(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान व निकाय) |
संदर्भ
बिहार में मानव तस्करी, विशेष रूप से नाबालिग बालिकाओं की तस्करी, एक गंभीर समस्या बन गई है जो सामाजिक एवं आर्थिक कारकों से बढ़ रही है। हाल के वर्षों में बिहार पुलिस एवं गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) ने कई बचाव अभियान चलाए किंतु यह समस्या जड़ से समाप्त नहीं हुई है।
मानव तस्करी के बारे में
- मानव तस्करी एक संगठित अपराध है जिसमें लोगों को जबरदस्ती या धोखे से भर्ती, परिवहन या शोषण के लिए बंधक बनाया जाता है।
- इसमें यौन शोषण, बंधुआ मजदूरी, बाल श्रम एवं जबरन विवाह जैसे अपराध शामिल हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, विश्व भर में लगभग 40.3 मिलियन लोग मानव तस्करी के शिकार हैं जिनमें से अधिकांश महिलाएँ व बच्चे हैं।
भारत में स्थिति : एक विश्लेषण
- भारत में मानव तस्करी एक गंभीर समस्या है जिसमें लोग यौन शोषण, बंधुआ मजदूरी एवं जबरन विवाह के लिए तस्करी का शिकार बनते हैं।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2022 में 2,878 बच्चों की तस्करी दर्ज की गई, जिसमें 1,059 बालिकाएँ थीं।
- पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र जैसे राज्य तस्करी के लिए प्रमुख स्रोत के साथ-साथ पारगमन व गंतव्य क्षेत्र हैं।
बिहार एवं ऑर्केस्ट्रा समूह
- भारत में बिहार मानव तस्करी का एक प्रमुख गंतव्य बन गया है, विशेष रूप से ‘ऑर्केस्ट्रा बेल्ट’ क्षेत्रों, जैसे- सारण, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, रोहतास एवं पश्चिम चंपारण में।
- ऑर्केस्ट्रा समूहों के नाम पर नाबालिग बालिकाओं को झूठे वादों (नृत्य प्रशिक्षण, रोजगार या स्टारडम) का लालच देकर तस्करी की जाती है।
- इस वर्ष जून तक बिहार पुलिस ने 271 बालिकाओं को बचाया, जिनमें 153 ऑर्केस्ट्रा से और 118 देह व्यापार से थीं। सारण जिले में जनवरी से 162 लड़कियों को बचाया गया।
- इन बालिकाओं को अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता है जहाँ उन्हें अनुचित कपड़े पहनने और अश्लील गीतों पर नृत्य करने के लिए मजबूर किया जाता है। विरोध करने पर शारीरिक एवं यौन शोषण का सामना करना पड़ता है।
कानून एवं नीतियाँ
- भारत में मानव तस्करी को रोकने के लिए कई कानून मौजूद हैं:
- अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम (ITPA), 1956 : यौन शोषण के लिए तस्करी को दंडित करता है जिसमें सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।
- बाल यौन शोषण संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 : बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने के लिए।
- बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 : बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने के लिए।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) : धारा 366(A) एवं 372 के तहत अपहरण व नाबालिगों को वेश्यावृत्ति के लिए बेचने की सजा का प्रावधान।
- किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 : बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए।
- हालाँकि, इन कानूनों का कार्यान्वयन कमजोर है और दोषसिद्धि दर बहुत कम है।
सरकारी पहल
- मानव तस्करी रोधी इकाइयाँ (AHTUs) : गृह मंत्रालय ने जिला स्तर पर AHTUs की स्थापना की है जो कानून प्रवर्तन, अभियोजकों एवं NGOs के बीच समन्वय स्थापित करती हैं।
- उज्ज्वला योजना : महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा यौन शोषण के लिए तस्करी की शिकार महिलाओं और बच्चों के बचाव, पुनर्वास व पुनर्जनन के लिए।
- सबला योजना : यह 11-18 वर्ष की किशोरियों के सशक्तिकरण के लिए है जो तस्करी की जोखिम को कम करने में मदद करती है।
- रेलवे सुरक्षा बल (RPF) : रेलवे स्टेशनों पर निगरानी एवं जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।
- निर्भया फंड : AHTUs को मजबूत करने और तस्करी रोधी उपायों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- पटना उच्च न्यायालय का निर्देश : बिहार सरकार को ऑर्केस्ट्रा समूहों में नाबालिगों के रोजगार पर तत्काल रोक लगाने और नियमन के लिए रणनीति बनाने का आदेश।
चुनौतियाँ
- पुलिस भ्रष्टाचार एवं निष्क्रियता : कुछ पुलिस अधिकारी तस्करों को संरक्षण देते हैं या रिश्वत लेकर पीड़ितों को वापस तस्करों के हवाले कर देते हैं।
- कमजोर कानून प्रवर्तन : AHTUs के पास संसाधनों और प्रशिक्षित अधिकारियों की कमी है तथा कई इकाइयों का वास्तविकता में अस्तित्व नहीं है।
- अंतर-राज्यीय समन्वय की कमी : विभिन्न राज्यों के बीच समन्वय और सूचना साझा करने में बाधाएँ।
- सामाजिक एवं आर्थिक कारक : गरीबी, अशिक्षा एवं सामाजिक स्वीकृति तस्करी को बढ़ावा देती है।
- पुनर्वास की कमियाँ : बचाई गई बालिकाओं को प्राय: उसी परिवार में वापस भेज दिया जाता है जिन्होंने उनकी तस्करी में सहयोग किया था।
- निम्न दोषसिद्धि दर : अधिकांश मामले अपहरण या गुमशुदगी के रूप में दर्ज किए जाते हैं, जिससे तस्करों को सजा नहीं मिलती है।
आगे की राह
- नीति निर्माण : बच्चों एवं महिलाओं के शोषण को रोकने के लिए स्पष्ट व कठोर नीति निर्माण
- संस्थागत ढांचा : AHTUs को पूर्णकालिक प्रशिक्षित अधिकारियों एवं संसाधनों के साथ मजबूत करना
- समन्वय : सरकारी एजेंसियों, NGOs एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच बेहतर समन्वय और डिजिटल बुनियादी ढांचे का उपयोग
- जागरूकता : समुदायों में तस्करी के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और पीड़ितों की जानकारी का उपयोग नेटवर्क को तोड़ने में करना
- आर्थिक उपाय : तस्करी को आर्थिक रूप से अस्थिर करना, जैसे- तस्करों की संपत्ति जब्त करना और ऑर्केस्ट्रा समूहों पर निगरानी
- प्रौद्योगिकी : तस्करों को ट्रैक करने, डाटाबेस बनाने और गतिविधियों की भविष्यवाणी के लिए तकनीक का उपयोग
- पुनर्वास और मुआवजा : पीड़ितों के लिए दीर्घकालिक, राज्य-निगरानी पुनर्वास और मुआवजा योजनाओं का कड़ाई से कार्यान्वयन