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शॉर्ट न्यूज़: 11 जुलाई, 2022

शॉर्ट न्यूज़: 11 जुलाई, 2022


पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों में परिवर्तन

स्टार्ट-अप इकोसिस्टम रैंकिंग-2021 

नैरोबी मक्खी


पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों में परिवर्तन

चर्चा में क्यों

हाल ही में, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (Environment Protection Act : EPA) के प्रावधानों में परिवर्तन का प्रस्ताव रखा है।

ई.पी.ए. के प्रस्तावित प्रावधान

  • नए प्रावधानों के तहत नियमों का उल्लंघन करने वालों को केवल जुर्माना देने की आवश्यकता होगी। हालांकि, यह उन उल्लंघनों पर लागू नहीं होगा जो गंभीर चोट या जीवन की हानि का कारण बनते हैं। 
  • नए नियमों के तहत कारावास के बदले प्रस्तावित जुर्माना वर्तमान में लगाए गए जुर्माने से 5-500 गुना अधिक है।
  • दंड के रूप में एकत्र की गई धनराशि पर्यावरण संरक्षण कोष में जमा की जाएगी। अधिनियम के उल्लंघन के मामले में आर्थिक दंड 5 लाख से 5 करोड़ तक बढ़ाया जा सकता है। 
  • ई.पी.ए. के प्रस्तावित प्रावधानों के तहत एक निर्णय अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी जो पर्यावरण के उल्लंघन के मामलों में दंड का निर्णय करेगा।   
  • कारावास की शर्तों को हटाने से संबंधित प्रावधान वायु प्रदूषण अधिनियम तथा जल प्रदूषण अधिनियम  पर भी लागू होते हैं।

ई.पी.ए. के मौजूदा प्रावधान

  • अधिनियम के वर्तमान प्रावधानों के अनुसार नियमों का उल्लंघन करने वालों को पाँच वर्ष तक की कैद या 1 लाख तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। 
  • यदि दोष सिद्ध होने के पश्चात् भी उल्लंघन जारी रहता है तब प्रतिदिन 5,000 तक का अतिरिक्त जुर्माना तथा कैद की अवधि 5 वर्ष से बढ़ाकर 7 वर्ष करने का प्रावधान है। 

पर्यावरण उल्लंघन के मामले

  • सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार भारतीय न्यायालयों ने पर्यावरण उल्लंघन के मामलों के बैकलॉग को निपटाने में लगभग 9-33 वर्ष का समय लगाया है।
  • वर्ष 2018 की शुरुआत से, लगभग 45,000 मामले लंबित थे और उस वर्ष अन्य 35,000 मामले जोड़े गए थे। सात पर्यावरण कानूनों में से पाँच में 90% से अधिक मामले लंबित थे।

स्टार्ट-अप इकोसिस्टम रैंकिंग-2021 

चर्चा में क्यों 

हाल ही में, वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय ने स्टार्टअप इकोसिस्टम रैंकिंग के तीसरे संस्करण को जारी किया है। 

प्रमुख बिंदु  

  • इस रैंकिंग के तहत राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को 5 श्रेणियों सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले, शीर्ष प्रदर्शन करने वाले, लीडर्स, आकांक्षी लीडर्स और उभरते स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में वर्गीकृत किया गया है। 
  • गुजरात और कर्नाटक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों की श्रेणी में शामिल हैं, जबकि केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा और तेलंगाना शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्यों की श्रेणी में शामिल हैं। उत्तर प्रदेश को लीडर्स श्रेणी के अंतर्गत रखा गया हैं।
  • केंद्र-शासित प्रदेशों और उत्तर-पूर्वी राज्यों की श्रेणी में मेघालय सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला राज्य रहा जबकि जम्मू और कश्मीर शीर्ष प्रदर्शनकर्ता के रूप में उभरा।  
  • राज्यों का मूल्यांकन 7 व्यापक सुधार क्षेत्रों में किया गया जिसमें संस्थागत सहायता से लेकर नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना, बाजार तक पहुँच, इनक्यूबेशन सहायता, फंडिंग सहायता, सक्षमकर्ताओं के क्षमता निर्माण को संरक्षण सहायता देना शामिल हैं। 
  • विदित है कि वर्ष 2018 से देश भर में स्टार्ट-अप का निर्माण करने और व्यवसाय करने में सुगमता प्रदान करने के लिये उद्योग एवं आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) द्वारा स्टार्ट-अप रैंकिंग को जारी किया जा रहा है। 

नैरोबी मक्खी

चर्चा में क्यों 

हाल ही में, पूर्वी सिक्किम के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने नैरोबी मक्खियों के संपर्क में आने के बाद त्वचा संक्रमण की सूचना दी है।

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हालिया घटनाक्रम

  • मूलतः पूर्वी अफ्रीका में पाई जाने वाली नैरोबी मक्खियों की आबादी सिक्किम मणिपाल प्रौद्योगिकी संस्थान के परिसर में तेज गति से बढ़ रही है। 
  • स्वास्थ्य विभाग के अनुसार मक्खियाँ प्रजनन के लिये तथा खाद्य आपूर्ति की तलाश में नए क्षेत्रों में विस्तार करती है।

नैरोबी मक्खी

  • इन्हें केन्याई मक्खियाँ या ड्रैगन बग भी कहा जाता है। ये छोटे झींगुर जैसे कीट होते हैं। ये दो प्रजातियों पेडरस एक्ज़िमियस (Paederus Eximius) और पेडरस सबाईस (Paederus Sabaeus) से संबंधित हैं। 
  • ये नारंगी और काले रंग के होते हैं और उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में पनपते हैं। इसके अतिरिक्त, अन्य कीटों के समान ये भी उज्ज्वल प्रकाश से आकर्षित होते हैं।

मनुष्यों पर प्रभाव 

  • सामान्यतया ये कीट फसलों को क्षति पहुँचाने वाले हानिकारक कीटों पर हमला करते हैं। इस प्रकार, ये अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्यों के लिये लाभकारी होते हैं। 
  • लेकिन कभी-कभी ये सीधे मनुष्यों के संपर्क में आ जाते हैं जो नुकसान का कारण बनते हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार ये मक्खियाँ काटती नहीं हैं, लेकिन व्यक्ति के त्वचा पर बैठकर पेडरिन (Pederin) नामक एक शक्तिशाली अम्लीय पदार्थ छोड़ती हैं जो जलन का कारण बनता है।
  • इससे त्वचा पर घाव या असामान्य निशान पड़ सकते हैं। त्वचा एक या दो सप्ताह में ठीक होने लगती है, लेकिन इससे कुछ अन्य संक्रमण भी हो सकते हैं।

रोग का पूर्व में प्रकोप

इस रोग का सबसे व्यापक प्रसार केन्या और पूर्वी अफ्रीका के अन्य हिस्सों में हुआ है। वर्ष 1998 में, असामान्य रूप से भारी बारिश के कारण इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में कीटों का आगमन हुआ। विदित है कि अफ्रीका के बाहर भारत, जापान, इज़राइल और पराग्वे में भी इसका प्रकोप हो चुका है।


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