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भारत के लिये निर्णायक भू-राजनीतिक परिस्थितियाँ

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : अंतर्राष्ट्रीय संबंध)

संदर्भ

रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण भारत में बढ़ती कूटनीतिक गतिविधियाँ समकालीन विश्व व्यवस्था में भारत की महत्ता को इंगित करती हैं। विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने भारत के रुख को समझने, यूक्रेन से भिन्न मुद्दों पर चर्चा करने, वैश्विक मुद्दों पर एकजुटता का प्रयास करने और भारत पर परोक्ष दबाव बनाने के लिये यहाँ का दौरा किया। हालाँकि, भारत का रुख अपने अधिकतम हित को लक्षित करना है इसलिये वह किसी भी पक्ष का खुला समर्थन करने की बजाए संयम बरतने की नीति अपनाए हुए है।

भारत का रुख और पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया

  • पश्चिमी देशों के साथ भारत कई मानदंडों एवं मूल्यों को साझा करता है। इन देशों में भारतीय डायस्पोरा की उपस्थिति एवं नागरिकों के बीच आपसी संपर्क अत्यधिक व्यापक है। इसके बावजूद रूस के साथ व्यापार को जारी रखते हुए भारत उसकी आक्रमकता की सार्वजनिक एवं कूटनीतिक स्तर पर निंदा करने के लिये तैयार नहीं हुआ है क्योंकि भारत के रूस के साथ संबंध यूरोप से भिन्न हैं।
  • वस्तुतः भारत जैसे विकासशील देश को आर्थिक कठिनाइयों का मुकाबला करने एवं महामारी के प्रभावों से उबरने के लिये रूस से रियायती मूल्य पर कच्चे तेल के आयात को पश्चिमी देशों द्वारा रोकने का प्रयास अनुचित है, विशेषकर ऐसे समय में जब कुछ पश्चिमी देश स्वयं रूस से ऊर्जा का आयात कर रहे हैं।
  • अर्थव्यवस्था की स्थिति एवं आर्थिक हित, रक्षा उपकरणों की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता और अपनी भू-राजनीतिक स्थिति के कारण भारत स्पष्ट तौर पर किसी एक का पक्ष लेने के लिये तैयार नहीं है।

कूटनीतिक तर्क एवं अनौपचारिक भ्रम

लोकतांत्रिक और गैर-लोकतांत्रिक दृष्टिकोण

  • पश्चिमी देशों का पहला तर्क यह है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष लोकतंत्रों और गैर-लोकतंत्रों के बीच एक व्यापक वैचारिक संघर्ष है अत: भारत को तय करना होगा कि वह किस पक्ष में शामिल होना चाहता है।
  • वस्तुतः यह केवल एक निराधार कल्पना मात्र नहीं बल्कि एक खतरनाक अवधारणा भी है जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक अन्य वैचारिक प्रतिद्वंद्विता में ले जा सकता है, अत: भारत को तटस्थ रहना चाहिये।
  • भारत द्वारा स्पष्ट तौर पर रूस की कार्रवाई का विरोध न करने का निर्णय भू-राजनीतिक दृष्टिकोण पर आधारित है और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों से नहीं जोड़ा जाना चाहिये। उल्लेखनीय है कि भारत वर्ष 2003 में इराक पर अमेरिकी कार्रवाई को लेकर भी तटस्थ रहा था, हालाँकि इसका अर्थ यह नहीं है कि भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों की कमी है।

भारत-चीन विवाद और रूस 

  • दूसरा तर्क यह है कि भारत और चीन के मध्य भविष्य में होने वाले संघर्ष में रूस से मदद मिलने की संभावना कम ही है। यह तर्क निराधार भी प्रतीत नहीं होता है क्योंकि रूस लंबे समय तक चीन के विरुद्ध भारत की सहायता नहीं कर सकता है।
  • हालाँकि, भारत उपर्युक्त आधार इस अस्थिर एवं प्रतिकूल क्षेत्र में रूस जैसे एक पारंपरिक मित्र को अपना विरोधी नहीं बनाना चाहता है। 
  • इसका दूसरा पहलू यह है कि यदि भारत वर्तमान में पश्चिमी देशों के साथ खड़ा नहीं होता है तो पश्चिमी देश चीन के विरुद्ध भारत का पक्ष लेने से दूरी बना सकते हैं। हालाँकि, यह तर्क इस वास्तविकता को नज़रअंदाज़ करता है कि भारत के साथ-साथ अमेरिका के लिये भी चीन एक चुनौती है।

