हाल ही में, QS (Quacquarelli Symonds) संस्था ने QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी सस्टेनेबिलिटी रैंकिंग 2026 जारी की हैं। इस बार भारत की 103 विश्वविद्यालयों को इस सूची में शामिल किया गया है जिससे भारत चौथे स्थान पर रहा है।
QS सस्टेनेबिलिटी रैंकिंग्स के बारे में
- QS सस्टेनेबिलिटी रैंकिंग्स की शुरुआत वर्ष 2023 में हुई थी। इसका उद्देश्य उच्च शिक्षा संस्थानों का मूल्यांकन पर्यावरणीय एवं सामाजिक स्थिरता के आधार पर करना है।
- यह रैंकिंग विश्वविद्यालयों की क्षमता को मापती है कि वे वैश्विक सतत विकास, हरित कौशल, ज्ञान विनिमय एवं समानता को कितनी प्रभावी तरह आगे बढ़ा रहे हैं।

प्रमुख मानक एवं संकेतक
- पर्यावरणीय प्रभाव : पर्यावरण अनुसंधान, स्थिरता संस्थान, पर्यावरण शिक्षा
- सामाजिक प्रभाव : समानता, शिक्षा का प्रभाव, रोजगार क्षमता एवं परिणाम, ज्ञान आदान-प्रदान, स्वास्थ्य व कल्याण
- शासन व्यवस्था : नीति, पारदर्शिता एवं सतत प्रबंधन
विश्व में शीर्ष स्थान
- पहला स्थान : लुंड यूनिवर्सिटी (स्वीडन)
- दूसरा स्थान : टोरंटो विश्वविद्यालय (कनाडा)
- तीसरा स्थान : यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यू.के.)
- शीर्ष 15 में U.K., कनाडा, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया और U.S. के संस्थानों का दबदबा रहा।
- कुल लगभग 2,000 संस्थान 100+ देशों से इस रैंकिंग में शामिल किए गए।
भारत का प्रदर्शन
- भारत के 103 विश्वविद्यालय इस सूची में शामिल हुए, जो विश्व में चौथे स्थान पर है।
- IIT दिल्ली भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला संस्थान रहा, जिसकी रैंक 205 रही।
- भारत के 12 संस्थान शीर्ष 500 में शामिल हुए, जो चीन एवं नीदरलैंड्स के बराबर है।
शीर्ष प्रदर्शनकर्ता
- पर्यावरण शिक्षा : IIT दिल्ली, IIT बॉम्बे, IIT मद्रास, IIT कानपुर, JNU, BHU, IISc
- रोजगार क्षमता एवं परिणाम
- IIT दिल्ली (93वाँ)
- IIT खड़गपुर (96वाँ)
- ज्ञान आदान-प्रदान में: दिल्ली विश्वविद्यालय शीर्ष 100 में (94वाँ)
- पर्यावरण प्रभाव : IIT बॉम्बे - 100वाँ
रैंकिंग का महत्व
- विश्वविद्यालयों की हरित क्षमता, शोध क्षमता, सामाजिक उत्तरदायित्व एवं सतत विकास लक्ष्य (SDGs) में योगदान का मूल्यांकन होता है।
- यह रैंकिंग बताती है कि कोई देश जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा, समानता और वैश्विक विकास में कितना निवेश कर रहा है।
- भारत के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि
- भारत वैश्विक सतत विकास में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
- हरित कौशल और जलवायु-केंद्रित अनुसंधान की मांग बढ़ रही है।
- उच्च शिक्षा संस्थान भविष्य के ‘ग्रीन इनोवेटर्स’ और ‘क्लाइमेट लीडर्स’ तैयार करते हैं।