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डॉक्टरेट प्रोग्राम (पीएचडी) के लिए नए नियम

(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - पीएचडी के लिए नए नियम, विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:2 – शिक्षा, सरकारी नीतियाँ)

संदर्भ 

  • हाल ही में, यूजीसी ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (पीएचडी डिग्री प्रदान करने के लिए न्यूनतम मानक और प्रक्रियाएं) विनियम, 2022 को अधिसूचित किया।
  • इन नियमों के माध्यम से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पीएचडी के पुरस्कार को नियंत्रित करने वाले अपने नियमों में व्यापक बदलाव किए हैं।

महत्वपूर्ण नियम 

  • नए नियमों के तहत, यूजीसी ने इनकी एक श्रृंखला तैयार की है, जिसमें पात्रता आवश्यकताओं, प्रवेश प्रक्रिया और मूल्यांकन पद्धतियों में महत्वपूर्ण संशोधनों के बारे में कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में डॉक्टरेट कार्यक्रमों के संचालन से संबंधित नियमों की विस्तार से जानकारी दी गई है

प्रवेश के लिए पात्रता मानदंड

  • नए नियमों में पीएचडी में प्रवेश के लिए पात्रता मानदंड में बदलाव किया गया है।
  • जिन छात्रों ने 4 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम पूरा कर लिया है, अब से वे डॉक्टरेट प्रोग्राम(PHD) में सीधे प्रवेश पाने के पात्र होंगे। 
  • यदि उम्मीदवार के चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम में 75% अंक नहीं हैं, तो उसे एक साल का मास्टर प्रोग्राम पूरा करना होगा, जिसमें कम से कम 55% स्कोर करना अनिवार्य होगा।
  • 3 वर्ष के स्नातक डिग्री प्रोग्राम के बाद 2 साल का मास्टर डिग्री प्रोग्राम, या संबंधित वैधानिक नियामक निकाय की तरफ से मास्टर डिग्री के बराबर क्वालीफिकेशन, इसकी पात्रता प्रदान करेगी।

प्रवेश परीक्षाएं

  • विश्वविद्यालय और कॉलेज, नेट (राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा) / जेआरएफ (जूनियर रिसर्च फेलोशिप) योग्यता मार्ग के साथ-साथ संस्थानों के स्तर पर प्रवेश परीक्षा के माध्यम से छात्रों को प्रवेश देने के लिए स्वतंत्र होंगे।
    • प्रवेश परीक्षा में 50% शोध पद्धति शामिल होगी, और 50 प्रतिशत विषय विशिष्ट पाठ्यक्रम।
  • यदि कोई संस्थान, छात्रों को प्रवेश देने के लिए अपनी प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है, तो उम्मीदवारों को नेट या इसी तरह की परीक्षा देने की आवश्यकता नहीं होगी।
  • जहां चयन, विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षाओं द्वारा किया जायेगा, वहां लिखित परीक्षा में प्रदर्शन के लिए 70 प्रतिशत और साक्षात्कार के लिए 30 प्रतिशत का भार दिया जाएगा।
  • नए नियमों के आधार पर अब पीएचडी की अधिक सीटों में प्रवेश होंगे।
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग( EWS) के लिए प्रवेश आवश्यकताओं में 5% की रियायत प्रदान की गई है।
  • नए नियमों के अनुसार, पीएचडी कार्यक्रम की अवधि, पाठ्यक्रम कार्य को छोड़कर न्यूनतम दो वर्ष और अधिकतम छह वर्ष होगी।
  • महिला उम्मीदवारों और दिव्यांगों को अपना शोध पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय मिलेगा।

शोधार्थियों का मूल्यांकन

  • यूजीसी ने रेफरीड पत्रिकाओं में शोध पत्र प्रकाशित करने या सम्मेलनों में प्रस्तुत करने की अनिवार्य आवश्यकता को हटा दिया है।
  • पीएचडी थीसिस जमा करने से पहले ‘पीयर-रिव्यूड जर्नल’ में शोधपत्र प्रकाशित करने की अनिवार्यता को खत्म करने के यूजीसी के फैसले की वजह से, शोधकर्ताओं द्वारा जर्नल में पैसे देकर अपने पेपर प्रकाशित करने के चलन पर रोक लगेगी।
  • यूजीसी के नए नियमों में छात्रों की रिसर्च क्वालिटी सुधारने और उनके मेंटर/गाइड की तरफ से दी जाने वाली सहायता के संबंध में कई प्रावधान किए गए है।
  • स्कॉलर्स को जहां पहले प्रत्येक छह महीने में एक बार अपने निष्कर्ष और प्रगति की जानकारी देने के लिए रिसर्च एडवाइजरी कमेटी के सामने पेश होना पड़ता था, वहीं अब उन्हें प्रत्येक सेमेस्टर में ऐसा करना होगा।

अंशकालिक पीएचडी

  • कामकाजी पेशेवर, अब अंशकालिक पीएचडी कार्यक्रमों में नामांकन कर सकेंगे, इसके लिए उम्मीदवार जहां कार्यरत है, वहां से किसी उपयुक्त अधिकारी द्वारा जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त कर संस्थान में जमा कराएंगे। 
    • NOC में स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए, कि उम्मीदवार को अंशकालिक आधार पर पढ़ाई करने की अनुमति है।

एमफिल मानदंड

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा की गयी, सिफारिश के अनुरूप पीएचडी कार्यक्रमों के लिए प्रवेश द्वार रहे एमफिल को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है, हालाँकि, इसका वर्तमान में एम.फिल डिग्री रखने वाले या वर्तमान में एम.फिल कर रहे छात्रों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
  • एम.फिल और मास्टर प्रोग्राम को हटाने का निर्णय छात्रों की मुश्किल थोड़ी बढ़ा देगा, क्योंकि उनके डॉक्टरेट अध्ययन के पहले कुछ वर्ष सिर्फ रिसर्च मैथडोलॉजी सीखने में निकल जाएंगे।
  • नए नियमों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने राजपत्र (गैजेट नोटिफिकेशन) में पांच साल का टीचिंग/रिसर्च अनुभव की शर्त को भी हटा दिया है।

नए नियमों का महत्व 

  • किसी सहकर्मी की समीक्षा की गई पत्रिका में एक शोध पत्र प्रकाशित करने के अनिवार्य नियम को समाप्त करने से, अनैतिक व्यवहार जैसे पे-टू-पब्लिश या साहित्यिक चोरी पर अंकुश लगेगा।
  • पत्रिकाओं में पत्र प्रकाशित करने से अक्सर गरीब उम्मीदवारों को अपने साथियों की तरह प्रकाशित होने के लिए भुगतान करना पड़ता है, साथ ही उन्हें नुकसान भी होता है, क्योंकि उनके पास प्रकाशित होने के लिए संपर्क नहीं होते।
  • इसकी जगह पर छात्रों को सहकर्मी-समीक्षित पत्रिकाओं में प्रकाशित करने और सम्मेलनों में उपस्थित होने के लिए प्रेरित और प्रशिक्षित किया जाएगा। 
  • विश्वविद्यालयों को अंतरराष्ट्रीय पीएचडी छात्रों के प्रवेश को नियंत्रित करने वाले अपने स्वयं के नियम बनाने की अनुमति देने से बेहतर स्वायत्तता, प्रभावी शासन और नेतृत्व मिलेगा, जो विश्व स्तर पर सभी विश्व स्तरीय संस्थानों की एक सामान्य विशेषता है।
  • पीएचडी विद्वानों के लिए नई आवश्यकता, अनुशासन के बावजूद, उनके डॉक्टरेट की अवधि के दौरान उनके चुने हुए विषय से संबंधित शिक्षण / शिक्षा / शिक्षाशास्त्र / लेखन में प्रशिक्षित करने से डॉक्टरेट शिक्षा और अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार होगा।
  • चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम, छात्रों को एक और वर्ष तक अध्ययन किए बिना पीएचडी करने की अनुमति देगा, इससे युवा छात्रों को शोध के लिए आकर्षित करने में मदद मिलेगी।

विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी)

  • भारतीय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी इंडिया) मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत यूजीसी अधिनियम, 1956 के अनुसार, भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
  • इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में है, और इसके छः क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बैंगलोर में हैं।
  • यूजीसी को भारत में उच्च शिक्षा के मानकों के समन्वय और रखरखाव के कार्य का प्रभार दिया गया है।
  • यह विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करता है, और विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों को धन का आवंटन भी करता है।
  • विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को दिए जाने वाले, सभी अनुदान यूजीसी द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं।
  • यूजीसी, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा ( NET) भी आयोजित करता है।
  • 2015-16 में, केंद्र सरकार ने सभी शैक्षणिक संस्थानों को रैंक प्रदान करने के लिए, यूजीसी के तहत एक राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क शुरू किया।
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