शॉर्ट न्यूज़: 21 अप्रैल, 2022
निर्यात तैयारी सूचकांक 2021
ढाका मलमल का पुनरुद्धार
निर्यात तैयारी सूचकांक 2021
चर्चा में क्यों
हाल ही में, नीति आयोग ने निर्यात तैयारी सूचकांक (EPI), 2021 का द्वितीय संस्करण जारी किया।
प्रमुख बिंदु
- यह सूचकांक नीति आयोग तथा प्रतिस्पर्धा संस्थान (इंस्टिट्यूट ऑफ कॉम्पेटिटिवनेस) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया जाता है। इसमें भारत की निर्यात उपलब्धियों का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
- सूचकांक का उद्देश्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों की तुलना में अपने प्रदर्शन का आकलन करने और उप-राष्ट्रीय स्तर पर निर्यात-आधारित विकास को बढ़ावा देने के साथ बेहतर नीति विकसित करना है।
- निर्यात तैयारी सूचकांक, उप-राष्ट्रीय निर्यात संवर्धन के लिये महत्त्वपूर्ण तथा मूलभूत क्षेत्रों की पहचान करने के लिये एक डाटा-संचालित प्रयास है।
- ई.पी.आई. में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निम्न प्रमुख बिंदुओं के आधार पर रैंकिंग प्रदान की जाती है:
- 4 मुख्य स्तंभ- नीति, व्यापार इकोसिस्टम, निर्यात इकोसिस्टम, निर्यात प्रदर्शन।
- 11 उप-स्तंभ- निर्यात प्रोत्साहन नीति, संस्थागत ढाँचा, व्यापार वातावरण, आधारभूत संरचना, परिवहन संपर्क, पूंजी तक पहुँच, निर्यात आधारभूत संरचना, व्यापार समर्थन, अनुसंधान एवं विकास आधारभूत संरचना, निर्यात विविधीकरण और विकास केंद्रित दृष्टिकोण।
रिपोर्ट के निष्कर्ष
- निर्यात तैयारियों के मामले में भारत के तटीय राज्यों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। इसमें गुजरात को लगातार दूसरे वर्ष शीर्ष राज्य घोषित किया गया है, तत्पश्चात् क्रमशः महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु का स्थान है।
- सूचकांक भारत के निर्यात प्रोत्साहन प्रयासों के लिये तीन प्रमुख चुनौतियों की पहचान की है:
- निर्यात आधारभूत संरचना में क्षेत्र-विशेष और अंतर-क्षेत्रीय असमानताएँ।
- राज्यों में कमज़ोर व्यापार समर्थन एवं विकास उन्मुख दृष्टिकोण।
- जटिल और विशिष्ट निर्यात को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान एवं विकास की आधारभूत संरचना का अभाव।
आवश्यकता
ई.पी.आई. का प्राथमिक लक्ष्य सभी भारतीय राज्यों (‘तटीय’, ‘गैर-तटीय राज्य’, ‘हिमालयी’, और ‘केंद्र शासित/नगर-राज्य’) के बीच प्रतिस्पर्धा पैदा करना है, जिसके फलस्वरूप निर्यात-संवर्धन के लिये नियामक ढाँचे को आसान बनाया जा सके तथा इसके लिये आवश्यक अवसंरचना तैयार की जा सके।
ढाका मलमल का पुनरुद्धार
चर्चा में क्यों
हाल ही में, बांग्लादेश सरकार ने प्रसिद्ध ‘ढाका मलमल’ के पुनरुद्धार की पहल शुरू की है।
प्रमुख बिंदु
- ढाका मलमल के कपड़ों के धागे महीन और कोमल होते हैं। इनकी बुनाई खुले वातावरण में की जाती है, ताकि इसे उच्च ताप के साथ अनुकूलित किया जा सके।
- गौरतलब है कि ढाका मलमल के उत्पादन में प्रयुक्त विशेष पौधा ‘फूटी कार्पस’ (Phuti Karpas) लंबे समय से विलुप्त है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन पौधों को उगाने के लिये मेघना नदी के किनारे ढाका का दक्षिण पूर्वी भाग उपयुक्त था।
ऐतिहासिक महत्त्व
- ढाका मलमल पूर्वी बंगाल से रोमन साम्राज्य के लिये एक प्रमुख निर्यात वस्तु थी और मध्य युग के दौरान रेशम मार्ग की स्थापना के साथ बड़े पैमाने पर इसका व्यापार बढ़ा।
- इसका उपयोग मुगल शासकों द्वारा किया जाता था। 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अकबर के शासनकाल में ‘मलमल ख़ास’ विशेष रूप से सम्राट और शाही घरानों के लिये बनाए जाने लगे।
मलमल उद्योग के पतन के कारण
- 1757 ईस्वी में प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ ब्रिटिश सामान बंगाली बाज़ार में प्रवेश कर गए। उसी समय बंगाल से उत्पादों के आयात पर कई शुल्क भी आरोपित किये गए।
- 1780 के दशक के अंत में ढाका को विनाशकारी अकाल सहित अनेक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा, जिससे कपास उत्पादन प्रभावित हुआ। इसके अलावा, 1793 ईस्वी में इंग्लैंड और फ्रांस के बीच छिड़े युद्ध ने भी मांग को प्रभावित किया।