(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
केंद्र सरकार ने धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (DAJGUA) के तहत 324 जिला-स्तरीय और 17 राज्य-स्तरीय वन अधिकार अधिनियम (FRA) इकाइयों (Cell) को मंजूरी दी है। अभी तक एफ.आर.ए. को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों की होती थी, लेकिन यह पहली बार है जब केंद्र सरकार ने इसमें प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप किया है।
वन अधिकार अधिनियम (FRA) के बारे में
- परिचय : यह अधिनियम वनवासियों को वन भूमि पर व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार प्रदान करता है।
- औपचारिक नाम : ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम’
- निर्माण एवं लागू : 29 दिसंबर 2006 को राष्ट्रपति की सहमति द्वारा कानून के रूप में अधिनियमित एवं 31 दिसंबर 2027 को लागू किया गया।
उद्देश्य
- वनवासियों को उनके पारंपरिक वन संसाधनों पर अधिकार देना।
- ऐतिहासिक अन्याय को सुधारना और आजीविका को सुरक्षित करना।
- वन संरक्षण और स्थानीय समुदायों के बीच संतुलन बनाना।
प्रमुख अधिकार
- व्यक्तिगत भूमि स्वामित्व।
- सामुदायिक वन संसाधनों का उपयोग (जैसे, लघु वन उपज)।
- वन गांवों को राजस्व गांवों में परिवर्तित करना।
यह भी जानें!
धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (DAJGUA) अक्टूबर 2024 में शुरू किया गया था, यह 17 मंत्रालयों की 25 योजनाओं को 68,000 से अधिक जनजातीय गांवों में लागू करने का लक्ष्य रखता है।
|
नई एफ.आर.ए.इकाईयों के बारे में
- क्या है : यह केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित लेकिन राज्यों के नियंत्रण में कार्यरत तकनीकी और सहायक इकाइयाँ होंगी।
- स्थापना का उद्देश्य
- दावों के लिए कागजी कार्यवाही में सहायता करना
- ग्राम सभाओं को प्रमाण, प्रमाणपत्र और प्रस्ताव तैयार करने में मदद करना
- वन भूमि की सीमांकन और रिकॉर्ड डिजिटाइजेशन करना
- लंबित दावों का त्वरित निपटारा करना
- वित्त पोषण
- केंद्र सरकार द्वारा सहायता अनुदान के माध्यम से वित्त पोषण।
- प्रत्येक जिला-स्तरीय एफ.आर.ए. सेल के लिए ₹8.67 लाख और राज्य-स्तरीय सेल के लिए ₹25.85 लाख का बजट आवंटन।
- विशेषताएँ
- अब तक 18 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 324 जिला स्तरीय सेल और 17 राज्य स्तरीय सेल की मंजूरी।
- इन सेल का संचालन राज्य जनजातीय कल्याण विभाग के अधीन होगा।
- यह कानून की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं बल्कि सहायक भूमिका में कार्य करेंगी।
FRA का कार्यान्वयन: अब तक की स्थिति
- राज्यों की जिम्मेदारी: पिछले 19 वर्षों से एफ.आर.ए. का कार्यान्वयन पूरी तरह से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधीन रहा है।
- संरचना: ग्राम सभा, उप-मंडल स्तर समिति (SDLC), जिला स्तर समिति (DLC), और राज्य निगरानी समिति।
वर्तमान स्थिति
- मार्च 2025 तक, 51.11 लाख दावों में से 14.45% (लगभग 7.38 लाख) लंबित।
- 43 लाख निपटाए गए दावों में से 42% से अधिक खारिज।
- सबसे अधिक लंबित दावे: असम (60%) और तेलंगाना (50.27%)।
- कम लंबित दावे छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, और झारखंड राज्यों में।
कार्यान्वयन में चुनौतियां
- SDLC और DLC की बैठकें नियमित नहीं होतीं, जिससे दावे लंबित रहते हैं।
- वन विभाग द्वारा DLC-अनुमोदित दावों पर कार्रवाई में देरी।
- नई इकाइयों को एफ.आर.ए. के दायरे से बाहर समानांतर तंत्र माना जा रहा है।
- मौजूदा वैधानिक समितियों (FRC, SDLC, DLC) के कार्यों के साथ ओवरलैप, जिससे भ्रम की स्थिति।
- अन्य मुद्दे
- दावों की उच्च खारिज दर (42%)
- कागजी कार्यवाही और डिजिटाइजेशन में तकनीकी कमी
- स्थानीय स्तर पर जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी
आगे की राह
- राज्य स्तरीय समितियों की नियमित बैठकें सुनिश्चित हों।
- एफ.आर.ए. सेल को केवल सहायक भूमिका तक सीमित रखा जाए।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी और ग्राम सभा की भूमिका को मजबूत किया जाए।
- डिजिटल पोर्टल के माध्यम से पारदर्शिता और निगरानी की व्यवस्था हो।
- एफ.आर.ए. की मूल भावना को केंद्र में रखते हुए योजना कार्यान्वित हो।
निष्कर्ष
वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन में केंद्र सरकार की यह पहल एक बड़ा बदलाव है। यदि यह नई व्यवस्था राज्यों की दिशा और अधिनियम की मूल भावना के अनुसार लागू की जाती है, तो इससे वनवासियों और आदिवासी समुदायों को उनके अधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण मदद मिल सकती है। हालांकि, इसके लिए संरचनात्मक समस्याओं का समाधान और जमीनी स्तर पर स्पष्ट दिशा-निर्देश भी आवश्यक हैं।