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भारत की अंतरिक्ष प्रगति : 2025

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव; विज्ञान व प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स)

संदर्भ 

वर्ष 2025 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुआ। देश अब केवल एक किफायती उपग्रह प्रक्षेपणकर्ता नहीं रहा है बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष मंच पर एक परिष्कृत शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है। एलवीएम3-एम6 (LVM3-M6) रॉकेट द्वारा 6,100 किलोग्राम के ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह का सफल प्रक्षेपण केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है बल्कि भारत की अंतरिक्ष क्षमता और भविष्य के मानव मिशनों की तैयारी की स्पष्ट घोषणा है। 

वर्ष 2025 में भारत का अंतरिक्ष में प्रदर्शन 

अत्यधिक भारी उपग्रह प्रक्षेपण की क्षमता का अभूतपूर्व प्रदर्शन

  • इसरो का प्रक्षेपण यान मार्क-3 (LVM3) को पहले जी.एस.एल.वी. एमके-III (GSLV Mk-III) नाम से जाना जाता था, जोकि अब विश्वसनीय रूप से ‘अत्यधिक भार उठाने वाले यंत्र’ के रूप में अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित हो चुका है।
  • भारत की धरती से अब तक का सबसे भारी प्रक्षेपण अमेरिकी उपग्रह ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 (एएसटी स्पेसमोबाइल) का हुआ, जिसका वजन 6,100 किलोग्राम है। यह उपग्रह सफलतापूर्वक निम्न भू कक्षा (LEO) में स्थापित किया गया।
  • ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह अंतरिक्ष-आधारित सेलुलर ब्रॉडबैंड के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसके माध्यम से सामान्य स्मार्टफोन सीधे उपग्रह से कनेक्ट हो सकेंगे, जिससे दुनिया भर के ‘डेड ज़ोन’ गायब हो सकते हैं।
  • एल.वी.एम.3 की यह लगातार नौवीं सफलता थी, जो इसे 100% सफलता दर वाला प्रक्षेपण यान बनाती है। इस प्रकार की विश्वसनीयता न केवल अंतर्राष्ट्रीय उच्च-मूल्य वाले अनुबंधों को आकर्षित करती है बल्कि आगामी मानव-आधारित मिशनों के लिए भी एक मजबूत आधार प्रदान करती है। 

तकनीकी दक्षता

  • SPADEX (अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग): जनवरी में उपग्रहों को कक्षा में जोड़ने और अलग करने का सफल परीक्षण किया गया, जो भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्रयान-4 जैसी भविष्य की परियोजनाओं के लिए अहम है।
  • NISAR (NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार): जुलाई में जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और प्राकृतिक आपदाओं पर निगरानी के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन डेटा उपलब्ध कराया गया।
  • सी.एम.एस.-03 और जी.टी.ओ. क्षमता: नवंबर में 4,400 किलोग्राम के उपग्रह को भू-स्थिर कक्षा में स्थापित करके भारत ने भारी संचार उपग्रहों के लिए विदेशी रॉकेटों पर निर्भरता कम की।

आर्थिक एवं वाणिज्यिक आयाम

  • इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के माध्यम से भारत ने ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ से ‘वाणिज्य-प्रथम’ रणनीति की ओर महत्वपूर्ण बदलाव किया।
  • वैश्विक बाजार: वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष व्यवसाय में भारत की हिस्सेदारी लगभग 2% है जिसे सरकार वर्ष 2033 तक 10% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखती है।
  • लागत प्रतिस्पर्धा: न्यूनतम लागत पर भारी उपग्रह प्रक्षेपण करके इसरो ने खुद को वैश्विक रूप से आकर्षक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया।
  • निजी क्षेत्र का उदय: स्काईरूट एयरोस्पेस और अग्निकुल कॉस्मॉस जैसी कंपनियों ने छोटे उपग्रहों के नियमित प्रक्षेपण की जिम्मेदारी संभाली है जिससे इसरो उच्च स्तरीय अनुसंधान व विकास पर ध्यान केंद्रित कर सके। 

रणनीतिक व भूराजनीतिक महत्व 

  • भारत की अंतरिक्ष उपलब्धियां केवल तकनीकी नहीं हैं बल्कि रणनीतिक सॉफ्ट पावर और स्वायत्तता को भी मजबूत करती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव: अत्यधिक भार उठाने (उपग्रह प्रक्षेपण) की क्षमता और मानव मिशनों की तैयारी ने भारत को अमेरिका, रूस एवं चीन के साथ उच्च स्तरीय अंतरिक्ष क्लब में प्रवेश दिलाया है।
  • आत्मनिर्भर तकनीक: सी32 क्रायोजेनिक स्टेज और आगामी इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन जैसी स्वदेशी तकनीक वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता को कम करती हैं।
  • सुरक्षा एवं कनेक्टिविटी: वैश्विक कनेक्टिविटी नियंत्रण, आंतरिक सुरक्षा एवं आपदा प्रबंधन में रणनीतिक लाभ प्रदान करता है।

गगनयान और भविष्य की राह

एल.वी.एम.3 की सफलता भारत के मानव अंतरिक्ष उड़ान के सपनों के लिए आधारशिला है।

मानव-मूल्यांकन की दिशा में एलवीएम3

  • 6,100 किलोग्राम के अमेरिकी उपग्रह को ले जाने वाला एलवीएम3 अब ह्यूमन-रेटेड स्वरूप में रूपांतरित किया जा रहा है।
  • इस प्रक्रिया में उन्नत सुरक्षा प्रणालियाँ, अतिरिक्त एवं फेल-सेफ इलेक्ट्रॉनिक्स तथा एक अत्याधुनिक क्रू एस्केप सिस्टम (CES) को शामिल किया जा रहा है ताकि किसी भी आपात स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की जा सके।

व्योममित्र: मानव मिशन से पहले अंतिम परीक्षा

  • वर्ष 2026 की शुरुआत में प्रस्तावित पहला मानवरहित गगनयान मिशन (G1) की एक महत्वपूर्ण परीक्षण उड़ान होगी। इस मिशन में एक मानवरूपी रोबोट ‘व्योममित्र’ भेजा जाएगा जो मानव उपस्थिति का अनुकरण करेगा। 
  • यह रोबोट दबाव, तापमान, ऑक्सीजन स्तर और विकिरण जैसे जीवन-समर्थन मापदंडों की निगरानी कर यह सुनिश्चित करेगा कि मानव उड़ान के लिए वातावरण पूरी तरह सुरक्षित है।

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की नींव

  • SPADEX मिशन के माध्यम से अंतरिक्ष डॉकिंग में प्राप्त सफलता और एल.वी.एम.3 की उच्च विश्वसनीयता भारत के अपने अंतरिक्ष स्टेशन की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में निर्णायक कदम हैं। 
  • वर्ष 2035 तक प्रस्तावित यह स्टेशन कक्षा में एक स्थायी प्रयोगशाला के रूप में कार्य करेगा जहाँ सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण में वैज्ञानिक प्रयोग, उन्नत अनुसंधान एवं दीर्घकालिक मानव उपस्थिति संभव हो सकेगी। 

निष्कर्ष

इसरो की वर्ष 2025 की यात्रा यह दर्शाती है कि भारत अब केवल एक ‘किफायती विकल्प’ नहीं है बल्कि ‘इनोवेशन लीडर’ है। भारी पेलोड क्षमता, अंतरिक्ष डॉकिंग में महारत और निजी भागीदारी के साथ भारत अंतरिक्ष के इस नए युग का नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह तैयार है।

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