(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य व उत्तरदायित्व) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने 19 नवंबर, 2025 को ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 की कई महत्वपूर्ण धाराएँ असंवैधानिक घोषित कर दीं। न्यायालय ने कहा कि यह कानून केंद्र सरकार को ट्रिब्यूनलों की नियुक्ति, कार्यप्रणाली एवं सेवा शर्तों पर अत्यधिक नियंत्रण देता है जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता के विरुद्ध है। न्यायालय ने केंद्र को चार माह के भीतर राष्ट्रीय प्राधिकरण आयोग (NTC) स्थापित करने का निर्देश दिया।
हालिया मुद्दा
- सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि प्राधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 ने वही प्रावधान दोबारा लागू कर दिए जो वर्ष 2021 के ही अध्यादेश में थे और जिन्हें न्यायालय पहले ही रद्द कर चुका था।
- इससे संसद ने न्यायालय के आदेशों को नजरअंदाज करते हुए विधायिका अध्यारोपण किया। कई प्रावधान कार्यपालिका को अत्यधिक शक्ति देते हैं जिससे ट्रिब्यूनलों की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
प्राधिकरण सुधार अधिनियम 2021
- यह कानून वर्ष 2021 में पारित किया गया था, जिसका उद्देश्य है:
- विभिन्न ट्रिब्यूनलों का विलय करना
- सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया बदलना
- सेवा शर्तों पर नए नियम लागू करना
- परंतु इसकी कई धाराएँ पहले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द किए गए अध्यादेश जैसी थीं।
केंद्र का अध्यादेश और उसका दोहराव
- वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने प्राधिकरण सुधार अध्यादेश जारी किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2021 में इसे असंवैधानिक घोषित किया।
- हालाँकि, इसके बाद संसद ने लगभग वही प्रावधान थोड़े बदलाव के साथ अधिनियम में दोबारा शामिल किए। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे ‘नई बोतल में पुरानी शराब’ जैसा बताया।
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश : मुख्य बिंदु
- संसद न्यायालय के आदेशों को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।
- ट्रिब्यूनलों की स्वतंत्रता एक संवैधानिक आवश्यकता है।
- कार्यपालिका को ट्रिब्यूनल नियुक्ति और सेवा शर्तों पर अत्यधिक नियंत्रण नहीं दिया जा सकता है।
- चार माह में राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग की स्थापना अनिवार्य है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द प्रावधान
1. कार्यकाल
- अधिनियम में ट्रिब्यूनल सदस्यों का चार वर्ष का कार्यकाल तय किया गया था।
- सर्वोच्च न्यायालय पहले ही कह चुका था कि यह बहुत कम है और स्वतंत्रता को कमजोर करता है।
- इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित करके रद्द किया गया।
2. न्यूनतम आयु सीमा 50 वर्ष
- इस अधिनियम में सदस्यों के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष निर्धारित की गई थी।
- न्यायालय ने कहा कि इससे योग्य, अनुभवी किंतु युवा विशेषज्ञ बाहर हो जाते हैं।
- यह आयु सीमा अव्यवहारिक और असंवैधानिक है, इसलिए रद्द की गई।
3. केंद्र सरकार का अत्यधिक नियंत्रण
- वेतन, भत्ता, कार्यकाल, नियुक्ति प्रक्रिया आदि पर केंद्र सरकार का नियंत्रण था।
- न्यायालय ने इसे न्यायिक स्वतंत्रता के विरुद्ध माना।
4. नौ ट्रिब्यूनलों का बंद करना
- कई विशेष ट्रिब्यूनल समाप्त कर उनके मामलों को उच्च न्यायालयों में भेज दिया गया था।
- इससे उच्च न्यायालयों का भार बढ़ा और विशेषज्ञ न्याय की व्यवस्था कमजोर हुई।
- यह प्रावधान भी असंवैधानिक घोषित किया गया।
मुख्य बिंदु
- केंद्र ट्रिब्यूनलों की संरचना, नियुक्ति एवं वेतन पर मनमानी नहीं कर सकता है।
- न्यायालय ने कहा कि उनका पूर्व आदेश केवल सलाह नहीं था, बल्कि बाध्यकारी निर्देश थे।
- अदालत ने स्पष्ट किया कि ‘संविधान वही है जो सर्वोच्च न्यायालय कहता है’।
- कार्यपालिका की शक्तियाँ सीमित हैं और न्यायिक स्वतंत्रता सर्वोपरि है।
महत्त्व
- यह निर्णय भारत में न्यायिक संस्थाओं की स्वतंत्रता को मजबूत करता है।
- ट्रिब्यूनलों की नियुक्ति और सेवा शर्तों में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित होगी।
- राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग एक एकीकृत, स्वतंत्र निगरानी तंत्र बनाएगा।
- निर्णय कार्यपालिका द्वारा न्यायिक निर्देशों की अनदेखी को रोकने का संदेश देता है।
चुनौतियाँ
- NTC का गठन चार माह में करना प्रशासनिक रूप से कठिन हो सकता है।
- केंद्र व न्यायपालिका के बीच सामंजस्य बनाए रखना चुनौतीपूर्ण रहेगा।
- ट्रिब्यूनलों में रिक्त पद, ढांचा और सुविधाएँ पहले से ही अपर्याप्त हैं।
- समाप्त किए गए ट्रिब्यूनलों के कारण उच्च न्यायालयों का बढ़ा भार तुरंत कम नहीं होगा।
- नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित करना कठिन रहेगा।
आगे की राह
- NTC को जल्द से जल्द स्थापित किया जाए।
- नियुक्ति प्रक्रिया में विशेषज्ञता, विविधता और स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी जाए।
- उच्च न्यायालयों और ट्रिब्यूनलों के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए।
- सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों को बाध्यकारी मानते हुए नीति बनानी चाहिए।
- विधायी सुधारों का उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता, दक्षता और जवाबदेही बढ़ाना होना चाहिए।