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सर्वोच्च न्यायालय में धन विधेयक प्रक्रिया को चुनौती

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: संसद व राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय)

संदर्भ

हाल के वर्षों में केंद्र सरकार ने कुछ सामान्य कानूनों को भी संसद में पारित कराने के लिए उनको कथित तौर धन विधेयक के प्रस्तुत किया। सर्वोच्च न्यायालय ने सामान्य कानूनों के लिए भी ‘धन विधेयक मार्ग’ अपनाए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के संबंध में ‘निर्णय लेने’ पर अपनी सहमति व्यक्त की है। उल्लेखनीय है कि धन विधेयक को राज्यसभा में पारित होने की आवश्यकता नहीं होती है।  

मामले से संबंधित प्रमुख बिंदु 

  • वरिष्ठ वकीलों के एक दल ने मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ से संपर्क करके इस मामले में तत्काल सुनवाई की मांग की है। संविधान पीठ के गठन का निर्णय CJI लेंगे।
  • किस विधेयक को धन विधेयक के रूप में नामित किया जा सकता है, यह प्रश्न नवंबर 2019 में ‘रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड’ मामले में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने सात-न्यायाधीशों की पीठ को भेजा दिया था जिसका गठन किया जाना बाकी है। 

धन विधेयक के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में महत्वपूर्ण मामले

आधार अधिनियम, 2016 को चुनौती

  • सितंबर 2018 में न्यायालय ने 4-1 के बहुमत से आधार कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। 
  • हालाँकि, असहमति जताने वाले एकमात्र न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ थे जो उस समय मुख्य न्यायाधीश नहीं थे। 
    • डी. वाई. चंद्रचूड़ के अनुसार, इस मामले में धन विधेयक का मार्ग अपनाना ‘संवैधानिक प्रक्रिया का दुरुपयोग’ है। एक साधारण विधेयक को धन विधेयक के रूप में पारित करने से कानून निर्माण में राज्यसभा की भूमिका सीमित हो जाती है।

वित्त अधिनियम, 2017   

  • वित्त अधिनियम, 2017 में कई अधिनियमों में संशोधन किया गया था। यह संशोधन अन्य बिंदुओं के अतिरिक्त सरकार को न्यायाधिकरणों के सदस्यों की सेवा शर्तों के बारे में नियम अधिसूचित करने का अधिकार प्रदान करता था। इसके तुरंत बाद केंद्र ने अपीलीय न्यायाधिकरण एवं अन्य प्राधिकरण (सदस्यों की योग्यता, अनुभव व अन्य सेवा शर्तें) नियम, 2017 (न्यायाधिकरण नियम) अधिसूचित किया।
  • नवंबर 2019 में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने न्यायिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने के लिए न्यायाधिकरण नियमों को असंवैधानिक करार दिया किंतु धन विधेयक पहलू को सात न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ को भेज दिया।

वर्ष 2019 के बाद के मामले 

  • वर्ष 2019 के फैसले के बाद के वर्षों में न्यायालय ने कई मामलों में धन विधेयक प्रश्न को संबोधित करने से परहेज किया है क्योंकि सात न्यायाधीशों की पीठ का मामला लंबित है।
  • इनमें धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत प्रवर्तन निदेशालय की व्यापक शक्तियों को चुनौती देना शामिल है, जहां धारा 45 के तहत प्रतिबंधात्मक जमानत शर्तों को धन विधेयक (वित्त अधिनियम, 2018) के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था। 
  • इसके अलावा केंद्र की चुनावी बॉन्ड योजना और विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010 को भी चुनौती दी गई थी, जिसे धन विधेयक मार्ग के माध्यम से पारित किया गया था।

