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तिरुपति महापाषाण स्थल

(प्रारंभिक परीक्षा- भारत का इतिहास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : भारतीय संस्कृति के प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू)

चर्चा में क्यों 

आंध्र प्रदेश के तिरुपति ज़िले में स्थित महापाषाणिक स्थल संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रहे हैं। 

प्रमुख बिंदु 

  • आंध्र प्रदेश का तिरुपति ज़िला एंथ्रोपोमोर्फिक कब्र स्थलों से युक्त है, जहाँ बड़ी संख्या में महापाषाण स्थल पाए गए हैं। 
  • तिरुपति और चित्तूर ज़िले (अप्रैल 2022 में तिरुपति ज़िले को इससे अलग किया गया था) में महापाषाणिक संरचनाओं की एक श्रृंखला मिलती है। 
  • गौरतलब है कि वर्तमान में ग्रेनाइट खनन के कारण ज़िले के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित महापाषाणिक स्थल संकट का सामना कर रहे हैं। 

पांडव गुल्लू स्थल 

  • 'खंभायुक्त डोलमेन' (Pillared Dolmen) मल्लय्यागरीपल्ली (तिरुपति से 20 किमी. दूर) में पाया जाने वाले महापाषाण युग का एक प्रमुख स्थल है। 
  • यह स्थल चंद्रगिरि और दोर्नाकंबाला के बीच एक पहाड़ी पर स्थित है। इस स्थल के लगभग 2,500 वर्ष प्राचीन होने का अनुमान है।
  • पांडवों की स्मृति में स्थानीय रूप से संरचना को ' पांडव गुल्लू' या ' पांडवुला बांदा' के नाम से जाना जाता है। 

Pillared Dolmen

राज्य के अन्य महापाषाण स्थल

  • चित्तूर ज़िले में कल्लूर के पास स्थित देवरा येद्दू में एक संकटग्रस्त महापाषाण स्मारक है, जो बैल के सींग के समान दिखता है। अवैध उत्खनन के कारण यह स्थल गंभीर संकट का सामना कर रहा है।
  • चित्तूर ज़िले के सोदाम के पास बोयापल्ले स्थल से मृत व्यक्ति की स्मृति में बनाया गया एक लंबा या भव्य ढाँचा प्राप्त हुआ है। 
  • तिरुपति से 15 किमी. पूर्व में कराकंबाडी के पास वेंकटपुरम में एक महापाषाण स्थल है जो मोबाइल टॉवर की स्थापना के कारण क्षतिग्रस्त हो गया है।

महापाषाणिक संस्कृति

  • पाषाणकालीन संस्कृति के दौरान दक्षिण भारत में शवों को बड़े-बड़े पत्थरों से ढक दिया जाता था। ऐसी संरचनाओं को ‘महापाषाण’ कहते हैं।
  • ये महापषाणिक स्थल डोलमेनोइड सिस्ट (बॉक्स के आकार के पत्थर के दफन कक्ष), केयर्न स्टोन सर्कल (परिभाषित परिधि वाले पत्थर के घेरे) और कैपस्टोन (मुख्य रूप से केरल में पाए जाने वाले विशिष्ट मशरूम के आकार के दफन कक्ष) के रूप में पाए गए हैं।
  • इस संस्कृति का आरंभ 1000 ई.पू. से माना जा सकता है, जो ईसा की शुरूआती शताब्दियों तक प्रचलित रही। इसकी सर्वाधिक प्रमुख विशेषता लौह धातु तथा काले एवं लाल मृद्भांडों की प्राप्ति है।   
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