स्विंग स्टेट के रूप में भारत 

विभिन्न पक्षों के मध्य संतुलन 

  • रूस-यूक्रेन संघर्ष में दोनों पक्ष भारत को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, जो समकालीन अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में भारत के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ‘स्विंग स्टेट’ की स्थिति को दर्शाता है।
  • भारत के साथ प्रतिकूल संबंध होने के बावजूद चीन व्यापार के मुद्दों पर आगे बढ़ने के लिये भारत को प्राथमिक दे रहा है।
  • चीन द्वारा यूक्रेन युद्ध को कुछ क्षेत्रीय समूहों के गठन द्वारा अमेरिका विरोधी विश्व व्यवस्था बनाने के अवसर के रूप में देखा जा रहा है, जिसे चीन के विदेश मंत्री की दक्षिण एशिया की हालिया यात्रा के विश्लेषण से समझा जा सकता है। 
  • इसके बाद रूस के विदेश मंत्री की भारत यात्रा भारतीय नेतृत्व द्वारा रूस को महत्त्व देने की मंशा का भी स्पष्ट संकेत है।
  • अमेरिका भी भारत को अपने पक्ष में रखना चाहता है क्योंकि विगत दो दशकों में दोनों देशों के मध्य संबंधों में असाधारण प्रगति को अमेरिका खोना नहीं चाहता है। यूनाइटेड किंगडम और जर्मनी भी भारत से ऐसी ही उम्मीद करते हैं।

रणनीतिक स्वायत्तता पर बल 

  • भारत ने किसी भी पक्ष के साथ एकनिष्ठ सहयोग से बचते हुए दोनों ही पक्षों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने के लिये अंततः रणनीतिक स्वायत्तता के सिद्धांतों का चयन किया है। 
  • भारत ने इस सिद्धांत को दीर्घावधि में अंगीकार किया गया है, किंतु इसे प्रायोगिक रूप देने में अभी भी चुनौतियाँ विद्यमान हैं। समकालीन भारतीय कूटनीति एक बेहतरीन स्विंग स्टेट का उदाहरण है।

वर्तमान और भविष्य के बीच भारत

  • यह समय भारत के लिये एक स्विंग स्टेट की भूमिका में रहने का है। निःसंदेह यह युद्ध एशियाई भू-राजनीति में अपेक्षित मूलभूत परिवर्तनों में तेजी लाएगा। विदित है कि दक्षिणी एशिया की महाद्वीपीय भू-राजनीति चीन केंद्रित है। 
  • अमेरिका की अफगानिस्तान से वापसी एवं रूस-यूक्रेन संघर्ष में उसका परोक्ष रूप से संलग्न होना, रूस का युद्धरत होना तथा आर्थिक अस्त्र व आक्रामकता के बल पर एशिया में चीन की सक्रिय पहुँच ने भारतीय प्रभुत्त्व को चुनौती देने और चीन केंद्रित एशियाई भू-राजनीतिक व्यवस्था के उदय को जन्म दिया है।
  • भू-राजनीतिक वास्तविकता यह है कि यूक्रेन युद्ध के उपरांत भारत स्विंग स्टेट की भूमिका से बाहर आकर पुनः युद्ध पूर्व परिस्थितियों में आ जाएगा अत: भारत को भविष्य के भू-राजनीति में अपनी भूमिका इसी के अनुरूप सुनिश्चित करनी चाहिये। इस क्रम में भारतीय नीति-निर्माताओं को चीन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय सहित इस क्षेत्र को शामिल करते हुए दीर्घकालिक योजनाएँ बनाना चाहिये।

निष्कर्ष 

  • दूसरे शब्दों में भारत को नाजुक संतुलन के दौरान भी अपने दीर्घकालिक उद्देश्यों को ध्यान में रखना होगा। दीर्घावधि में भारत को पश्चिम और रूस दोनों को अपने पक्ष में रखना चाहिये। हालाँकि, बढ़ते संघर्ष और चीन की कूटनीति के कारण भारत के लिये पश्चिम और रूस के बीच बढ़ते अंतर्विरोध को प्रबंधित करना पहले से कहीं अधिक कठिन हो सकता है। 
  • भू-राजनीतिक विकल्प हमेशा सहजता से उपलब्ध नहीं होते हैं इसलिये कभी-कभी नए विकल्पों के सृजन के लिये परिस्थिति को आकार देने हेतु सक्रिय प्रयास करना चाहिये। वर्तमान में ऐसा करने की बारी भारत की है।
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