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सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैवाहिक बलात्कार से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई

प्रारंभिक परीक्षा – वैवाहिक बलात्कार
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 - भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, महिलाओं से संबंधित मुद्दे 

सन्दर्भ 

  • हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की गयी।

वैवाहिक बलात्कार

  • वैवाहिक बलात्कार का अर्थ पति-पत्नी में से एक दूसरे की सहमति के बिना यौन संबंध बनाना है।
  • विश्व में लगभग 100 से अधिक देशों ने वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण कर दिया है, लेकिन भारत उन 36 देशों में से एक है जहाँ वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित नहीं किया गया है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 5.4% भारतीय महिलाओं ने अपने जीवन काल में वैवाहिक बलात्कार का अनुभव किया है।

कानूनी प्रावधान

  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 बलात्कार को एक अपराध के रूप में परिभाषित करती है, इसके अनुसार अगर कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाता है तो वह बलात्कार कहलाता है।
  • आईपीसी की धारा 375 का अपवाद 2 वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है और यह मानता है कि एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ, जिसकी आयु 18 वर्ष से कम नहीं है, उसकी सहमति के बिना बनाया गया यौन संबंध बलात्कार नहीं है।
  • पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, वैवाहिक बलात्कार एक प्रकार की घरेलू हिंसा है, इस कानून के तहत कोई महिला अदालत में वैवाहिक बलात्कार के लिए अपने पति से न्यायिक अलगाव की मांग कर सकती है।
  • विवाहित महिलाओं को, गैर-सहमति वाले यौन संबंधों के विरुद्ध कानूनी संरक्षण घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम या आईपीसी की धारा 498-ए के तहत प्राप्त है।
  • आईपीसी की धारा 376-ए के तहत न्यायिक रूप से अलग हुई पत्नी के साथ बलात्कार को अपराध घोषित किया गया था। 

वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के पक्ष में तर्क 

  • वैवाहिक बलात्कार यौन हिंसा का एक गंभीर रूप है, जो लैंगिक न्याय के प्रतीक के रूप में कई सभ्य समाज में दंडनीय है।
  • वैवाहिक बलात्कार महिला की गरिमा का उल्लंघन करता है जिससे अनुच्छेद 21 (गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार) का उल्लंघन होता है।
  • वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के बीच उनकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर भेदभाव करता है और उन्हें यौन स्वायत्तता से वंचित करता है।
  • वैवाहिक स्थिति के आधार पर महिलाओं के लिए बलात्कार के अलग प्रावधानों को लागू करना समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) के भी विरुद्ध है। 
  • वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर रखना समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता को मजबूत बनाना है, जिसके तहत पत्नी को पति की संपत्ति माना जाता है और वे उसके साथ कुछ भी कर सकते हैं।
  • वैवाहिक बलात्कार के प्रति प्रतिरोधकता प्रदान करने से महिलाओं की गर्भनिरोधक के बारे में बातचीत करने, यौन संचरित होने वाली बीमारी से खुद को बचाने की शक्ति खत्म हो जाती है।
  • वैवाहिक बलात्कार से पीड़ित महिलाओं पर इसका गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है, एक अध्ययन के अनुसार, वैवाहिक बलात्कार की शिकार महिलाओं में अवसाद का शिकार होने की संभावना लगभग दोगुनी होती है।
  • विवाह को एक पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन बलात्कार करने के लाइसेंस के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
  • निर्भया गैंगरेप मामले में गठित न्यायमूर्ति वर्मा समिति और 2013 में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र समिति (सीईडीएडब्ल्यू) ने भी सिफारिश की थी कि भारत सरकार को वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण करना चाहिए। 

वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण से जुड़ी चुनौतियाँ

  • वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण परिवारों में अराजकता पैदा करेगा और विवाह संस्था को अस्थिर करेगा।
  • कुछ पत्नियां अपने निर्दोष पतियों पर वैवाहिक बलात्कार के झूठे मामलों का आरोप लगा सकती हैं तथा पतियों के लिए अपनी बेगुनाही साबित करना मुश्किल होगा।
    • वैवाहिक बलात्कार आईपीसी की धारा 498ए (पति और ससुराल वालों द्वारा विवाहित महिला को परेशान करना) और घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के दुरुपयोग के समान कानून का दुरुपयोग करके पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकता है। 
  • कानून का दुरुपयोग एक बड़ा कारण है जिसके कारण कई न्यायविदों और और पुरुष अधिकार कार्यकर्ताओं ने वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण पर चिंता जताई है। 
  • कुछ कार्यकर्ताओं के अनुसार, दहेज के अधिकांश मामले झूठे साबित होते हैं तथा भारत इसी प्रकार के एक और विनाशकारी कानून से नहीं निपट सकता है जो कानूनी आतंकवाद के बराबर होगा।

आगे की राह 

  • वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण पर विचार करने से पहले वैवाहिक बलात्कार और वैवाहिक गैर-बलात्कार को परिभाषित करने की आवश्यकता है, वैवाहिक बलात्कार को परिभाषित करने के लिए समाज में व्यापक सहमति की आवश्यकता होगी।
  • कड़े, जवाबदेह और अच्छी तरह से लागू कानूनों के साथ समाज के लोगों के बीच जागरूकता पीड़ितों के लिए वरदान साबित होगी और शादी के भीतर गहरी जड़ें जमाए हुए लिंगवाद, पितृसत्तात्मक संरचना, विषम संबंधों को ठीक करने में मदद करेगी। 
  • सती प्रथा के उन्मूलन से लेकर LGBT को वैध बनाने तक प्रत्येक ऐतिहासिक कानून एक समाज के भीतर एक गेम चेंजर रहा है, जिसे समय के साथ स्वीकार किया गया।
  • सरकार का दायित्व भारत के संविधान के उद्देश्यों को पूरा करना है ताकि अपने नागरिकों को कल्याण और न्याय के लिए सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराकर उनकी रक्षा की जा सके।
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