New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

कृषि खाद्य जैव प्रौद्योगिकी में निवेश की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: भारतीय कृषि, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)

संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों से भारतीय कृषि क्षेत्र पर प्रौद्योगिकी का सकारात्मक प्रभाव देखा जा रहा है। कृषि प्रौद्योगिकी (एग्रीटेक) में निवेश अब तक के उच्चत्तम स्तर पर पहुँच गया है।

भारतीय कृषि खाद्य जैविक प्रौद्योगिकी के प्रमुख क्षेत्र 

  • भारत में कृषि खाद्य जैविक विज्ञान (Agrifood Life Sciences) के क्षेत्र में मुख्यत: चार श्रेणियों पर ध्यान दिया जाता है-
    • कृषि जैव प्रौद्योगिकी (Agricultural Biotechnology): इसमें फसल और पशुओं के चारे से संबंधित कृषि के लिये ‘ऑन-फार्म इनपुट’ शामिल होता हैं, जिसमें आनुवंशिकी, माइक्रोबायोम, प्रजनन और पशु स्वास्थ्य को समाहित किया जाता है।
    • नवीन कृषि प्रणाली (Novel Farming Systems): इसमें इनडोर फार्मिंग, पुनरावर्ती जलीय कृषि प्रणाली (Recirculating Aquaculture System), कीट प्रोटीन (Insect Protein) और शैवाल उत्पादन को शामिल किया जाता है।
    • जैव ऊर्जा और जैव सामग्री (Bioenergy and Biomaterials): इसके अंतर्गत कृषि अपशिष्ट प्रसंस्करण, जैव सामग्री उत्पादन और फीडस्टॉक तकनीक शामिल हैं।
    • नवाचारी खाद्य पदार्थ (Innovative Foods): इसमें वैकल्पिक प्रोटीन के विभिन्न रूपों (पौधे, कोशिका व किण्वन पर आधारित), कार्यात्मक खाद्य पदार्थों (पोषण के साथ-साथ चिकित्सीय या शारीरिक लाभ प्रदान करने वाले) और अन्य नवीन सामग्रियों को शामिल किया जाता है।

भारत की स्थिति

  • सिंथेटिक जैविक विज्ञान, रसायन विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी में होने वाले नवाचारों की मौजूदा स्थिति को देखते हुए कृषि खाद्य जैविक विज्ञान के क्षेत्र में उद्यमशील गतिविधियों में अधिक परिवर्तन की संभावना कम ही है।
  • भारत जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले देशों में शामिल है क्योंकि यहाँ के किसान आज भी कृषि के लिये मानसून पर निर्भर हैं।
  • ग्रामीण भारत के सतत विकास को सुनिश्चित करने में डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ पर्याप्त भूमिका नहीं निभा पा रहीं हैं।

कृषि प्रौद्योगिकी पर ध्यान देने की आवश्यकता

  • वर्तमान में अधिकंश स्टार्टअप और एग्रीटेक गतिविधियाँ डिजिटल प्रौद्योगिकी, ई-कॉमर्स, फुल-स्टैक फार्मर प्लेटफॉर्म, ग्रामीण फिनटेक और मार्केटप्लेस पर ही केंद्रित हैं। ‘फुल स्टैक’ सॉफ़्टवेयर और प्रौद्योगिकियों का एक संपूर्ण सेट होता है।
  • भारत में ‘कृषि खाद्य जैविक विज्ञान’ में नवाचारों के लिये पूँजी निवेशकों और उद्यमियों ने बहुत ध्यान नहीं दिया है। अमेरिका, इज़राइल, यूरोप और चीन कृषि खाद्य जैविक विज्ञान के क्षेत्र में यूनिकॉर्न स्टार्टअप का निर्माण कर रहे हैं, जबकि भारत इस क्षेत्र में हासिये पर जा रहा है।
  • प्रायः प्रत्येक तकनीक को विकास के चरणों में कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण प्रौद्योगिकी अपनी पूर्ण क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पाती है। प्रौद्योगिकी इतिहासकार ‘थॉमस ह्यूजेस’ ने इन बाधाओं को ‘रिवर्स सैलिएंट्स’ (Reverse Salient) कहा है। भारत में रिवर्स सैलिएंट्स के प्रभाव को सीमित करने की आवश्यकता है।

