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नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस अधिनियम : चुनौतियाँ एवं समाधान

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से सबंधित प्रश्न)
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2  सरकारी नीतियों एवं अधिनियमों के कार्यान्वयन से जुड़े विषय)

संदर्भ

हाल ही में, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस (NDPS) अधिनियम में बदलाव के संकेत दिये है। 

एन.डी.पी.एस अधिनियम

  • भारत यूनाइटेड स्टेट् सिंगल कन्वेंशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स-1961, कन्वेंशन ऑन साइकोट्रोपिक सब्सटेंस-1971 और कन्वेंशन ऑन इलीसिट ट्रैफिक ऑन नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस, 1988 का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है। अतः इस संदर्भ में भारत ने भी नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 पारित किया।
  • यह अधिनियम नशीली दवाओं और साइकोट्रोपिक पदार्थों के नियंत्रण और विनियमन हेतु कड़े प्रावधान करता है। अधिनियम के कार्यान्वयन हेतु वर्ष 1986 नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरोका गठन किया गया।
  • इस अधिनियम में नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार से अर्जित संपत्ति व आय की ज़ब्ती का प्रावधान है। इसमें अपराध की पुनरावृत्ति पर मौत की सज़ा का प्रावधान भी किया गया है।

 नवीनतम संशोधन

  • हाल ही में, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस (NDPS) अधिनियम, 1985 के कुछ प्रावधानों में बदलावों का प्रस्ताव किया गया है। इसमें व्यक्तिगत उद्देश्यों के लिये कम मात्रा में मादक दवाओं को रखने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का प्रस्ताव प्रमुख है। 
  • एक अन्य प्रस्ताव यह है कि कम मात्रा में नशीले पदार्थों का उपयोग करने वाले व्यक्तियों को पीड़ित के रूप में माना जाए।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2014 में एक संशोधन के माध्यम से आवश्यक मादक दवाओंके रूप में वर्गीकृत दवाओं के परिवहन और लाइसेंसिंग में राज्य- स्तर पर उत्पन्न बाधाओं को समाप्त कर इसे केंद्रीकृत किया था।
  • इसके तहत आवश्यक नशीले पदार्थों को परिभाषित किया गया तथा आवश्यक मादक दवाओं के निर्माण, परिवहन, अंतर्राज्यीय आयात-निर्यात, खरीद-बिक्री, खपत और उपयोग की अनुमति दी गई।

चुनौतियाँ

  • वर्तमान में एन.डी.पी.एस. अधिनियम, 1985 में सर्वप्रथम गिरफ़्तारी तथा उसके बाद जाँच का प्रावधान है, अत: कई बार दोषी व्यक्ति की बजाय निर्दोष लोगो की गिरफ़्तारी हो सकती है।
  •  नशीली दवाओं की तस्करी एक संगठित अपराध है, इसलिये पुलिस के लिये प्रथम से अंतिम स्रोत तक शामिल अपराधियों को पकड़ना चुनौतीपूर्ण होता है।
  • मादक पदार्थों के परिवहन की जाँच करना मुश्किल है क्योंकि सड़कों पर चल रहे प्रत्येक वाहनों को रोक कर जाँच करना चुनौतीपूर्ण है, साथ ही यह सार्वजनिक अव्यवस्था भी उत्पन्न कर सकता है।
  • राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर मादक पदार्थों के स्रोत का पता लगाना और उन्हें नष्ट करना एक बड़ी चुनौती है।
  • राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों तथा नक्सलवादी क्षेत्रों में मादक पदार्थों की खेती करने वाले आरोपियों को पकड़ना संभव नहीं है।
  • त्वरित न्याय के अभाव के कारण मादक पदार्थों के संदर्भ में अभियुक्तों की दोषसिद्धि सुनिश्चित करना कठिन कार्य है। 
  • हालिया प्रस्तावित संशोधन को लागू करना भी एक प्रमुख चुनौती होगी क्योंकि भारत के पास इसके लिये पर्याप्त नशामुक्ति केंद्रों तथा परामर्शदाताओं का अभाव है। 
  • नशे के आदी गरीब समुदाय के युवा सामान्यतया नशे के लिये व्हाइटनर, ग्लू तथा पेंटिंग रसायनों आदि का प्रयोग करते हैं, इन पदार्थों के नियमन हेतु अभी भी प्रशासन व्यवस्था अधिक सजग नहीं है। 

समाधान

  • भारत में मादक पदार्थों से संबंधित अपराधों पर नियंत्रण हेतु एक प्रभावी आसूचना तंत्र की आवश्यकता है ताकि ऐसे अपराधों के संदर्भ में विश्वसनीय सूचना प्राप्त कर अपराधियों को पकड़ा जा सके।
  • राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर तथा अंतर्राज्यीय मादक पदार्थों की तस्करी के संबंध में विभिन्न राज्यों तथा केंद्र के मध्य समन्वय आवश्यक है ताकि उत्पन्न चुनौतियों से निपटा जा सके।
  • एन.डी.पी.एस. अधिनियम, 1985 के अंतर्गत आने वाले अपराधों के संदर्भ में त्वरित कार्रवाई एवं न्याय हेतु अलग से फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की आवश्यकता है।
  • हालिया प्रस्तावित संशोधन को लागू करने के लिये भी भारत में नशा मुक्ति केंद्रों के निर्माण की आवश्यकता के साथ बड़ी संख्या में परामर्शदाताओं की भी ज़रूरत पड़ेगी।
  • भारत में ड्रग पेडलर और अंतिम उपयोगकर्ता के मध्य अंतर की पहचान करने की आवश्यकता है क्योंकि व्यक्तिगत उपयोग के लिये कम मात्रा में इसका प्रयोग करने वाले व्यक्ति को नशीले पदार्थों का उत्पादन करने वाले व्यक्ति के साथ श्रेणीबद्ध नहीं किया जा सकता है। 
  • एक दवा उपयोगकर्ता को एक रोगी के रूप में देखा जाना चाहिये न की ड्रग पैडलर के रूप में, जबकि वर्तमान अधिनियम सभी के लिये समान दंड निर्धारित करता है।
  • यदि कोई पहली बार नशीली दवाओं के मामले में पकड़ा जाता है तो ऐसे व्यक्तियों को सुधार हेतु पुनर्वास केंद्र भेजा जाना चाहिये।
  • चर्चित मादक पदार्थों के अतिरिक्त नशे के लिये प्रयोग किये जाने वाले अन्य पदार्थों, जैसे- ग्लू, व्हाइटनर, पेंटिंग रसायन आदि की बिक्री पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • भारत में मादक पदार्थों के उपयोग तथा युवाओं को इससे बचाने हेतु जागरूकता ज़मीनी स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष 

भारत में मादक पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति तथा इनका अवैध व्यापार लगातार बढ़ता जा रहा है। यह न केवल मानव स्वास्थ्य व समाज के लिये हानिकारक है बल्कि देश के लिये सुरक्षा चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है। मादक पदार्थों से संबंधित अपराधों से निपटने के लिये सरकारी नीतियों एवं कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन आवश्यक है। साथ ही, युवाओं में नशे की प्रवृत्ति को समाप्त करने के लिये ज़मीनी स्तर पर जागरूकता फ़ैलाने की भी आवश्यकता है, ताकि देश अपने जनसंख्या लाभांश का उचित उपयोग करने में सक्षम हो सके।

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