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मध्याह्न भोजन योजना/प्रधान मंत्री पोषण योजना 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए - मध्याह्न भोजन योजना
मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:2  - सरकारी योजनाएं 

योजना का नाम 

मध्याह्न भोजन योजना/प्रधान मंत्री पोषण योजना

आरंभ 

1995

लक्ष्य 

सरकारी स्कूलों में बच्चों को निर्दिष्ट पोषण मानदंडों के साथ मुफ्त पका हुआ भोजन उपलब्ध कराना

नोडल मंत्रालय 

शिक्षा मंत्रालय

क्रियान्वयन क्षेत्र 

सभी राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश 

आधिकारिक बेवसाइट 

pmposhan.education.gov.in

मध्याह्न भोजन योजना(एमडीएम)

  • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे वर्ष 1995 में शुरू किया गया था।
  • इसके अंतर्गत केंद्र सरकार, राज्यों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराती है, तथा शेष अन्य लागतें (जैसे-परिवहन, खाना पकाने, आदि) राज्यों के साथ साझा की जाती है।
  • सितंबर 2021 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा इस योजना का नाम बदलकर PM-POSHAN ( प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण) योजना कर दिया गया।
  • शिक्षा मंत्रालय, इस योजना के लिए नोडल मंत्रालय है।
  • मध्याह्न भोजन योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अंतर्गत क्रियान्वित होती है।

पृष्ठभूमि

  • 1925  में, मद्रास नगर निगम में वंचित बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन कार्यक्रम शुरू किया गया था।
  • 1980  के दशक के मध्य तक तीन राज्यों, गुजरात, केरल और तमिलनाडु और संघ शासित प्रदेश पांडिचेरी ने प्राथमिक स्तर पर पढ़ने वाले बच्चों के लिए अपने स्वयं के संसाधनों से पकाए गए मध्याह्न भोजन कार्यक्रम को लागू किया था।
  • 1990-91 तक, सार्वभौमिक या बड़े पैमाने पर अपने स्वयं के संसाधनों के साथ मध्याह्न भोजन कार्यक्रम को लागू करने वाले राज्यों की संख्या बढ़कर 12 हो गयी।

उद्देश्य 

  • सरकारी स्कूलों में बच्चों को निर्दिष्ट पोषण मानदंडों के साथ मुफ्त पका हुआ भोजन उपलब्ध कराना।
  • सरकारी स्थानीय निकाय और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल और ईजीएस व एआईई केन्द्रों तथा सर्व शिक्षा अभियान के तहत सहायता प्राप्‍त मदरसों एवं मकतबों में कक्षा I से VIII के बच्चों के पोषण स्तर में सुधार करना।
  • वंचित वर्गों के गरीब बच्‍चों को नियमित रूप से स्‍कूल आने और कक्षा के कार्यकलापों पर ध्‍यान केन्द्रित करने में सहायता करना।
  • जातियों के बीच समाजीकरण में सुधार करना। 
  • रोजगार के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना।

 प्रमुख विशेषताएं 

  • प्राथमिक स्तर पर प्रत्येक बच्चे को 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध कराना।
  • खाद्य पदार्थों का फोर्टीफिकेशन कर पोषण गुणवत्ता को बढावा देना।
  • राज्य और केंद्र शासित प्रदेश, केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए केंद्रीय बफर स्टॉक से मध्याहन भोजन के लिए अपनी स्थानीय आवश्यकता के अनुसार दाल खरीद सकते हैं।
  • मध्याह्न भोजन योजना में समुदाय और अन्य एजेंसियों जैसे मंदिरों, गुरुद्वारों आदि को शामिल कर सामाजिक सहभागिता को बढावा देना।
  • समुदाय के लोगों को मध्याहन भोजन योजना में योगदान देने हेतु बच्चे के जन्म, विवाह, जन्मदिन आदि को मनाने के लिए प्रोत्साहित करना।

