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पैतृक संपत्ति पर अधिकार

प्रारंभिक परीक्षा-  समसामयिक, हिंदू विवाह अधिनियम,1955
मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर-1 और पेपर-2 

संदर्भ- सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि शून्य या अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति के हिस्से में अधिकार का दावा कर सकते हैं।

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प्रमुख बिंदु-

  • CJI सहित तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट किया कि वे मिताक्षरा कानून द्वारा शासित हिंदू अविभाजित परिवार में अपने माता-पिता के हिस्से के अतिरिक्त किसी और की पैतृक संपत्ति में अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।
  • वर्तमान तक ऐसी संतानों को माता-पिता की स्वत: अर्जित संपत्ति में ही हिस्सा मिलता था
  • न्यायालय ने यह भी कहा है कि एक बार ऐसे बच्चों को वैध घोषित कर दिए जाने के बाद, वे अन्य वैध बच्चों के बराबर हो जायेंगे।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 16 की-
    • उपधारा (1) के तहत शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे को और 
    • उपधारा (2) के तहत अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे को वैधता प्रदान की जाती है।
  • सीजेआई ने कहा कि एक बच्चा जो उक्त धाराओं के तहत वैध है। उसे नाजायज बच्चा नहीं माना जा सकता है।

शून्यकरणीय विवाह-

  • जिस विवाह को किसी भी एक पक्ष के अनुरोध पर रद्द किया जा सकता है, उसे शून्यकरणीय विवाह (voidable marriage) कहते हैं।
  • यह विवाह कानूनी तौर पर मान्य है, लेकिन विवाह के किसी भी एक पक्ष द्वारा न्यायालय में चुनौती पर इसे निरस्त किया जा सकता है।

शून्य या अमान्य विवाह- 

  • शून्य या अमान्य विवाह में पुरुष और महिला को पति-पत्नी का दर्जा नहीं मिलता है, जबकि शून्यकरणीय विवाह में उन्हें पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त है।
  • शून्य विवाह एक ऐसा विवाह है जो शुरुआत से ही अमान्य है; जैसे कि विवाह अस्तित्व में नहीं आया हो।
  • शून्य विवाह में विवाह को रद्द करने के लिए शून्यता की किसी डिक्री की जरूरत नहीं होती है, जबकि शून्यकरणीय विवाह में शून्यता की डिक्री की आवश्यकता होती है।

मिताक्षरा-

  • मिताक्षरा याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर की टीका है जिसकी रचना 11वीं शताब्दी में हुई। यह ग्रन्थ 'जन्मना उत्तराधिकार'  के सिद्धान्त के लिए प्रसिद्ध है।
  • हिंदू उत्तराधिकार संबंधी भारतीय कानून को लागू करने के लिए मुख्य रूप से दो मान्यताओं को माना जाता है- 
    • पहला-दायभाग, जो बंगाल और असम में लागू है। 
    • दूसरा- मिताक्षरा, जो शेष भारत में मान्य है।
  • मिताक्षरा के अनुसार, व्यक्ति को जन्म से ही अपने पिता की संयुक्त परिवार सम्पत्ति में हिस्सेदारी हासिल हो जाती है।
  • 2005 में कानून में हुए संशोधन के बाद इसमें लड़कियों को भी शामिल किया गया है। 
  • दायभाग किसी को अपने पूर्वजों की मृत्यु से पहले संपत्ति का अधिकार नहीं देता है, जबकि मिताक्षरा किसी को भी उनके जन्म के तुरंत बाद संपत्ति का अधिकार देता है।

प्रश्न- निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

  1. शून्य या अमान्य विवाह में पुरुष और महिला को पति-पत्नी का दर्जा मिलता है।
  2. शून्यकरणीय विवाह में पुरुष और महिला को पति और पत्नी का दर्जा नहीं प्राप्त है। 
  3. शून्यकरणीय विवाह कानूनी तौर पर मान्य है।

नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए- 

कूट-

(a) केवल 2

(b)    केवल 3

(c)    केवल 1 और 3

(d)    केवल 1 और 2

उत्तर - (b)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न- भारत में उत्तराधिकार सम्बन्धी नियमों की व्याख्या कीजिए और बताइए कि अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे के लिए क्या प्रावधान है?

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