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सह-उधार मॉडल

(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास, समावेशन, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था, समावेशी विकास)

संदर्भ

  • नवंबर 2020 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा सह-उधार मॉडल (Co-Lending Model) को मंजूरी दिये जाने के बाद से कई बैंकों ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies: NBFC) के साथ ‘सह-उधार’ समझौता किया है।
  • विभिन्न हितधारकों से प्राप्त प्रतिक्रिया के बाद आर.बी.आई. ने बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को नियामक दिशा-निर्देशों के पालन का निर्देश देते हुए ऋणदाताओं को परिचालन में लचीलापन प्रदान किया है ताकि संयुक्त प्रयास से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके।

सह-उधार मॉडल

  • आर.बी.आई. ने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को अधिक ऋण (Primary Sector Lending) मुहैया कराने के लिये बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा ‘ऋणों की सह-उत्पत्ति’ की घोषणा की थी। 
  • इस व्यवस्था में दोनों ऋणदाता, ऋण में संयुक्त भागीदारी के साथ-साथ जोखिम और लाभ को साझा करते है। इस मॉडल का प्राथमिक उद्देश्य अर्थव्यवस्था के सेवा रहित क्षेत्रों में ऋण प्रवाह में सुधार करना और अंतिम लाभार्थी को किफायती लागत पर ऋण उपलब्ध कराना है।
  • हाल ही में, भारतीय स्टेट बैंक ने किसानों को ट्रैक्टर और कृषि उपकरण खरीदने में मदद के लिये सह-ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी अडानी कैपिटल के साथ एक समझौता किया है।

सह-उधार मॉडल के जोखिम

  • सह-उधार मॉडल के तहत एन.बी.एफ.सी. को अपने खातों में व्यक्तिगत ऋण का कम से कम 20% हिस्सा रखना आवश्यक है, जबकि जोखिम का 80% हिस्सा बैंकों के पास होगा। परिणामस्वरूप ऋण के कानूनी दायित्वों की विफलता की स्थिति (Default) में बैंक अधिक प्रभावित होगा।
  • सह-उधार मॉडल व्यवस्था में निर्दिष्ट शर्तों का पालन करते हुए बैंक अपने क्रेडिट हिस्से के संबंध में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को अधिक ऋण प्रदान करने का दावा कर सकते हैं। 
  • बैंक सह-उधार मॉडल 20 से कम शाखाओं वाले विदेशी बैंकों पर लागू नहीं होगा। साथ ही, आर.बी.आई. ने बैंकिंग क्षेत्र में कॉर्पोरेट घरानों को अनुमति नहीं दी है, जबकि अधिकांश एन.बी.एफ.सी. का स्वामित्व कार्पोरेट घरानों के पास ही है। 

आगे की राह

  • इस मॉडल के कुशल संचालन के लिये बैंक बोर्ड ब्यूरो को अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है ताकि इसका संचालन कुशलता से किया जा सके।
  • इस मॉडल के तहत एन.बी.एफ.सी. को वित्तीय रूप से और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है, जिससे वे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को अधिकाधिक ऋण प्रदान कर सकें।
  • वैश्वीकरण के युग में ऐसी व्यावसायिक नीतियों की आवश्यकता है, जो घरेलू और विदेशी कंपनियों पर सामान रूप से लागू हो ताकि अधिकतम लाभ सुनिश्चित किया जा सके।
  • कॉर्पोरेट घरानों द्वारा संचालित एन.बी.एफ.सी. में पारदर्शिता की आवश्यकता है ताकि वित्तीय जोखिमों की पुनरावृत्ति को रोका जा सके।
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