शॉर्ट न्यूज़: 20 अप्रैल, 2022
स्थायी जमा सुविधा
एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड तथा एच.डी.एफ.सी. बैंक का विलय
भुगतान प्रणाली टच पॉइंट्स की जियो-टैगिंग
स्थायी जमा सुविधा
चर्चा में क्यों
हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने तरलता को अवशोषित करने के लिये एक अतिरिक्त उपकरण के रूप में ‘स्थायी जमा सुविधा’ (Standing Deposit Facility : SDF) की शुरुआत की है।
स्थायी जमा सुविधा
- एस.डी.एफ. ऐसा तंत्र है जिसका प्रयोग कोई भी केंद्रीय बैंक व्यवसायिक बैंकों के पास उपलब्ध अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करने के लिये करता है।
- एस.डी.एफ. के अंतर्गत कोई बैंक जब अतिरिक्त नकदी रिजर्व बैंक के पास जमा कराएगा तो आर.बी.आइ. को बैंकों के पास सरकारी प्रतिभूति (G-Sec) जैसी किसी प्रकार की कोई जमानत (Collateral) रखने की आवश्यकता नहीं होगी।
- यह ‘रिवर्स रेपो’ की तरह कार्य करता है किंतु कई मामलों में उससे भिन्न है। आर.बी.आइ. को ‘रिवर्स रेपो दर’ पर बैंकों की धनराशि जमा कराने के लिये जी-सेक जमानत के रूप में रखनी पड़ती है।
- वर्ष 2018 में आर.बी.आई. अधिनियम, 1934 की संशोधित धारा 17 के तहत आर.बी.आई. को एस.डी.एफ. के परिचालन का अधिकार है।
एस.डी.एफ. की वर्तमान दर
- आर.बी.आई. ने 3.75% की ब्याज दर के साथ तत्काल प्रभाव से एस.डी.एफ. के परिचालन का निर्णय लिया है।
- एस.डी.एफ. को रेपो दर से 25 बी.पी.एस. (bps) कम रखी गया है और यह ओवरनाइट आधार पर लागू होगी। यह सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) से 0.50 प्रतिशत कम होगा।
- एस.डी.एफ. का मुख्य उद्देश्य बैंकिंग प्रणाली में 8.5 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करना और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है। इस प्रकार, यह तरलता प्रबंधन में सहायक होने के अतिरिक्त एक वित्तीय स्थिरता उपकरण भी है।
- एस.डी.एफ. तरलता समायोजन सुविधा (LAF) के अंतर्गत न्यूनतम दर होगा। एल.ए.एफ. के तहत एम.एस.एफ. दर ऊपरी स्तर होगी जबकि एस.डी.एफ. निचला स्तर होगा।
विशेषता
- एस.डी.एफ. तरलता समायोजन सुविधा के आधार के रूप में ‘फिक्स्ड रिवर्स रेपो रेट’ (FRRR) का स्थान लेगा। हालाँकि, फिक्स्ड रिवर्स रेपो रेट आर.बी.आई. के टूलकिट का हिस्सा बना रहेगा और इसका संचालन समय-समय पर निर्दिष्ट उद्देश्यों के लिये आर.बी.आई. के विवेकाधिकार पर किया जाएगा। एफ.आर.आर.आर. की वर्तमान दर 3.35% है।
- एस.डी.एफ. के साथ एफ.आर.आर.आर. रिज़र्व बैंक के तरलता प्रबंधन ढांचे में लचीलापन प्रदान करने में सहायक है।
- उल्लेखनीय है कि दोनों स्थायी सुविधाएँ- सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) और एस.डी.एफ. सप्ताह के सभी दिन और पूरे वर्ष उपलब्ध रहेंगे।
- एस.डी.एफ. के तहत जमाराशियों को नकद आरक्षित अनुपात (CRR) के रखरखाव के लिये योग्य नहीं माना जाएगा किंतु वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) के रखरखाव के लिये इसे पात्र माना जाएगा।
एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड तथा एच.डी.एफ.सी. बैंक का विलय
संदर्भ
हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (HDFC) की घोषणा के अनुसार, एच.डी.एफ.सी. बैंक (HDFC Bank) और एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड (HDFC Ltd) को विलय किया जाएगा। एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड देश की सबसे बड़ी आवास वित्त ऋणदाता (Mortgage Lender- गिरवी पर ऋण देने वाला) है, जबकि एच.डी.एफ.सी. बैंक भारत के सबसे बड़े निजी क्षेत्र के बैंकों में शामिल है। इस विलय के वर्ष 2024 तक पूर्ण होने की संभावना है।
विलय के बिंदु
- सौदे की शर्तों के तहत, भारतीय वित्तीय क्षेत्र में सबसे बड़े बैंकों में से एक एच.डी.एफ.सी. बैंक का पूर्ण (100%) स्वामित्व सार्वजनिक शेयरधारकों के पास होगा, जबकि एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड के मौजूदा शेयरधारकों के पास बैंक का 41% हिस्सा होगा।
