New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 14th July 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM July Exclusive Offer UPTO 75% Off, Valid Till : 14th July 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 30 July, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 14th July, 8:30 AM

भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए जीन प्रौद्योगिकी: एक आवश्यक दिशा

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: बायो-टेक्नोलॉजी; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास)

संदर्भ

भारत में कृषि नवाचार के लिए जेनेटिकली मॉडिफाइड (जी.एम.) फसलों को अपनाना जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी का नारा 'जय अनुसंधान' नवाचार को प्रोत्साहित करता है, जिसके लिए 1 लाख करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया है।

भारत में जीएम फसलों की स्थिति

  • बीटी कॉटन: वर्ष 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इसे मंजूरी दी, जो भारत की एकमात्र जीएम फसल है।
    • वर्तमान में 90% से अधिक कपास क्षेत्र बीटी कॉटन के अंतर्गत है, जिसका बीज पशु चारे और तेल के रूप में उपयोग होता है।
  • बीटी बैंगन: वर्ष 2009 में जी.ई.ए.सी. ने मंजूरी दी, लेकिन वर्ष 2010 में इसे 10 साल के लिए रोक दिया गया।
  • जीएम सरसों (डीएमएच-11): दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा विकसित, वर्ष 2022 में सशर्त पर्यावरणीय मंजूरी मिली, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण व्यावसायिक खेती रुकी हुई है।
  • जीएम मक्का और सोयाबीन : इनकी खेती भारत में प्रतिबंधित है, लेकिन इनके तेल का आयात होता है।

बीटी कॉटन का प्रभाव

  • सफलता: वर्ष 2002-03 में 13.6 मिलियन बेल से 2013-14 में 39.8 मिलियन बेल उत्पादन, यानी 193% वृद्धि।
    • उत्पादकता 302 किग्रा/हेक्टेयर से बढ़कर 566 किग्रा/हेक्टेयर हुई, और कृषि  क्षेत्र में 56% की वृद्धि।
    • भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक और निर्यातक ($4.1 बिलियन, 2011-12) बना।
  • चुनौतियाँ : वर्ष 2015 के बाद उत्पादकता 566 किग्रा/हेक्टेयर से घटकर 436 किग्रा/हेक्टेयर (2023-24) हुई, जो वैश्विक औसत (770 किग्रा/हेक्टेयर) से कम है।
  • कारण : कीटों (पिंक बॉलवर्म, व्हाइटफ्लाई) का हमला, कड़े नियम और नई पीढ़ी के बीजों पर प्रतिबंध।

एचटी-बीटी कॉटन

  • यह ग्लाइफोसेट (खरपतवार नाशक) के प्रति सहनशील है, लेकिन भारत में इसकी व्यावसायिक मंजूरी नहीं है।
  • गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, और पंजाब में 15-25% कपास क्षेत्र में इसे अवैध रूप से उगाया जा रहा है।
  • अवैध बीजों के उपयोग से किसानों को नुकसान और बीज आपूर्तिकर्ताओं को चुनौती।

नियामक चुनौतियाँ

  • कॉटन बीज मूल्य नियंत्रण आदेश 2015 : बीटी कॉटन बीज की रॉयल्टी को कम कर 39 रुपये प्रति पैकेट किया, जिससे अनुसंधान और विकास प्रभावित हुआ।
  • नए नियम, 2016 : जीएम बीज लाइसेंस धारकों को 30 दिनों में तकनीक हस्तांतरण और रॉयल्टी को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का 10% तक सीमित करने का आदेश।
  • परिणाम : वैश्विक बायोटेक कंपनियों ने भारत में निवेश कम किया।

अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता

  • 9 जुलाई 2025 तक व्यापार समझौते की समय सीमा, जिसमें अमेरिका जी.एम. फसलों (सोयाबीन, मक्का) के आयात की मांग कर रहा है।
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि और डेयरी को 'रेड लाइन' घोषित किया, क्योंकि जी.एम. आयात से किसानों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा को खतरा है।
  • भारत पहले से ही 60% वनस्पति तेल (सोया, कैनोला) का आयात करता है, जो जीएम फसलों से प्राप्त होता है।

वैश्विक परिदृश्य

  • वर्ष 1996 से 2023 तक, 76 देशों में 200 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में जी.एम. फसलें (सोयाबीन, मक्का, कैनोला) उगाई जा रही हैं।
  • भारत की तुलना में चीन (1,945 किग्रा/हेक्टेयर) और ब्राजील (1,839 किग्रा/हेक्टेयर) की कपास उत्पादकता अधिक है।

जीएम फसलों के लाभ

  • कीटनाशकों का कम उपयोग, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य को लाभ।
  • पैदावार में वृद्धि, जैसे जी.एम. सरसों में 28% अधिक उपज।
  • खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण समृद्धि में योगदान।
  • भारत को एशिया और अफ्रीका के लिए जी.एम. बीज निर्यातक बनने का अवसर।

चुनौतियाँ और चिंताएँ

  • स्वास्थ्य : ग्लाइफोसेट (जीएम फसलों में उपयोग) को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2015 में 'संभावित कैंसरकारी' माना।
  • पर्यावरण : जैव विविधता हानि, मिट्टी में जीएम प्रोटीन का रिसाव और गैर-लक्षित जीवों को नुकसान।
  • आर्थिक : बीजों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नियंत्रण, जिससे किसानों की स्वायत्तता कम हो सकती है।
  • नैतिक : पारिस्थितिकी पर अप्रत्याशित प्रभाव की चिंता।

आगे की राह

  • विज्ञान आधारित मजबूत नीति और नेतृत्व की आवश्यकता।
  • जी.ई.ए.सी. की पारदर्शिता और स्वतंत्र प्रभाव आकलन बढ़ाने की जरूरत।
  • जी.एम. फसलों (एचटी-बीटी कॉटन, बीटी बैंगन, जीएम सरसों, मक्का, सोयाबीन) की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देना।
  • किसानों, राज्यों, और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श कर राष्ट्रीय जी.एम. नीति बनाना।
  • जी.एम. उत्पादों पर स्पष्ट लेबलिंग अनिवार्य हो, ताकि उपभोक्ता जागरूक रहें।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR