(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण तथा उसकी चुनौतियाँ) |
संदर्भ
केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ ने सीज़ा थॉमस को ए.पी.जे. अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी और के. शिवप्रसाद को डिजिटल यूनिवर्सिटी, केरल के अंतरिम कुलपति के रूप में पुनर्नियुक्त किया। यह निर्णय मुख्यमंत्री पिनरई विजयन और राज्य के अन्य मंत्रियों द्वारा किए जा रहे सुलह प्रयासों के विपरीत है।
राज्यपाल का पक्ष
- राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में शक्तियों का प्रयोग।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के विनियमों के अनुरूप नियुक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का उल्लेख करते हुए इस कदम को उचित ठहराया।
- वर्तमान नियुक्तियों को वापस लेने और भविष्य की नियुक्तियों पर मंत्रिमंडल से परामर्श करने के राज्य सरकार के अनुरोध को खारिज कर दिया।
सरकार का तर्क
- एल.डी.एफ. सरकार अंतरिम कुलपतियों को बदलने और विवाद को कम करने की कोशिश कर रही थी।
- राज्यपाल पर लोकतांत्रिक मानदंडों को दरकिनार करने और संघीय सिद्धांतों को कमजोर करने का आरोप।
- पुनर्नियुक्तियां राज्यपाल के साथ बढ़ते तनाव को कम करने के राज्य सरकार के प्रयासों को भी कमजोर करती हैं जो राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में विभिन्न मुद्दों पर प्रशासनिक व्यवस्था के साथ मतभेद रखते रहे हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय का उल्लेख करते हुए राज्य सरकार ने तर्क दिया कि कुलाधिपति को कुलपतियों की नियुक्ति से पहले सरकार से परामर्श करना चाहिए।
संवैधानिक एवं प्रशासनिक निहितार्थ
- संघीय तनाव : यह प्रकरण राज्य प्रशासन में राज्यपालों की भूमिका को लेकर केंद्र-राज्य के बीच लगातार टकराव को दर्शाता है।
- शिक्षा में राज्यपाल की भूमिका : इस बात पर बहस छिड़ती है कि क्या राज्यपालों को कुलाधिपति के रूप में विश्वविद्यालय के मामलों पर स्वायत्त नियंत्रण रखना चाहिए।
- न्यायिक निगरानी : यह कुलपति के नियुक्तियों में यू.जी.सी. मानदंडों का पालन सुनिश्चित करने में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के प्रभाव को पुष्ट करता है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- कुलपतियों की नियुक्ति यू.जी.सी. विनियम, 2018 के अनुसार ही होनी चाहिए।
- यू.जी.सी. विनियमों के अनुसार यदि राज्य का कानून यू.जी.सी. के दिशा-निर्देशों से मेल नहीं खाता है तो कुलपति की नियुक्ति अवैध मानी जाएगी।
- सीज़ा थॉमस बनाम केरल सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने केरल सरकार द्वारा नियुक्त कुलपति की नियुक्ति को अमान्य ठहराया क्योंकि वह यू.जी.सी. के मानदंडों के अनुरूप नहीं थी।
- यदि किसी राज्य का विश्वविद्यालय अधिनियम यू.जी.सी. के विनियमों से मेल नहीं खाता है तो यू.जी.सी. के विनियमों को वरीयता दी जाएगी।
यू.जी.सी. विनियमों के अनुसार आवश्यकताएँ
- ख़ोज-सह-चयन समिति : कुलपति की नियुक्ति तीन-सदस्यीय ख़ोज-सह-चयन समिति के माध्यम से होनी चाहिए। इस समिति में:
- एक सदस्य विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा
- एक सदस्य राज्यपाल/कुलाधिपति द्वारा
- एक सदस्य यू.जी.सी. द्वारा नामित (कुछ मामलों में)
- योग्यता : कुलपति का चयन योग्यता एवं अनुभव के आधार पर पारदर्शी तरीके से किया जाना चाहिए।
- आवेदक के पास किसी प्रोफेसर पद पर कम-से-कम 10 वर्ष का अनुभव होना चाहिए।
- उत्कृष्ट अकादमिक रिकॉर्ड, नेतृत्व क्षमता और प्रशासनिक अनुभव आवश्यक हैं।
- चयन प्रक्रिया : समिति 3 पैनल नामों की सिफारिश करता है जिसके आधार पर अंतिम चयन कुलाधिपति (Governor as Chancellor) द्वारा किया जाता है।