- यह दोनों संस्थाओं के मध्य एक ‘ऑल-शेयर डील’ है, इसलिये इसमें कोई नकद लेनदेन शामिल नहीं है। शेयर स्वैप की शर्तों के अनुसार, एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड के शेयरधारकों को एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड में उनके प्रत्येक 25 शेयरों के लिये एच.डी.एफ.सी. बैंक के 42 इक्विटी शेयर प्राप्त होंगे।
- विलय के बाद एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड की सभी सहायक और सहयोगी कंपनियां एच.डी.एफ.सी. बैंक का हिस्सा बन जाएंगी।
- इस विलय के लिये दोनों कंपनियों को आर.बी.आई. (RBI), सेबी (SEBI), भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI), राष्ट्रीय आवास बैंक (NHB), इरडा (IRDAI), PFRDA, एन.सी.एल.टी. (NCLT), बी.एस.ई. (BSE), एन.एस.ई. (NSE) आदि से मंजूरी लेनी होगी।
निहितार्थ
- हाल के वर्षों में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) उद्योग के लिये नियामक ढाँचे का विकास धीरे-धीरे बैंकिंग क्षेत्र के नियामक ढाँचे के साथ सामंजस्य स्थापित करने के करीब आ रहा है।
- भारतीय रिजर्व बैंक विगत कुछ वर्षों से एन.बी.एफ.सी. उद्योग के लिये नियामक ढाँचे को सख्त कर रहा है। इसलिये एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड जैसे बड़े एन.बी.एफ.सी. का बैंकों के साथ विलय औचित्यपूर्ण है क्योंकि आर.बी.आई. द्वारा बैंकों को अधिक कड़ाई से विनियमित किया जाता है।
- चूँकि पूंजी पर्याप्तता के लिये बेसल III मानदंड लागू हैं, इसलिये गैर-निष्पादित संपत्ति बही की बहुत बारीकी से निगरानी की जाती है। अत: इससे एन.बी.एफ.सी. को अधिक कड़ाई से विनियमित किया जा सकेगा।
विलय से होने वाले लाभ
- इस विलय से एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड को एच.डी.एफ.सी. बैंक के चालू और बचत खाते जमा (CASA Deposits) तक पहुँच प्राप्त होगी, जो कम लागत वाले फंड हैं। इससे ऋण व्यवसाय के लिये पूंजीगत लागत में कमी आएगी।
- पूंजीगत लागत कम होने से उचित दर पर उधार देने की क्षमता स्वतः ही बेहतर हो जाती है। इसके अतिरिक्त, आवास ऋण के ग्राहकों को एच.डी.एफ.सी. बैंक ग्राहक बनाने के लिये टैप भी किया जा सकता है।
- इस विलय से क्रेडिट की बढ़ती मांग का दोहन बेहतर ढंग से किया जा सकता है। इससे बड़े बही-खाते और पूंजी आधार के साथ विभिन्न क्षेत्रों में ऋण प्रवाह बढ़ेगा।
- एच.डी.एफ.सी. बैंक, भारतीय स्टेट बैंक के बाद देश में दूसरा सबसे बड़ा ऋणदाता बना रहेगा, जबकि विलय के बाद इसका आकार तीसरे सबसे बड़े ऋणदाता आई.सी.आई.सी.आई. बैंक (ICICI Bank) से दोगुना हो जाने की संभावना है। इस विलय के बाद यह देश की तीसरी सर्वाधिक मूल्यवान कंपनी हो जाएगी। ।
भुगतान प्रणाली टच पॉइंट्स की जियो-टैगिंग
चर्चा में क्यों
भारतीय रिजर्व बैंक ने भुगतान प्रणाली टच पॉइंट्स की जियो-टैगिंग के लिये एक रूपरेखा जारी की है।
प्रमुख बिंदु
- जियो-टैगिंग से आशय व्यापारियों द्वारा अपने ग्राहकों से भुगतान प्राप्त करने के लिये तैनात पेमेंट टच पॉइंट्स के भौगोलिक निर्देशांक (अक्षांश और देशांतर) को एकत्रित करना है।
- इसके तहत बैंक और गैर-बैंक भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों को नियमित आधार पर अपने टच पॉइंट्स की भौगोलिक उपस्थिति को बनाए रखने और उन्हें केंद्रीय बैंक के साथ साझा करने के निर्देश दिये गए हैं।
- इससे पॉइंट ऑफ़ सेल टर्मिनल, क्यू.आर. कोड जैसे भुगतान स्वीकृति के बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता की उचित निगरानी हो सकेगी। जियो-टैगिंग की निगरानी भुगतान बुनियादी ढाँचे के वितरण को अनुकूलित करने के लिये नीतिगत हस्तक्षेप का समर्थन करेगी।
- विगत कुछ वर्षों में भारत में भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत उपभोक्ताओं के लिये उपलब्ध भुगतान प्रणालियों, प्लेटफार्मों, उत्पादों और सेवाओं का त्वरित विकास हुआ है।