प्रारम्भिक परीक्षा – पेरिस समझौते, UNFCCC, 'COP-28' सम्मेलन, जीवाश्म ईंधन मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर-3 |
संदर्भ
- भारत ने 'ग्लोबल स्टाकटेक' को लेकर अपनी अपेक्षाओं को रेखांकित करते हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (UNFCCC) में एक अभिवेदन में विकसित देशों की निंदा करते हुए कहा कि विकासशील देशों को आवश्यक जीवाश्म ईंधन विकसित करने से रोकने के लिए कुछ विकसित देश पेरिस समझौते का फायदा उठा रहे हैं। जबकि ये स्वयं जीवाश्म ईंधन में निवेश करना जारी रखे हुए हैं, जो कि अनुचित है।

प्रमुख बिंदु
- भारत के अनुसार, प्रथम 'ग्लोबल स्टाकटेक' में कार्बन उत्सर्जन में 2020 से पहले के अंतर को पाटने की प्राथमिकता दी जानी चाहिए,समता के अभाव को एक व्यापक चिंता के रूप में शामिल किया जाना चाहिए और जलवायु परिवर्तन से निपटने को लेकर विकसित देशों में इच्छा के गंभीर अभाव को स्वीकार किया जाना चाहिए।
ग्लोबल स्टाकटेक
- 'ग्लोबल स्टाकटेक' परिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सामूहिक वैश्विक प्रगति के आकलन को लेकर संयुक्त राष्ट्र की द्विवार्षिक समीक्षा है। ये प्रक्रिया दुबई में इस साल के अंत में आयोजित किए जाने वाले 'COP-28' सम्मेलन में पूरी होगी।
- संयुक्त अरब अमीरात में UNFCCC पार्टियों के सम्मेलन ('COP-28') का 28वां सत्र 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 तक आयोजित किया जाएगा।
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- भारत ने कहा कि विकसित देश पेरिस समझौते के अनुच्छेद 2.1 (सी) को अलग करके देख रहे हैं और विकासशील देशों को धन उपलब्ध कराने की अपनी प्रतिबद्धताओं से बचने के प्रयास के तहत वित्त संबंधी अन्य सभी प्रावधानों की अनदेखी कर रहे हैं।
- अनुच्छेद 2.1 (सी) में वित्तीय प्रवाह को कम हरित गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल विकास के मार्ग के अनुरूप बनाने की बात की गई है।
- ये अनुच्छेद इस बात को सुनिश्चित करने पर बल देता है कि जलवायु कार्यवाही के लिए दिया जाने वाला धन स्वच्छ और लचीले विकास का समर्थन करेगा।
- भारत के अनुसार, कुछ विकसित देश महत्वपूर्ण जलवायु लक्ष्यों के लिए पर्याप्त धन मुहैया नहीं करा रहे हैं जो यह अस्वीकार्य है।
पेरिस समझौता
- पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी मुद्दों पर, देशों के लिये, क़ानूनी रूप से बाध्यकारी एक अन्तरराष्ट्रीय सन्धि है।
- ये समझौता वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप-21) के दौरान, 196 पक्षों की ओर 12 दिसम्बर को पारित किया गया था। 4 नवम्बर 2016 को यह समझौता लागू हो गया था।
- पेरिस समझौते का लक्ष्य औद्योगिक काल के पूर्व के स्तर की तुलना में वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखना है, और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये विशेष प्रयास किये जाने हैं।
- तापमान सम्बन्धी इस दीर्घकालीन लक्ष्य को पाने के लिये देशों का लक्ष्य, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के उच्चतम स्तर पर जल्द से जल्द पहुँचना है ताकि उसके बाद, वैश्विक स्तर पर उसमें कमी लाने की प्रक्रिया शुरू की जा सके।
- इसके ज़रिये 21वीं सदी के मध्य तक कार्बन तटस्थता (नैट कार्बन उत्सर्जन शून्य) हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है।जलवायु कार्रवाई के लिये बहुपक्षीय प्रक्रिया में पेरिस समझौता एक अहम पड़ाव है।
- पहली बार क़ानूनी रूप से बाध्यकारी एक समझौते के तहत सभी देशों को, साझा उद्देश्य की पूर्ति हेतु साथ लाया गया है ताकि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटा जा सके और अनुकूलन के प्रयास सुनिश्चित किये जा सकें।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन(UNFCCC) क्या है?
- UNFCCC को 21 मार्च 1994 को लागू किया गया।इस कन्वेंशन में लगभग 198 सदस्य देश शामिल हैं।
- उद्देश्य : कन्वेंशन का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को "उस स्तर पर स्थिर करना है जो जलवायु प्रणाली में खतरनाक मानवजनित (मानव प्रेरित) हस्तक्षेप को रोक सके।"
- इसमें कहा गया है कि "इस तरह के स्तर को समय-सीमा के भीतर हासिल किया जाना चाहिए ताकि पारिस्थितिक तंत्र प्राकृतिक रूप से जलवायु परिवर्तन के अनुकूल हो सके, यह सुनिश्चित हो सके कि खाद्य उत्पादन को खतरा न हो और आर्थिक विकास को स्थायी तरीके से आगे बढ़ने में सक्षम बनाया जा सके।"
- कार्य : विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन गतिविधियों के लिए नए फंड निर्देशित करना।
UNFCCC और रियो कन्वेंशन
- रियो कन्वेंशन(1992) जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन और मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए कन्वेंशन है। तीनों(UNFCCC और रियो कन्वेंशन तथा पेरिस समझौता ) आंतरिक रूप से जुड़े हुए हैं।
- इसी संदर्भ में संयुक्त संपर्क समूह की स्थापना तीन सम्मेलनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी, जिसका अंतिम उद्देश्य आपसी चिंता के मुद्दों पर उनकी गतिविधियों में तालमेल विकसित करना था।
जीवाश्म ईंधन
- जीवाश्म ईंधन अनवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत हैं तथा पृथ्वी पर इनके सीमित भंडार स्थित हैं।
- जीवाश्म ईंधन एक हाइड्रोकार्बन युक्त सामग्री होता है जैसे- कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस।
- यह जीवाश्म ईंधन मृत पौधों और जानवरों के अवशेषों से पृथ्वी की परत में प्राकृतिक रूप से बनता है जिसे ईंधन के रूप में निकाला और जलाया जाता है।
जीवाश्म ईंधन से हानि
- जीवाश्म ईंधन से जल प्रदूषण :जीवाश्म ईंधन को जलाने से कार्बन, नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं। सल्फर के ऑक्साइड अम्लीय होते हैं और वे अम्लीय वर्षा का कारण बनते हैं जिससे हमारे जल और मृदा के संसाधनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- जीवाश्म ईंधन से वायु प्रदूषण : जीवाश्म ईंधन के जलने से वायु में हानिकारक कणिकाएं और धुआँ प्रदूषण फैलाते हैं जिस कारण कई तरह के श्वसन संबंधी रोग फैलते हैं।
- कार्बन डाइऑक्साइड ग्रीन हाऊस प्रभाव से वातावरणीय तापमान में वृद्धि करती है और कार्बन मोनोऑक्साइड बंद कमरों में सोये हुए लोगों में कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन बना देता है जिससे लोगों की मृत्यु हो जाती।
प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न: निम्नलिखित में से किसको पेरिस एक्ट के रूप में भी जाना जाता है?
(a) COP 18
(b) COP 20
(c) COP 21
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:(c)
मुख्य परीक्षा प्रश्न: ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव को कम करने में पेरिस समझौते की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
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