धन विधेयक के बारे में

संविधान में धन विधेयक  

  • संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिभाषा के अनुसार कोई विधेयक तब धन विधेयक माना जाएगा, जब उसमें निम्न में से एक या अधिक या समस्त उपबंध हो : 
    • किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन
    • केंद्रीय सरकार द्वारा उधार लिए गए धन का विनियमन
    • भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना
    • भारत की संचित निधि से धन का विनियोग
    • भारत की संचित निधि पर भारित किसी व्यय की उद्घोषणा या इस प्रकार के किसी व्यय की राशि में वृद्धि
    • भारत की संचित निधि या लोक लेखा में किसी प्रकार के धन की प्राप्ति या अभिरक्षा या इनसे व्यय या केंद्र या राज्य की निधियों का लेखा परीक्षण, या
    • उपरोक्त विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय

कोई विधेयक धन विधेयक नहीं होगा; यदि वह केवल- 

    • जुर्मानों या अन्य धन शास्तियों का अधिरोपण करता है, या
    • अनुज्ञप्तियों के लिए फीस या की गई सेवाओं के लिए फीस की मांग करता है, या
    • किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है।

धन विधेयक के संबंध में लोकसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार 

  • अनुच्छेद 110(3) के तहत, ‘यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, तो उस पर लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा’।
  • अध्यक्ष के निर्णय को किसी न्यायालय, संसद या राष्ट्रपति द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती है। 
  • जब धन विधेयक राज्यसभा एवं राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए जाता है तो लोकसभा अध्यक्ष उसे धन विधेयक के रूप में पुष्टि करता है।

धन विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया

  • धन विधेयक सिर्फ लोकसभा में केवल राष्ट्रपति की सिफारिश से ही प्रस्तुत किया जा सकता है। 
  • इस प्रकार के प्रत्येक विधेयक को सरकारी विधेयक माना जाता है तथा इसे केवल मंत्री ही प्रस्तुत कर सकता है। लोकसभा में इसे साधारण बहुमत से पारित किया जाता है।  

राज्यसभा में धन विधेयक 

  • लोकसभा में पारित होने के उपरांत इसे राज्यसभा के विचारार्थ भेजा जाता है।
  • राज्यसभा के पास धन विधेयक के संबंध में प्रतिबंधित शक्तियां हैं, जिसके कारण यह धन विधेयक को अस्वीकृत या संशोधित नहीं कर सकती है। 
  • इस संबंध में राज्यसभा केवल सिफारिश कर सकती है और 14 दिन में उसे इस पर स्वीकृति देनी होती है अन्यथा वह राज्यसभा से पारित समझा जाता है।
  • धन विधेयक के संबंध में लोकसभा के लिये यह आवश्यक नहीं होता है कि वह राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार ही करे।
    • यदि लोकसभा किसी प्रकार की सिफारिश को मान लेती है तो फिर इस संशोधित विधेयक को दोनों सदनों द्वारा संयुक्त रूप से पारित समझा जाता है। किंतु यदि लोकसभा किसी प्रकार की सिफारिश को नहीं मानती है तो फिर इसे मूल रूप में दोनों सदनों द्वारा संयुक्त रूप से पारित समझा जाता है।

वित्त विधेयक के बारे में 

  • साधारणतया वित्त विधेयक, उस विधेयक को कहते हैं, जो वित्तीय मामलों, जैसे- राजस्व या व्यय से संबंधित होता है। 
  • इसमें आगामी वित्तीय वर्ष में किसी नए प्रकार के कर लगाने या कर में संशोधन आदि से संबंधित विषय शामिल होते हैं। 

वित्त विधेयक निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं

  1. धन विधेयक        : अनुच्छेद 110
  2. वित्त विधेयक (I)  : अनुच्छेद 117(1)
  3. वित्त विधेयक (II) : अनुच्छेद 117(3)
  • यद्यपि सभी धन विधेयक, वित्त विधेयक होते हैं किंतु सभी वित्त विधेयक, धन विधेयक नहीं होते हैं। 
    • वस्तुतः केवल वे वित्त विधेयक ही धन विधेयक होते हैं, जिनका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 110 में किया गया है। 
  • वित्त विधेयक (I) तथा (II) की चर्चा संविधान के अनुच्छेद 117 में की गयी है।

