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उच्च न्यायालय के पास अनुसूचित जनजाति की सूची में बदलाव का निर्देश देने की शक्ति नहीं

प्रारंभिक परीक्षा -  अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जनजाति की सूची में में शामिल करने की प्रक्रिया
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्यन प्रश्न पत्र 2 – केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय

सन्दर्भ 

  • हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा कहा गया कि उच्च न्यायालय के पास अनुसूचित जनजाति की सूची में बदलाव के लिए निर्देश देने की शक्ति नहीं है।  

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • 27 मार्च को मणिपुर उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने निर्देश दिया गया कि राज्य सरकार, अनुसूचित जनजाति की सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने के मामले पर इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर विचार करे।
  • मणिपुर उच्च न्यायालय के इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी थी। 
  • सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, वर्ष 2000 में संविधान पीठ के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी अदालत या राज्य सरकार के पास अनुसूचित जनजाति की सूची में जोड़ने, घटाने या संशोधित करने की शक्ति नहीं है।
  • संविधान पीठ ने कहा था कि अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत अनुसूचित जनजातियों को निर्दिष्ट करने वाली अधिसूचना को केवल संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा संशोधित किया जा सकता है।

अनुसूचित जनजाति

  • संविधान अनुसूचित जनजाति की मान्यता के मापदंडो का उल्लेख नहीं करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 366(25) के अनुसार अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदाय से है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार अनुसूचित जनजाति माना जाता है।
  • अनुच्छेद 342(1 ) के अनुसार राष्ट्रपति किसी राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश के मामले में वहां के राज्यपाल से परामर्श करने के बाद किसी जनजाति या जनजातीय समूह को या उसके किसी हिस्से को उस राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश के मामले में अनुसूचित जनजाति के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगा।
  • अनुसूचित जनजाति की मान्यता राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश विशिष्ट होती है, अर्थात अनुसूचित जनजाति की सूची प्रत्येक राज्य के लिये अलग-अलग होती है।
  • कोई समुदाय जो एक राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत है, आवश्यक नहीं है की वह किसी अन्य राज्य में भी अनुसूचित जनजाति ही माना जाये।

अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की प्रकिया

  • राज्य सरकार समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया शुरु करती है, और प्रस्ताव को जनजातीय मामलों के मंत्रालय के पास भेजती है, जो इस प्रस्ताव की समीक्षा करता है।
  • जनजातीय कार्यों का मंत्रालय इसे अनुमोदन के लिए भारत के महापंजीयक के पास भेज देता है।
  • भारत के महापंजीयक के अनुमोदन के बाद इस प्रस्ताव पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की मंजूरी ली जाती है, तथा अंतिम निर्णय के लिए इसे कैबिनेट के पास भेज दिया जाता है।
  • कैबिनेट की सहमति के बाद राष्ट्रपति द्वारा जारी अधिसूचना के माध्यम से उस समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल कर लिया जाता है। 

अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल होने के लाभ 

  • सरकार द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए चलायी जा रही वर्तमान योजनाओं का लाभ प्राप्त करने की पात्रता हासिल।
  • सरकारी सेवाओं में आरक्षण का लाभ।
  • शिक्षा संस्थाओ में प्रवेश में आरक्षण।
  • अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगम की तरफ से रियायती ऋण प्राप्त करने की पात्रता।
  • सरकार की तरफ से दी जा रही छात्रवृत्तियों का लाभ।
  • संविधान का अनुच्छेद 243(घ) पंचायतो में अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद 330 लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद 332 विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
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