New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 5 May, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 11 May, 5:30 PM Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back GS Foundation (P+M) - Delhi: 5 May, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 11 May, 5:30 PM Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back

आज़ादी में तारापुर नरसंहार की भूमिका

चर्चा में क्यों

बिहार के मुख्यमंत्री ने मुंगेर ज़िले के तारापुर में ब्रिटिश पुलिस द्वारा मारे गए 34 स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में 15 फरवरी को राजकीय स्तर पर ‘शहीद दिवस’ ​​के रूप में मनाए जाने की घोषणा की है। विदित है कि प्रधानमंत्री ने भी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में तारापुर नरसंहार का उल्लेख किया था।

तारापुर नरसंहार (15 फरवरी, 1932) : पृष्ठभूमि

  • 23 मार्च, 1931 को लाहौर में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फाँसी के विरोध में प्रदर्शन हुए। इस कारण मुंगेर में स्वतंत्रता सेनानी श्रीकृष्ण सिंह, नेमधारी सिंह, निरापद मुखर्जी, पंडित दशरथ झा, बासुकीनाथ राय, दीनानाथ सहाय और जयमंगल शास्त्री को गिरफ्तार भी किया गया।
  • मुंगेर में स्वतंत्रता सेनानियों की गतिविधि के दो केंद्र थे- तारापुर के पास ढोल पहाड़ी और संग्रामपुर में सुपौर-जमुआ गाँव।
  • कॉन्ग्रेस नेता सरदार शार्दुल सिंह कविश्वर द्वारा सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने का आह्वान तारापुर में गूंज उठा।
  • 15 फरवरी, 1932 को युवा स्वतंत्रता सेनानियों के एक समूह ने तारापुर के थाना भवन में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने की योजना बनाई, जिसकी जानकारी पुलिस को थी।
  • पुलिस द्वारा क्रूरतापूर्वक लाठीचार्ज के बावजूद गोपाल सिंह थाना भवन में झंडा फहराने में सफल रहे। लगभग 4,000 लोगों की भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया, जिसमें नागरिक प्रशासन का एक अधिकारी घायल हो गया।
  • जवाबी कार्रवाई में पुलिस फायरिंग में 34 व्यक्ति शहीद हो गए। हालाँकि, हताहतों की संख्या के अधिक होने का दावा किया गया।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR