(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: बायो-टेक्नोलॉजी; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास) |
संदर्भ
भारत में कृषि नवाचार के लिए जेनेटिकली मॉडिफाइड (जी.एम.) फसलों को अपनाना जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी का नारा 'जय अनुसंधान' नवाचार को प्रोत्साहित करता है, जिसके लिए 1 लाख करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया है।
भारत में जीएम फसलों की स्थिति
- बीटी कॉटन: वर्ष 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इसे मंजूरी दी, जो भारत की एकमात्र जीएम फसल है।
- वर्तमान में 90% से अधिक कपास क्षेत्र बीटी कॉटन के अंतर्गत है, जिसका बीज पशु चारे और तेल के रूप में उपयोग होता है।
- बीटी बैंगन: वर्ष 2009 में जी.ई.ए.सी. ने मंजूरी दी, लेकिन वर्ष 2010 में इसे 10 साल के लिए रोक दिया गया।
- जीएम सरसों (डीएमएच-11): दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा विकसित, वर्ष 2022 में सशर्त पर्यावरणीय मंजूरी मिली, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण व्यावसायिक खेती रुकी हुई है।
- जीएम मक्का और सोयाबीन : इनकी खेती भारत में प्रतिबंधित है, लेकिन इनके तेल का आयात होता है।
बीटी कॉटन का प्रभाव
- सफलता: वर्ष 2002-03 में 13.6 मिलियन बेल से 2013-14 में 39.8 मिलियन बेल उत्पादन, यानी 193% वृद्धि।
- उत्पादकता 302 किग्रा/हेक्टेयर से बढ़कर 566 किग्रा/हेक्टेयर हुई, और कृषि क्षेत्र में 56% की वृद्धि।
- भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक और निर्यातक ($4.1 बिलियन, 2011-12) बना।
- चुनौतियाँ : वर्ष 2015 के बाद उत्पादकता 566 किग्रा/हेक्टेयर से घटकर 436 किग्रा/हेक्टेयर (2023-24) हुई, जो वैश्विक औसत (770 किग्रा/हेक्टेयर) से कम है।
- कारण : कीटों (पिंक बॉलवर्म, व्हाइटफ्लाई) का हमला, कड़े नियम और नई पीढ़ी के बीजों पर प्रतिबंध।

एचटी-बीटी कॉटन
- यह ग्लाइफोसेट (खरपतवार नाशक) के प्रति सहनशील है, लेकिन भारत में इसकी व्यावसायिक मंजूरी नहीं है।
- गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, और पंजाब में 15-25% कपास क्षेत्र में इसे अवैध रूप से उगाया जा रहा है।
- अवैध बीजों के उपयोग से किसानों को नुकसान और बीज आपूर्तिकर्ताओं को चुनौती।
नियामक चुनौतियाँ
- कॉटन बीज मूल्य नियंत्रण आदेश 2015 : बीटी कॉटन बीज की रॉयल्टी को कम कर 39 रुपये प्रति पैकेट किया, जिससे अनुसंधान और विकास प्रभावित हुआ।
- नए नियम, 2016 : जीएम बीज लाइसेंस धारकों को 30 दिनों में तकनीक हस्तांतरण और रॉयल्टी को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का 10% तक सीमित करने का आदेश।
- परिणाम : वैश्विक बायोटेक कंपनियों ने भारत में निवेश कम किया।
अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता
- 9 जुलाई 2025 तक व्यापार समझौते की समय सीमा, जिसमें अमेरिका जी.एम. फसलों (सोयाबीन, मक्का) के आयात की मांग कर रहा है।
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि और डेयरी को 'रेड लाइन' घोषित किया, क्योंकि जी.एम. आयात से किसानों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा को खतरा है।
- भारत पहले से ही 60% वनस्पति तेल (सोया, कैनोला) का आयात करता है, जो जीएम फसलों से प्राप्त होता है।
वैश्विक परिदृश्य
- वर्ष 1996 से 2023 तक, 76 देशों में 200 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में जी.एम. फसलें (सोयाबीन, मक्का, कैनोला) उगाई जा रही हैं।
- भारत की तुलना में चीन (1,945 किग्रा/हेक्टेयर) और ब्राजील (1,839 किग्रा/हेक्टेयर) की कपास उत्पादकता अधिक है।
जीएम फसलों के लाभ
- कीटनाशकों का कम उपयोग, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य को लाभ।
- पैदावार में वृद्धि, जैसे जी.एम. सरसों में 28% अधिक उपज।
- खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण समृद्धि में योगदान।
- भारत को एशिया और अफ्रीका के लिए जी.एम. बीज निर्यातक बनने का अवसर।
चुनौतियाँ और चिंताएँ
- स्वास्थ्य : ग्लाइफोसेट (जीएम फसलों में उपयोग) को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2015 में 'संभावित कैंसरकारी' माना।
- पर्यावरण : जैव विविधता हानि, मिट्टी में जीएम प्रोटीन का रिसाव और गैर-लक्षित जीवों को नुकसान।
- आर्थिक : बीजों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नियंत्रण, जिससे किसानों की स्वायत्तता कम हो सकती है।
- नैतिक : पारिस्थितिकी पर अप्रत्याशित प्रभाव की चिंता।
आगे की राह
- विज्ञान आधारित मजबूत नीति और नेतृत्व की आवश्यकता।
- जी.ई.ए.सी. की पारदर्शिता और स्वतंत्र प्रभाव आकलन बढ़ाने की जरूरत।
- जी.एम. फसलों (एचटी-बीटी कॉटन, बीटी बैंगन, जीएम सरसों, मक्का, सोयाबीन) की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देना।
- किसानों, राज्यों, और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श कर राष्ट्रीय जी.एम. नीति बनाना।
- जी.एम. उत्पादों पर स्पष्ट लेबलिंग अनिवार्य हो, ताकि उपभोक्ता जागरूक रहें।