    संभावनाएँ

    • कृषि खाद्य जैविक विज्ञान में नवाचार के माध्यम से जलवायु शमन और जलवायु अनुकूलन करते हुए किसानों के भविष्य को बेहतर बनाया जा सकता है। साथ ही, यह कृषि मूल्य श्रृंखलाओं को सुदृढ़ करने के अवसर प्रदान कर सकता है।
    • नई प्रजातियों के माध्यम से भारत के मोटे अनाजों व दालों को प्रोटीन युक्त बनाकर वैश्विक माँग को पूरा किया जा सकता है। इससे पशु और मछलियों के खाद्य सामग्री को प्रोटीनयुक्त भी बनाया जा सकता है।
    • पारंपरिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के लिये जैविक विकल्प विकसित किये जा सकते हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य में सुधार होगा। इस प्रकार, यह क्षेत्र बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था चक्र का निर्माण कर सकता है।

    चुनौतियाँ

    • भारतीय कृषि, विज्ञान विरोधी न होने के बावजूद भी कृषि खाद्य जैविक विज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र के क्षेत्र में उचित स्थान नहीं प्राप्त कर पाया है।
    • स्वास्थ्य जोखिम, पर्यावरणीय असंतुलन व अन्य कारणों से कभी ट्रांसजेनिक बीजों का विरोध किया जाता है तो कभी सरकार इनके उत्पादन पर प्रतिबंध लगा देती है।
    • उचित तर्क के बिना प्रौद्योगिकी नवाचारों के विरुद्ध उठाया गया कदम स्टार्टअप व नवाचारी प्रतिभाओं को प्रभावित करता है क्योंकि भारत में डिजिटल स्टार्टअप क्षेत्र में अधिकतर शिक्षित, सूचना प्रौद्योगिकी या विदेशों में कार्य कर चुके उद्यमी व निवेशक शामिल हैं।
    • पूँजी और विशेषज्ञों की कमी से भी डिजिटल स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकता है क्योंकि भारत में अन्य क्षेत्रों से जुड़े धनी वर्ग भी जैविक विज्ञान स्टार्टअप में निवेश करते है, जबकि विश्व स्तर पर इस क्षेत्र में जैविक विज्ञान में उच्च डिग्री धारक, कॉर्पोरेट फार्मास्युटिकल और बायोटेक क्षेत्रों के अनुभवी लोग ही पाए जाते हैं।

    आगे की राह

    • भारत में प्रतिभाओं, पूँजी निवेशकों और बुनियादी ढाँचे में सुधार के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र को भी कृषि खाद्य जैविक विज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र को पुनः प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। प्रवासी समुदाय को भी इसमें भागीदारी के लिये प्रोत्साहित किया जाए।
    • विश्वविद्यालयों और संस्थानों को स्वयं की बौद्धिक संपदा का अधिक व्यावसायीकरण करने की आवश्यकता है जिससे प्राध्यापकों, छात्रों तथा शोधकर्ताओं के बीच उद्यमशीलता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
    • अनुसंधान संस्थानों एवं जैविक विज्ञान अनुसंधान व विकास के बुनियादी ढाँचे को उद्यमियों तक उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
    • भारतीय कृषि-खाद्य प्रणालियों का भविष्य, वर्तमान विकल्पों पर निर्भर करता है अतः इस क्षेत्र में उद्यमियों, वैज्ञानिकों, पूँजीपतियों और नीति-निर्माताओं को एक साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
    Have any Query?

    Our support team will be happy to assist you!

    OR