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गौण खनिजों का अवैध खनन

(मुख्य परीक्षा, समाने अध्ययन प्रशंपत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

विकास एवं निर्माण क्षेत्र की तीव्र गति के कारण देश में रेत और बजरी जैसे गौण खनिजों की मांग 60 मिलियन मीट्रिक टन से भी अधिक हो गयी है। इसके कारण ही इस क्षेत्र को जल के बाद दूसरे सबसे बड़े निष्कर्षण उद्योग के रूप में जाना जाता है। देश में मुख्य खनिजों के खनन के लिये कानूनों और निगरानी को सख्त बना दिया गया है किंतु गौण खनिजों का बड़े पैमाने पर अवैध खनन बेरोकटोक जारी है। 

खनन विनियमन का मुद्दा

 पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन

  • मुख्य खनिजों के विपरीत गौण खनिजों के संबंध में नियम निर्धारण, रॉयल्टी दर निर्धारण एवं रियायत प्रदान करने संबंधी सभी शक्तियां राज्य सरकार में निहित होती है।
  • वर्ष 1994 एवं वर्ष 2006 की पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (EIA) अधिसूचनाओं ने पांच हेक्टेयर और इससे अधिक की खनन गतिविधियों के लिये पर्यावरण मंज़ूरी को अनिवार्य कर दिया है।
  • वर्ष 2010 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की गौण खनिजों के पर्यावरणीय पहलुओं पर एक रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों को पांच हेक्टेयर से कम भूक्षेत्र पर उत्खनन के लिये भी पर्यावरण स्वीकृति अनिवार्य करने का निर्देश दिया था।
  • उपर्युक्त निर्देशों के फलस्वरूप वर्ष 2016 में पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन को संशोधित करते हुए पांच हेक्टेयर से कम के खनिज खनन कार्यों के लिये पर्यावरणीय स्वीकृति को अनिवार्य कर दिया गया था।
  • इसमें ‘जिला पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन प्राधिकरण’ और ‘जिला विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति’ की स्थापना के भी प्रावधान थे।

समीक्षा और स्वीकृत दर 

  • हालाँकि, भारत के प्रमुख औद्योगिक राज्यों में जिला पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन प्राधिकरण और जिला विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की राज्यवार समीक्षा से ज्ञात होता है कि ये प्राधिकरण एक दिन में लगभग 50 परियोजना प्रस्तावों की समीक्षा करते हैं।
  • इनकी औसत अस्वीकृति दर मात्र एक प्रतिशत है। ऐसी स्थिति में गौण खनिजों के अवैध खनन में अनियमितताओं को खत्म करने में केवल निर्धारित प्रक्रिया के पालन की प्रासंगिकता पर सवाल उठता है। 
  • इसके लिये एक मज़बूत प्रौद्योगिकी संचालन प्रवर्तन दृष्टिकोण अपनाये जाने की आवश्यकता है।

अवैध खनन गतिविधियों का प्रभाव 

प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता में कमी और आपदा में वृद्धि  

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने वर्ष 2019 में अवैध रेत खनन से पर्यावरणीय ह्रास के लिये ज़िम्मेदार राष्ट्रों की सूची में चीन तथा भारत को शीर्ष स्थान पर रखा था। इसके बावजूद अभी तक भारत में रेत खनन के मूल्यांकन के लिये किसी प्रणाली का निर्धारण नहीं किया गया है।
  • विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र द्वारा उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के किनारे किये गए एक अध्ययन के अनुसार मिट्टी की बढती मांग ने भूमि की मृदा निर्माण और मृदा धारण क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इसने समुद्री जीवन की क्षति, बाढ़ की आवृति में वृद्धि, सूखा और जल गुणवत्ता में ह्रास जैसी समस्याओं को जन्म दिया है। 
  • भारत की अन्य नदियाँ भी ऐसी ही स्थिति से गुज़र रहीं हैं। एक शोध के अनुसार, नर्मदा नदी बेसिन पर अवैध खनन के कारण वर्ष 1963 से 2015 के बीच महासीर मछली की संख्या में 76% का ह्रास हुआ है। 

राजकोष पर प्रभाव 

  • अवैध खनन पर्यावरण के साथ-साथ सरकारी कोष को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। अनुमानत: अवैध खनन के कारण केवल उत्तर प्रदेश को 70% राजस्व हानि वहन करना पड़ रहा है। इसी प्रकार रॉयल्टी के आभाव में बिहार को लगभग 700 करोड़ रुपए की राजस्व हानि हो रही है। 
  • इसके अतिरिक्त अनियमित खनन के कारण उपकारों का भुगतान न किये जाने के फलस्वरूप वर्ष 2016-17 में कर्नाटक को 100 करोड़ रुपए और मध्य प्रदेश को 600 करोड़ रूपए का नुकसान हुआ था।

न्यायिक आदेश और राज्य की प्रतिक्रियाएँ 

  • राज्य सरकारों द्वारा प्राय: न्यायिक आदेशों की उपेक्षा की जाती है। उदाहरणस्वरुप राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) की निरीक्षण समिति की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में अवैध रेत खनन के कारण गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो गई है। इसके बावजूद राज्य अवैध रेत खनन के मुआवजे के संबंध में जारी आदेशों के पालन में आंशिक रूप से ही सफल रहा है। भारत के अन्य राज्यों में भी यही स्थिति है।
  • आदेशों के अनुपालन में कमी के कुछ मुख्य कारण-
    • कमज़ोर संस्थाओं के कारण शासन व्यवस्था में अक्षमता
    • राज्य में नियमों के अनुपालन के लिये संसाधनों की कमी
    • नियामक प्रावधानों का अनुचित एवं त्रुटिपूर्ण प्रारूप
    • निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र का आभाव 
    • अत्यधिक अभियोग के कारण राज्य की प्रशासनिक क्षमता का ह्रास

आगे की राह 

  • भारत के अधिकांश राज्य अवैध खनिज खनन के नियमन की समस्या के समाधान में विफल रहे है। ध्यातव्य है कि गौण खनिजों के संरक्षण और धारणीय निष्कर्षण का दायित्व मुख्यत: राज्यों को सौंपा गया है। इसलिये राज्यों द्वारा इस संबंध में एक उचित निगरानी तंत्र की स्थापना करना अवाश्यक है।
  • खनिज उत्खनन से संबंधित नियमों को अधिक सख्त करने के साथ-साथ उनके अनुपालन को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • चूँकि खनिज उत्खनन का विषय पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील है इसीलिये इसका दायित्व पूर्णत: राज्यों पर नहीं छोड़ा जाना चाहिये और यह मामला नियमित रूप से केंद्र के संज्ञान में रहना चाहिये।  
  • खनन निकासी गतिविधियों को उपग्रह चित्रण (Satellite Imagery) तकनीक के प्रयोग से नियंत्रित किया जा सकता है तथा सभी राज्यों द्वारा इसका अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS), राडार और रेडियो फ्रीक्वेंसी लोकेटर के माध्यम से ड्रोन, ब्लाकचैन तकनीक और इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स का उपयोग करके खनन गतिविधियों की निगरानी और जाँच संभव है। 

निष्कर्ष

लघु खनिजों का असीमित अवैध खनन राज्यीय पर्यावरण के साथ-साथ राजकोष को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसलिये इस संबंध में एक उचित और निर्णायक तंत्र के सृजन के अतिरिक्त सभी खनन गतिविधियों की नियमित निगरानी की जानी चाहिये।

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