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बिलकिस मामले के दोषियों की रिहाई रद्द

प्रारंभिक परीक्षा- समसामयिकी, दंड प्रक्रिया संहिता’ की धारा 432(7)(बी)
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर- 2 

संदर्भ-

  • सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी, 2024 को गुजरात सरकार द्वारा अगस्त 2022 में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या करने वाले 11 लोगों को दी गई राहत को रद्द कर दिया।

Bilkis-Bano

मुख्य बिंदु-

  • इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही थी, जिसमें न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां भी शामिल थे।
  • इन 11 लोगों को 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
  • कोर्ट ने उन्हें दो सप्ताह के भीतर  जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। 
  • कोर्ट के अनुसार, गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को छूट देने का निर्णय "न्याय के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप और विवेक के दुरुपयोग का एक उदाहरण" था। 
  • सरकार ने दोषियों के साथ मिलकर काम किया था और इसमें मिलीभगत थी।
  • माफ़ी का अर्थ किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को दी गई सज़ा में कमी करना है।
  • सांप्रदायिक घृणा से प्रेरित विलक्षण और क्रूर अपराध के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों की माफी याचिका पर निर्णय लेने के लिए गुजरात में उपयुक्त सरकार नहीं थी। 
  • छूट की शक्ति से संबंधित ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ की धारा 432(7)(बी) स्पष्ट रूप से कहता है कि जिस राज्य में अपराधी को सजा सुनाई गई है, उस राज्य की सरकार ही छूट का आदेश पारित करने के लिए उपयुक्त सरकार है। 
  • उस राज्य की सरकार उपयुक्त नहीं है, जहां अपराध हुआ था या जहां दोषी को कैद किया गया था।

घटना-

  • गुजरात के दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में गुजरात दंगों के दौरान 3 मार्च 2002 को भीड़ द्वारा 14 लोगों की हत्या कर दी गई थी। 
  • इस दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। 
  • सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष, 2004 में असाधारण परिस्थितियों का हवाला देते हुए मामले की सुनवाई गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित कर दी थी।
  • वर्ष, 2008 की मुंबई में एक सीबीआई अदालत ने 11 लोगों को दोषी ठहराया था। 
  • जेल में 15 साल और 4 महीने पूरे कर चुके दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी।
  • रिट याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई, 2022 को आदेश दिया था कि गुजरात सरकार उसकी रिट  याचिका पर निर्णय लेने के लिए उपयुक्त सरकार है। 
  • राज्य की 1992 की छूट और समयपूर्व रिहाई नीति के आधार पर।
  • इसके बाद गुजरात सरकार ने 15 अगस्त, 2023 को अपनी 1992 की छूट नीति के तहत 11 दोषियों को रिहा कर दिया था। 
  • सरकार ने दोषियों को अच्छे व्यवहार के आधार पर छूट देने के लिए जेल सलाहकार समिति (जेएसी) की "सर्वसम्मति" सिफारिश का हवाला दिया था।

रिट  याचिका की समीक्षा-

  • न्यायमूर्ति नागरत्ना और न्यायमूर्ति भुइयां की पीठ ने गुजरात सरकार से सुप्रीम कोर्ट के 13 मई, 2022 के फैसले में  सुधार के लिए दूसरे पीठ में आवेदन न करने के बारे में पूछा।
  • पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के 13 मई, 2022 के फैसले की समीक्षा की और पाया कि इस मामले के लिए गुजरात सरकार उपयुक्त सरकार नहीं थी, बल्कि महाराष्ट्र सरकार थी।
  • इससे आगे मुकदमेबाजी बिल्कुल भी उत्पन्न नहीं होती। 
  • गुजरात सरकार ने महाराष्ट्र  सरकार की शक्ति छीन ली और सुप्रीम कोर्ट के 13 मई, 2022 के फैसले के आधार पर छूट के आदेश पारित कर दिए, कानून में अमान्य है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई, 2022 के फैसले को "कानून में शून्यता और गैर-स्थायित्व"( nullity and non est in law) वाला माना। 
  • यह फैसला तथ्यों को दबाकर और साथ ही तथ्यों की गलत बयानी के आधार पर दिया गया।
  • उक्त फैसले  के अनुसार की गई सभी कार्यवाही निष्प्रभावी हो गई हैं और कानून की नज़र में अप्रासंगिक हैं।

सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला-

  • सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दोषियों द्वारा की गई अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए दायर की गई रिट याचिका को खारिज कर दिया। 
  • दोषियों को जेल से बाहर रहने की अनुमति देना विधि के शासन की अनदेखी करना है।
  • दोषी भले ही कानून के अनुसार नए सिरे से छूट की मांग करना चाहते हैं, किंतु उन्हें जेल में रहना होगा क्योंकि वे जमानत पर या जेल के बाहर छूट की मांग नहीं कर सकते हैं।
  • राधेश्याम शाह पहले गुजरात हाई कोर्ट से कोई राहत पाने में विफल रहे थे।
  • इसके बाद राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में गुप्त रूप से रिट याचिका दायर की। 
  • इस रिट याचिका में सुप्रीम कोर्ट में पूर्ण तथ्यों का खुलासा किए बिना उनके मामले में छूट पर विचार करने की मांग की गई थी।
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुजरात राज्य को क्षेत्र अधिकार प्रदान करके राहत दी गई थी, जो उसके पास नहीं था।
  •  9 जुलाई 1992 की नीति के आधार पर, जिसे वर्ष 2013 में रद्द कर दिया गया था।
  • विधि  के शासन के सिद्धांतों का पालन करते हुए अनु. 14 में निहित कानून के समान संरक्षण के सिद्धांत के आधार पर दोषियों को स्वतंत्रता से वंचित करना उचित है। 

आगे की राह-

  • इस मामले से जुड़े सभी दोषियों को अगले दो हफ़्ते के अंदर जेल वापस जाना है। 
  • महाराष्ट्र की सज़ा माफ़ी नीति ज़्यादा कठोर है। 
  • यदि कोई क़ानून को सही से लागू करे तो बिलकिस बानो मामले में सज़ा माफ़ी मिलना नामुमकिन है।
  • महाराष्ट्र सरकार की 11 अप्रैल 2008 नीति के अनुसार, बिलकिस बानो के अपराधियों को कम से कम 28 साल जेल में बिताने होंगे।
  • महाराष्ट्र में 2008 में लागू नीति के तहत महिलाओं और बच्चों की हत्या या उनके साथ रेप के मामलों में 28 साल की सज़ा के बाद ही सज़ा माफ़ी दी जा सकती है।
  • इससे सरकार द्वारा अधिकारों का मनमाना प्रयोग बंद हो जाना चाहिए।
  • महत्वपूर्ण बात यह है कि वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए और निर्णय के लिए कारण बताए जाने चाहिए।”

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- बिलकिस बानो मामले के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1.  सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष, 2004 में इस मामले की सुनवाई गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित कर दी थी।
  2. वर्ष, 2008 की मुंबई में एक सीबीआई अदालत ने 11 लोगों को दोषी ठहराया था।

नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए।

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर- (c)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न-  गुजरात सरकार द्वारा बिलकिस बानो मामले के दोषियों को छूट देने का निर्णय "न्याय के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप और विवेक के दुरुपयोग का एक उदाहरण" था। समीक्षा कीजिए।

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