| Mains GS Paper 3-disaster management |
भारत का लगभग 7,500 किमी लंबा समुद्री तट उसे उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के लिए अत्यंत संवेदनशील बनाता है। भारत में हर वर्ष औसतन 5–6 चक्रवात आते हैं, जिनमें से अधिकांश का प्रभाव पूर्वी तट (बंगाल की खाड़ी) पर अधिक देखा जाता है। हाल के वर्षों में भारत ने पूर्वानुमान, निकासी, राहत व पुनर्वास में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसके चलते मृत्यु दर में भारी कमी आई है।

चक्रवात : परिचय एवं भारतीय संदर्भ
चक्रवात (Cyclone) उष्णकटिबंधीय महासागरों में बनने वाली निम्न दाबितीय प्रणाली है, जिसमें तेज़ हवाएँ, भारी वर्षा, और तूफ़ानी लहरें शामिल होती हैं।
भारत के संदर्भ में दो प्रमुख समुद्री स्रोत हैं—
- बंगाल की खाड़ी — 80% चक्रवात यहीं से
- अरब सागर — हाल के वर्षों में चक्रवातों में वृद्धि
इसके प्रभाव—
- तटीय जिलों में तूफ़ानी लहरें
- बाढ़, भूस्खलन
- अवसंरचना नुकसान
- कृषि व मत्स्य क्षेत्र पर गहरा असर
भारत में चक्रवात प्रबंधन का ढांचा
भारत का चक्रवात प्रबंधन तैयारी → चेतावनी → प्रतिक्रिया → पुनर्वास के आधुनिक मॉडल पर आधारित है।
तैयारी (Preparedness & Mitigation)
प्रमुख प्रयास
- National Cyclone Risk Mitigation Project (NCRMP)
- तटीय राज्यों में चक्रवात शेल्टर, उन्नत चेतावनी प्रणाली, इवैकेशन रूट, तटीय एम्बैंकमेंट निर्माण।
- Coastal Zone Management
- मैंग्रोव संरक्षण व रोपण (ओडिशा, पश्चिम बंगाल में प्रभावी)।
- तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) नियम।
- समुदाय-आधारित तैयारी
- स्वयंसेवक दल, मॉक ड्रिल, स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम।
प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System)
- IMD (India Meteorological Department) — चक्रवात का पूर्वानुमान, ट्रैकिंग, नामकरण व चेतावनी जारी करता है।
- Early Warning Dissemination System (EWDS)
- सायरन, SMS अलर्ट, टीवी/रेडियो संदेश, सैटेलाइट-आधारित संचार।
- डॉपलर रडारों का बड़ा नेटवर्क तैयार किया गया है।
त्वरित प्रतिक्रिया (Response)
- प्रभावित क्षेत्रों से मास इवैकेशन
- मल्टी-परपज़ चक्रवात शेल्टरों में सुरक्षित आश्रय
- National Disaster Response Force (NDRF) की तैनाती
- एयरफोर्स/नेवी/कोस्टगार्ड द्वारा बचाव
पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण (Recovery & Reconstruction)
- क्षतिग्रस्त अवसंरचना की मरम्मत
- कृषि/मत्स्य/लघु उद्योगों को मुआवज़ा
- साइकलोन-रेज़िलिएंट इमारतें और तटीय अवसंरचना
- दीर्घकालिक पुनरुद्धार योजना
हाल ही में आया चक्रवात: Cyclone Montha (2025)
परिचय
- चक्रवात Montha अक्टूबर 2025 में बंगाल की खाड़ी में विकसित हुआ।
- 29 अक्टूबर 2025 को आंध्र प्रदेश तट के पास लैंडफॉल हुआ।
प्रभाव
- अत्यधिक वर्षा, 120–140 किमी/घंटा तक की हवाएँ।
- आंध्र प्रदेश में ₹5,244 करोड़ से अधिक का नुकसान दर्ज हुआ।
- सबसे अधिक प्रभावित—
- कृष्णा, बापटला, नेल्लोर जिले
- कृषि, मत्स्य पालन, बिजली व सड़क नेटवर्क
मृत्यु व निकासी
- मृत्यु संख्या अत्यंत कम (कुछ रिपोर्टों के अनुसार 2–8 तक)।
- दसियों हज़ार लोगों को समय रहते सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया।
प्रबंधन की विशेषताएँ और सीख
- तेज़ चेतावनी और समन्वित निकासी ने बड़े स्तर पर जनहानि रोकी।
- तटीय क्षेत्रों में अवसंरचना की कमजोरी सामने आई।
- जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में ऐसे चक्रवात अधिक तीव्र हो सकते हैं—यह संकेत मिला।
ओडिशा मॉडल: भारत की सफलता का उदाहरण
1999 के सुपर साइकलोन के बाद—
- विश्वस्तरीय चक्रवात प्रबंधन प्रणाली विकसित
- 800+ चक्रवात शेल्टर
- ‘Zero Casualty Approach’
- समुदाय आधारित प्रबंधन सर्वाधिक प्रभावी
इसकी वजह से फाइलिन (2013), हुदहुद (2014), फणी (2019), यास (2021) आदि में जनहानि न्यूनतम रही।
मुख्य चुनौतियाँ
- जलवायु परिवर्तन — समुद्र सतह तापमान बढ़ने से चक्रवात अधिक तीव्र।
- तटीय क्षेत्रों में बढ़ती जनसंख्या और अवसंरचना।
- कमजोर इमारतें और पुराने तटीय बाँध।
- आर्थिक नुकसान लगातार बढ़ रहा है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में संचार की अंतिम कड़ी (Last Mile Connectivity) अभी भी चुनौतीपूर्ण।
आगे की दिशा
- अधिक सटीक मौसम मॉडल, AI आधारित ट्रैकिंग
- चक्रवात-प्रतिरोधी निर्माण मानक लागू करना
- मैंग्रोव व तटीय वेटलैंड का बड़े पैमाने पर पुनरुद्धार
- सभी तटीय जिलों में 100% EWDS कवरेज
- अधिक शक्तिशाली NDRF/SDRF टीमें
- स्थानीय जनभागीदारी बढ़ाना
निष्कर्ष
भारत का चक्रवात प्रबंधन पिछले दो दशकों में विश्व-स्तर का बन चुका है। Cyclone Montha (2025) जैसे हाल के चक्रवात ने यह दिखा दिया है कि समय रहते की गई चेतावनी, सामुदायिक तैयारियाँ और मजबूत संस्थागत तंत्र जीवन बचाने में अत्यंत प्रभावी हैं। फिर भी, जलवायु परिवर्तन की चुनौती को देखते हुए भारत को भविष्य के लिए अधिक सुदृढ़, तकनीक-सक्षम और समुदाय-केंद्रित चक्रवात प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता है।