वित्त विधेयक (I) 

  • वित्त विधेयक (I) वह विधेयक है, जिसमें अनुच्छेद 110 में उल्लिखित सभी मामले शामिल होते हैं। 
  • इसके अलावा आय के अन्य मामले, जैसे- ऐसा विधेयक, जिसमें ऋण संबंधी खण्ड हो लेकिन वह विशिष्ट ऋण से संबद्ध न हो। 

वित्त विधेयक (I) दो रूपों में धन विधेयक के समान है-

    • दोनों लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं
    • दोनों राष्ट्रपति की सहमति के बाद प्रस्तुत किए जा सकते है। 
  • अन्य सभी मामलों में वित्त विधेयक (I) वह विधेयक है, जिसे उसी प्रकार व्यवहृत किया जाता है, जैसे- साधारण विधेयक। 

वित्त विधेयक (II)  

  • वित्त विधेयक (II) में भारत की संचित निधि पर भारित व्यय संबंधी उपबंध होते हैं किंतु इसमें ऐसा कोई मामला नहीं होता है, जिसका उल्लेख अनुच्छेद 110 में होता है। 
  • इसे साधारण विधेयक की तरह प्रयोग किया जाता है तथा इसके लिये भी वही प्रक्रिया अपनायी जाती है, जो साधारण विधेयक के लिये अपनायी जाती है। 
  • इस विधेयक की एकमात्र विशेषता यह है कि सदन के किसी भी सदन द्वारा इसे तब तक पारित नहीं किया जा सकता है, जब तक कि राष्ट्रपति सदन को ऐसा करने की अनुशंसा न दे। 
  • वित्त विधेयक (II) को संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। इसे प्रस्तुत करने के लिये राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है। दूसरे शब्दों में राष्ट्रपति की अनुशंसा परिचय के स्तर पर नहीं किंतु विचार (Consideration) के स्तर पर जरूरी है। 

साधारण विधेयक बनाम धन विधेयक

साधारण विधेयक

धन विधेयक

  • इसे लोकसभा या राज्यसभा में कहीं भी प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • इसे सिर्फ लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • इसे या तो मंत्री द्वारा या गैर-सरकारी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • इसे सिर्फ मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • यह राष्ट्रपति की संस्तुति के बिना प्रस्तुत होता है।
  • इसे केवल राष्ट्रपति की संस्तुति से ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • इसे राज्यसभा द्वारा संशोधित या अस्वीकृत किया जा सकता है।
  • राज्यसभा इसमें न कोई संशोधन कर सकती है, न ही अस्वीकृति दे सकती है।
  • राज्यसभा इसे अधिकतम छह माह के लिए रोक सकती है।
  • राज्यसभा इसे अधिकतम 14 दिन के लिए रोक सकती है।
  • इसे राज्यसभा में भेजने के लिए लोकसभा अध्यक्ष के प्रमाणन की जरूरत नहीं होती है।
  • इसे लोकसभा अध्यक्ष के प्रमाणन की आवश्यकता होती है।
  • इसे दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। असहमति की अवस्था में राष्ट्रपति संयुक्त बैठक बुला सकता है।
  • इसे सिर्फ लोकसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजा जाता है। इसमें दोनों सदनों के बीच अहसमति का कोई अवसर ही नहीं होता है। इसलिए संयुक्त बैठक का कोई उपबंध नहीं है।
  • इसे राष्ट्रपति द्वारा अस्वीकृत, पारित या पुनर्विचार के लिए भेजा जा सकता है।
  • इसे राष्ट्रपति द्वारा अस्वीकृत या पारित तो किया जा सकता है किंतु पुनर्विचार के लिए लौटाया नहीं जा सकता है।
  • इसके लोकसभा में अस्वीकृत होने पर सरकार को त्याग-पत्र देना पड़ सकता है। (यदि इसे मंत्री ने प्रस्तुत किया हो।)
  • इसके लोकसभा में अस्वीकृत होने पर सरकार को त्याग-पत्र देना पड़ता है।

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