शॉर्ट न्यूज़: 12 अप्रैल, 2022
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
राष्ट्रीय हरित अधिकरण और क्षेत्रीय पीठ
प्रतिचक्रीय पूंजी बफर
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
चर्चा में क्यों
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान और गुजरात में विद्युत् लाइनों को भूमिगत करने की स्थिति से अवगत करने का आदेश दिया है। प्राकृतिक आवास में ओवरहेड हाई-टेंशन तारों के कारण ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) की संख्या में कमी आ रही है।
प्रमुख बिंदु
- पवन चक्कियों और सौर पार्कों द्वारा आवास स्थलों (घास के मैदानों) का अतिक्रमण होने और उच्च-वोल्टेज वाली विद्युत् लाइनों (High-tension Power Lines) के कारण बड़े पक्षियों को करेंट लगने का खतरा रहता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने विगत वर्ष राजस्थान और गुजरात राज्य की विद्युत् कंपनियों को हाई टेंशन विद्युत् लाइनों को भूमिगत करने का आदेश दिया था ताकि जी.आई.बी. और लेसर फ्लोरिकन जैसे बड़े पक्षियों को करेंट लगने से बचाया जा सके।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की विशेषता
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) को ‘बड़ा भारतीय तिलोर’, ‘गोडावण’ या ‘गुरायिन’ भी कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम ‘अर्डीओटिस नाइग्रिसप्स’ (Ardeotis Nigriceps) है।
- इसका वजन 14 से 15 किग्रा. और लंबाई 4 फीट तक होती है, जिससे हवा में रास्ता बदलने में इनको कठनाई होती है और विद्युत् लाइनों का शिकार हो जाती हैं।
- उल्लेखनीय है कि जी.आई.बी. राजस्थान का राजकीय पक्षी है। जैसलमेर के ‘पवित्र उपवन’ (Sacred Groves) और देगराय ओरण के ‘पवित्र उपवन’ के आसपास के क्षेत्र इनके अंतिम शेष प्राकृतिक आवासों में से एक हैं।
- वर्ष 2018 की जी.आई.बी. गणना के अनुसार, देश में कुल 150 जी.आई.बी. में से लगभग 122 राजस्थान के जैसलमेर जिले में पाए गए थे, जबकि बाकी गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में पाए गए थे।
प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड एवं संरक्षण स्थिति
- बड़े पक्षियों की गिरती संख्या को देखते हुए प्रोजेक्ट टाइगर के समान ही वर्ष 2013 में राजस्थान सरकार ने इस प्रोजेक्ट को प्रारंभ किया।
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की संरक्षण स्थिति-
- आई.यू.सी.एन. (IUCN)- अतिसंकट ग्रस्त (Critically Endangered)
- साइट्स (CITES)- परिशिष्ट-I
- वन्य जीव संरक्षण अधिनियम,1972 की अनुसूची-I में शामिल
राष्ट्रीय हरित अधिकरण और क्षेत्रीय पीठ
चर्चा में क्यों
हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 की उस केंद्रीय अधिसूचना को अस्वीकार कर दिया है, जिसमें राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) की दिल्ली स्थित उत्तरी क्षेत्र की पीठ को प्रधान पीठ के रूप में संदर्भित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- न्यायालय के अनुसार, यह अधिसूचना प्रथम दृष्टया एन.जी.टी. अधिनियम, 2010 के प्रतिकूल है, क्योंकि इस अधिनियम में किसी भी प्रधान पीठ के बारे में उल्लेख नहीं है।
- न्यायालय के अंतरिम आदेश में एन.जी.टी. की सभी पाँच क्षेत्रीय पीठों को समान रूप से शक्तिशाली माना गया है, अर्थात् एन.जी.टी. की किसी भी पीठ द्वारा लिये गए निर्णय का अखिल भारतीय प्रभाव होगा और यह नहीं कहा जा सकता है कि केवल दिल्ली पीठ द्वारा किसी मुद्दे पर लिये गए निर्णय का अखिल भारतीय प्रभाव होगा।
- यह आदेश चेन्नई के एक पर्यावरण कार्यकर्ता के मामले को दक्षिणी क्षेत्र की पीठ द्वारा दिल्ली की प्रधान पीठ को स्थानांतरित करने के फैसले के खिलाफ दायर रिट याचिका पर पारित किया गया।
- न्यायालय के अनुसार, एन.जी.टी. को लोगों की सुविधा के लिये पाँच क्षेत्रों/पीठों- उत्तर (नई दिल्ली), पूर्व (कोलकाता), केंद्रीय (भोपाल), दक्षिण (चेन्नई) और पश्चिम (पुणे) में विभाजित किया गया है, जिसमें निर्दिष्ट राज्यों के लिये क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र शामिल है।
- यदि मामलों को दिल्ली स्थानांतरित करने की ऐसी प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो यह न्याय तक पहुंच से वंचित करने के समान होगी।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना अक्तूबर 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम के तहत की गयी थी।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना का उद्देश्य पर्यावरण एवं वन संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों सहित पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन और क्षतिग्रस्त व्यक्ति अथवा संपत्ति के लिये अनुतोष और क्षतिपूर्ति प्रदान करना और इससे संबंधित मामलों का प्रभावशाली और तीव्र गति से निपटारा करना है।
प्रतिचक्रीय पूंजी बफर
चर्चा में क्यों
हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने ‘प्रतिचक्रीय पूंजी बफर’ (Countercyclical Capital Buffer : CCyB) को सक्रिय नहीं करने का निर्णय लिया है।
प्रतिचक्रीय पूंजी बफर
- 5 फरवरी 2015 को जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, रिज़र्व बैंक द्वारा प्रतिचक्रीय पूंजी बफर (सी.सी.वाई.बी.) की रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसमें यह सूचित किया गया था कि सी.सी.वाई.बी. को उन परिस्थितियों में सक्रिय किया जाएगा, जब इसकी आवश्यकता होगी।
- भारत में इसकी संरचना में मुख्य संकेतक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद अंतराल के अनुपात में ऋण (क्रेडिट टू जी.डी.पी. गैप) की परिकल्पना की गई है, जिसका उपयोग अन्य अनुपूरक संकेतकों के साथ किया जा सकता है।
- सी.सी.वाई.बी. संकेतकों की समीक्षा और अनुभवजन्य विश्लेषण के आधार पर आर.बी.आई. ने यह निर्णय लिया गया है कि वर्तमान में इसको सक्रिय करना आवश्यक नहीं है।
उद्देश्य
- वर्ष 2015 में जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, सी.सी.वाई.बी. व्यवस्था के दो प्रमुख उद्देश्य होते हैं। पहला, बैंकों से यह अपेक्षा होती है कि वे अच्छे समय के दौरान पूंजी बफर का निर्माण करें जिसका उपयोग कठिन समय में वस्तु क्षेत्र (Real Sector) में ऋण के प्रवाह को बनाए रखने के लिये किया जा सकता है।
- दूसरा, यह बैंकिंग क्षेत्र को ऋण संवृद्धि के समय अंधाधुंध या अविवेकी ऋण देने से प्रतिबंधित करता है।
अन्य बिंदु
- इन्हीं दिशानिर्देशों के अनुसार, सी.सी.वाई.बी. को केवल सामान्य इक्विटी टियर 1 (CET 1) पूंजी अथवा पूर्णत: हानि अवशोषण करने वाली अन्य पूंजी के रूप में ही रखा जा सकता है तथा इसकी राशि बैंक की कुल जोखिम भारित आस्तियों के 0 से 5% के बीच हो सकती है।
- सामान्यतया सी.सी.वाई.बी. निर्णय की घोषणा चार तिमाहियों की समय सीमा के साथ पहले ही कर दी जाएगी। तथापि, बैंकों को अल्पावधि में भी अपेक्षित बफर तैयार करने के लिये कहा जा सकता है ।