केट्टुवल्लम (Kettuvallam) केरल की पारंपरिक नौकाएँ हैं जो मुख्यत: वहाँ के बैकवाटर (पश्चजल) में उपयोग की जाती हैं। मलयालम में ‘केट्टु’ का अर्थ ‘बाँधना’ होता है और ‘वल्लम’ का अर्थ ‘नौका’ होता है जो इनके निर्माण विधि को दर्शाता है।
पारंपरिक रूप से इसमें काष्ठ पटल (लकड़ी के टुकड़ों/तख्तों को नारियल की रस्सियों/कॉयर) से बाँधा जाता है। पहले ये नौकाएँ चावल, मसाले एवं अन्य सामानों को केरल के नदियों व नहरों के माध्यम से ढोने के लिए उपयोग की जाती थीं। अब इन्हें पर्यटकों के लिए आकर्षक हाउसबोट्स में बदल दिया गया है जो केरल पर्यटन का एक प्रमुख आकर्षण हैं।
केट्टुवल्लम की विशेषताएँ
सामग्री:पर्यावरण-अनुकूल एवं स्थानीय संसाधन का प्रयोग
लकड़ी:नौका के ढाँचे के लिए अंजिली (Artocarpus hirsuta) या जैकवुड का उपयोग
कॉयर रस्सियाँ:बिना कील के लकड़ी के ढांचों को जोड़ने के लिए
बाँस एवं ताड़ के पत्ते:फूस की छत व चटाइयों के लिए
काजू की राल:नौका को टिकाऊ बनाने के लिए लेपन
डिज़ाइन:लंबी (60–100 फीट), फूस से निर्मित घुमावदार नौकाओं के ऊपर टोकरियों जैसी छत होती है। इन छतों को वलावारा (Valavara) कहते हैं।
पारंपरिक शिल्प: कील के बिना निर्मित यह नौका केरल की नौकायन कला को दर्शाती हैं।
संचालन: उथले जल में बाँस के पतवार से संचालित होती है जिसे कज़्हुकोल (Kazhukol) कहते हैं।
गहरे जल में इंजन से संचालित होती है।
ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व
उत्पत्ति: लगभग 3000 ईसा पूर्व से मुख्यतः कुट्टनाड से कोच्चि तक चावल एवं मसाले के व्यापार के लिए उपयोग होती थीं। सड़कों के अभाव में ये ग्रामीण क्षेत्रों का मुख्य परिवहन साधन थीं।
सांस्कृतिक भूमिका: केरल के राजाओं ने इन्हें फ्लोटिंग पैलेस के रूप में उपयोग किया।
पर्यटन के रूप में प्रयोग: 1990 के दशक में सड़क एवं रेल परिवहन के कारण इनका व्यापारिक उपयोग कम हुआ किंतु पर्यटन में इन्हें हाउसबोट्स के रूप में प्रयोग किया जाने लगा।