आयोग की सिफारिशों के मुताबिक केंद्र का राजकोषीय घाटा 2021-22 में 6%, 2022-23 में 5%, 2023-24 में 5%, 2024-25 में 4.5% और 2025-26 में 4% होना चाहिये।
  • भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी एन. के. सिंह की अध्यक्षता वाली समिति ने पिछले वर्ष नवंबर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसका शीर्षक ‘कोविड काल में वित्त आयोग’ था।
  • रिपोर्ट के अनुसार पाँच वर्ष की अवधि के लिये सकल कर राजस्व 2 लाख करोड़ रुपए होने की उम्मीद है। उसमें से विभाजन योग्य कर आय (उपकर और अधिभार, तथा संग्रह की लागत हटाने के बाद) के 103 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है।
  • आयोग के मुताबिक ऐसे में वर्ष 2021-26 के दौरान राज्यों को अपने कर हिस्से के रूप में 2 लाख करोड़ रुपए मिलेंगे। 

राज्यों को राजस्व घाटा अनुदान

  • किसी वित्तीय वर्ष में कुल सरकारी आय और कुल सरकारी व्यय का अंतर राजस्व घाटा कहलाता है।
  • वित्त आयोग ने वित्तीय वर्ष 2026 तक की अवधि के लिये लगभग 3 ट्रिलियन रुपए राजस्व घाटा अनुदान की सिफारिश की है।
  • ध्यातव्य है कि राजस्व घाटे के अनुदान के लिये योग्य राज्यों की संख्या वित्त वर्ष 2022 के 17 के मुकाबले वित्त वर्ष 2026 तक 6 रह जाएगी। 

राज्यों को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन एवं अनुदान

  • ये अनुदान मुख्यतः चार श्रेणियों के तहत दिया जाता है :
  1. सामाजिक क्षेत्र (स्वास्थ्य एवं शिक्षा आदि)
  2. ग्रामीण अर्थव्यवस्था (कृषि और ग्रामीण सड़कों का रख रखाव आदि)
    • ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देश की दो-तिहाई आबादी, कुल कार्य बल का 70% और राष्ट्रीय आय का 46% भाग शामिल है।
  3. शासन और प्रशासनिक सुधार (न्यायपालिका, सांख्यिकी और आकांक्षी ज़िलों तथा ब्लॉकों के लिये अनुदान की सिफारिश)
  4. बिजली क्षेत्र के लिये प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन प्रणाली। 

स्थानीय सरकारों को अनुदान

  • इनमें नए शहरों के इन्क्यूबेशन हेतु प्रदर्शन-आधारित अनुदान तथा स्थानीय सरकारों के लिये स्वास्थ्य अनुदान शामिल किया हैं।
  • शहरी स्थानीय निकायों के लिये अनुदान केवल उन शहरों/कस्बों के लिये प्रस्तावित है, जिनकी आबादी दस लाख या उससे कम है।
  • दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों को 100% अनुदान मिलियन-प्लस सिटीज़ चैलेंज फंड (MCF) के के आधार पर प्रदान किया जाएगा। 

चुनौती

  • लोकतान्त्रिक रूप से यदि देखा जाय तो किसी भी राज्य को दिया गया प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन, राज्य के स्वतंत्र निर्णय और उसके द्वारा किये जाने वाले नवाचार को प्रभावित करता है।
  • यदि किसी राज्य की उधार लेने की क्षमता पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध अध्यारोपित किया जाएगा तो राज्य द्वारा विकास कार्यों पर किये जाने वाले खर्च पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जिससे न सिर्फ राज्य का विकास प्रभावित होगा बल्कि यह सहकारी वित्तीय संघवाद के ध्येय को भी कमज़ोर करेगा। 

वित्त आयोग

  • वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जो राजकोषीय संघवाद की धुरी है, जिसका गठन भारतीय संविधान के अनुछेद 280 के तहत किया जाता है।
  • इसका मुख्य दायित्व संघ व राज्यों की वित्तीय स्थितियों का मूल्यांकन करना, उनके बीच करों के बटवारे की संस्तुति करना तथा राज्यों के बीच इन करों के वितरण हेतु सिद्धांतो का निर्धारण करना है।
  • वित्त आयोग की कार्यशैली की विशेषता सरकार के सभी स्तरों पर व्यापक एवं गहन परामर्श कर सहकारी संघवाद के सिद्धांत को सुदृढ़ करना है।
  • इसकी संस्तुतियाँ सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता में सुधार लाने और राजकोषीय स्थिरता को बढ़ाने की दिशा में भी सक्षम होती हैं।
  • ध्यातव्य है कि प्रथम वित्त आयोग 1951 में गठित किया गया था और अब तक पंद्रह वित्त आयोग गठित किये जा चुके हैं। 27 नवंबर 2017 को पंद्रहवें वित्त आयोग का गठन किया गया।
  • वित्त आयोग एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक संस्था के रूप में सरकार के सभी तीन स्तरों के प्रतिस्पर्धात्मक दावों और प्राथमिकताओं को विश्वसनीय तरीके से संतुलित करने के लिये प्रतिबद्ध है।
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