mid-day-meal

महत्व 

  • मिड-डे मील योजना, स्कूल में बच्चे की भागीदारी को बढ़ावा देती है, विशेष रूप से वंचित वर्गों (विशेष रूप से लड़कियों, दलितों और आदिवासियों) के बच्चों की भागीदारी को।
    • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के बच्चों के संबंध में यह वृद्धि अधिक तेजी से हुई है।
  • यह कक्षा की भूख को कम करने में मदद करता है, बेहतर सीखने को बढ़ावा देता है और बच्चे के स्वस्थ विकास को सुगम बनाता है।
  • यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो स्कूलों में बेहतर नामांकन और प्रतिधारण की ओर ले जाता है। 
  • यह योजना खाने की अच्छी आदतों को बढ़ावा देती है, जैसे हाथ धोना, खाना खत्म करना इत्यादि।
  • यह सामाजिक और लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है, क्योंकि सभी बच्चों को समान भोजन मिलता है और वे एक साथ बैठकर खाना खाते है। 

चुनौतियाँ 

  • इस कार्यक्रम की सफलता के बावजूद, भारत में बाल भूख एक समस्या के रूप में बनी हुई है।
  • कुछ विद्यालयों में लकड़ी से भोजन बनाया जाता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि होती है।
  • कुछ विद्यालयों में मध्याह्न भोजन तैयार करने के लिए उचित रसोई और भंडार कक्ष की सुविधा नहीं है।
  • कुछ ऐसे उदाहरण भी हैं, जहां बच्चे केवल भोजन के लिए स्कूल आते हैं, और खाने के तुरंत बाद चले जाते हैं।
  • योजना का मुख्य फोकस भोजन की पहुंच पर है, ना कि भोजन की मात्रा या गुणवत्ता पर।
  • मिड डे मील पर की कैग की परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट में ना केवल शिक्षा मंत्रालय द्वारा वित्तीय कुप्रबंधन पाया गया, बल्कि यह भी पता चला है कि इस योजना के लिए निर्धारित 123.29 करोड़ रुपये के फंड के डायवर्जन में राज्यों की भी संलिप्तता थी।
  • कुछ जगहों पर उच्च जाति के बच्चे, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं द्वारा पकाए गए भोजन को खाने से मना कर देते हैं, कुछ जगहों पर दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों को दूसरों से अलग बिठाया जाता है।
  • योजना का कार्यान्वयन दोषपूर्ण है, उचित दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जाता, चाहे वह खाने का मेन्यू हो या फिर कैलोरी की मात्रा।
  • योजना से संबंधित अन्य प्रमुख चुनौतियों में अनियमितता, भ्रष्टाचार, स्वच्छता, अपर्याप्त पोषण सामग्री आदि शामिल है।

आगे की राह 

  • बेहतर सुविधाओं के लिए, सार्वजनिक निजी भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
    • कॉरपोरेट्स की मदद लेना एक आसान तरीका है।
  • एमडीएम में भ्रष्टाचार को कम करने और जवाबदेही बढ़ाने के लिए सामुदायिक निगरानी, ​​​​सामाजिक लेखा परीक्षा, विकेंद्रीकृत शिकायत निवारण प्रणाली, लाभार्थियों और मेन्यू आदि पर जानकारी का सार्वजनिक प्रदर्शन किया जाना चाहिये।
  • शिक्षकों को मध्याह्न भोजन योजना के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी नहीं सौंपी जानी चाहिए, क्योंकि इससे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में बाधा आती है।
  • रसोइयों को अच्छा वेतन मिलना चाहिए, ताकि वे रुचि और प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर सकें।
  • मध्याह्न भोजन तैयार करने के लिए एलपीजी, किचन और स्टोर रूम की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  • स्कूलों को समय पर धन और अच्छे अनाज का हस्तांतरण सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • खाद्यान्नों और पके हुए भोजन की गुणवत्ता की नियमित रूप से जांच की जानी चाहिए और गुणवत्ता संबंधी सभी शिकायतों का तत्काल समाधान किया जाना चाहिए। 
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