New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM Mid Year Mega Sale UPTO 75% Off, Valid Till : 17th June 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi: 27 June, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 22 June, 5:30 PM

ला नीना और भारतीय मानसून 

(प्रारंभिक परीक्षा- भारत एवं विश्व का प्राकृतिक भूगोल )
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ)

संदर्भ

भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में ला नीना की स्थिति लगातार तीसरे वर्ष भी बनी हुई है, जोकि एक असामान्य महासागरीय परिघटना है। ला नीना का वर्तमान चरण सितंबर 2020 से प्रचलित है।

/Indian-Meteorological-Department

हालिया घटनाक्रम

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार 1950 के दशक के बाद से दो वर्ष से अधिक समय तक ला नीना के प्रचलन को केवल छह बार दर्ज किया गया है।
  • अगस्त के मध्य में ऑस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो, अमेरिका के राष्ट्रीय समुद्री एवं वायुमंडलीय प्रशासन तथा भारत के मानसून मिशन जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली कार्यालय ने ला नीना की स्थिति के वर्ष 2022 तक बने रहने की पुष्टि की है।
  • हालाँकि, इससे पूर्व यह अनुमान लगाया गया था कि अगस्त तक ला नीना की स्थिति समाप्त हो जाएगी।

ला नीना एवं अल नीनो 

ला नीना

  • ला नीना और अल नीनो शब्द का संदर्भ प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में समय-समय पर होने वाले बदलावों से है, जिसका प्रभाव दुनिया भर के मौसम पर पड़ता है।
  • भूमध्य रेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र में सतह पर वायु दाब सामान्य से अधिक होने पर ला नीना की स्थिति उत्पन्न होती है। इसकी उत्पत्ति का सबसे प्रचलित कारण व्यापारिक पवनों का पूर्व की ओर से काफी तीव्र गति से प्रवाहित होना है। 

अल नीनो

  • ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत महासागर के भूमध्य रेखीय क्षेत्र में समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आए बदलाव के लिये उत्तरदाई समुद्री घटना को अल नीनो कहते हैं। 
  • अल नीनो के दौरान मध्य और पूर्वी भूमध्य रेखीय प्रशांत महासागर में सतह का पानी असामान्य रूप से गर्म हो जाता है। पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली पवनें कमज़ोर पड़ती हैं और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र का गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है।
  • ला नीना की स्थिति में इन क्षेत्रों में समुद्री सतह का तापमान कम हो जाता है, जबकि अल नीनो की स्थिति में मध्य और भूमध्य रेखीय प्रशांत महासागर के समुद्री सतह का तापमान असामान्य रूप से अधिक हो जाता है।

अन्य तथ्य 

  • दोनों परिघटना प्राय: पर 9-12 महीने तक रहती हैं किंतु असाधारण परिस्थितियों में कई वर्षों तक रह सकती है। ये दोनों ही स्थितियाँ प्राय: 3 से 7 वर्ष में दिखाई देती हैं।
  • एल नीनो दक्षिणी दोलन (El Nino Southern Oscillation : ENSO) प्रमुख जलवायु चालकों में से एक है जिसके लिये मध्य और भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र के समुद्र की सतह के तापमान का निरंतर अवलोकन किया जाता है। 
  • वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण में इसका अत्यधिक प्रभाव होने के कारण यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ई.एन.एस.ओ. की स्थिति विश्व स्तर पर तापमान और वर्षा प्रतिरूप में परिवर्तन ला सकती है। इसके तीन चरण हैं - एल नीनो, तटस्थ और ला नीना।
  • अल नीनो की घटना प्राय: एक वर्ष से अधिक समय तक नहीं रहती है, जबकि ला नीना की घटनाएँ एक वर्ष से तीन वर्ष तक बनी रह सकती हैं। दोनों परिघटनाएँ उत्तरी गोलार्द्ध में शीतकाल के दौरान चरम पर होती हैं।

ला नीना एवं अल नीनो का प्रभाव 

ला नीना का प्रभाव 

  • तापमान में कमी- ला नीना के कारण समुद्री सतह का तापमान अत्यंत कम हो जाने से दुनियाभर का तापमान औसत से काफी कम हो जाता है।
  • ला नीना से प्राय: उत्तर-पश्चिम में मौसम ठंडा और दक्षिण-पूर्व में मौसम गर्म होता है। भारत में इस दौरान अत्यधिक ठंड पड़ती है।
  • चक्रवातों की दिशा में परिवर्तन- ला नीना अपनी गति के साथ उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा को बदल सकती है। साथ ही, यूरोप में अल नीनो से तूफानों की संख्या में कमी आती है 
  • साथ ही, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में अत्यधिक आर्द्रता वाली स्थिति उत्पन्न होती है। 
  • वर्षा पर प्रभाव- इससे इंडोनेशिया तथा आसपास के क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा हो सकती है और ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ आने की संभावना होती है। वहीं इक्वाडोर और पेरू सूखाग्रस्त हो जाते हैं। 

अल नीनो का प्रभाव 

  • तापमान पर प्रभाव- इसके कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है। ये तापमान सामान्य से 4-5°C अधिक हो सकता है जिससे मछलियों और अन्य जलीय जीव की मृत्यु औसत आयु से पूर्व ही होने लगती हैं।
  • वर्षा पर प्रभाव- इसके प्रभाव से कम वर्षा वाले स्थानों पर अधिक वर्षा होती है। यदि अल नीनो दक्षिण अमेरिका की तरफ सक्रिय हो तो उस वर्ष भारत में कम वर्षा होती है।
  • अल नीनो के कारण अटलांटिक महासागर में तूफान की घटनाओं में कमी आती है।

ला नीना की वर्तमान स्थिति 

  • ला नीना की वर्तमान स्थिति ‘असामान्य’ है क्योंकि यह विगत तीन वर्षों से जारी है। यह भारत के लिये अच्छा हो सकता है किंतु कुछ अन्य देशों के लिये यह हानिकारक है।
  • इसके लिये मुख्यत: जलवायु परिवर्तन जैसे कारक उत्तरदायी हो सकते हैं। अल नीनो भी प्राय: हीटवेव और अत्यधिक तापमान से संबंधित होता है, जैसा कि इन दिनों अमेरिका, चीन और यूरोप के कुछ हिस्सों में देखा जा रहा है।
  • ला नीना की पिछली घटनाओं की अवधि में भारत में पूर्वोत्तर मानसून के दौरान वर्षा की कमी देखी गई किंतु वर्ष 2021 इसका अपवाद रहा।
  • आई.एम.डी. के अनुसार अक्टूबर से दिसंबर 2021 के मध्य दक्षिणी भारतीय प्रायद्वीप में 171% अधिशेष वर्षा दर्ज़ की गई जो वर्ष 1901 के बाद से अब तक का सबसे आर्द्र शीतकालीन मानसून रहा।  
  • विगत दो वर्षों के दौरान समुद्री सतह का तापमान दो बार सबसे कम रहा है। वैज्ञानिक 2020-2021-2022 के दौरान लगातार ला नीना की स्थिति को 'डबल-डिप' ला नीना के रूप में संदर्भित कर रहे हैं।

ला नीना का भारतीय मानसून पर प्रभाव 

  • भारतीय संदर्भ में, अल नीनो की अवधि में सामान्य मानसून से कम वर्षा देखी गई है और यह अत्यधिक गर्मी का कारण बनता है। ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2014 में अल नीना के कारण ही भारत में जून से सितंबर के दौरान 12% कम वर्षा हुई। दूसरी ओर, ला नीना भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान अधिक वर्षा का कारण बनते हैं।
  • इस वर्ष भारत में 30 अगस्त तक मौसमी वर्षा औसत से मात्रात्मक रूप से 7% अधिक रही। हालाँकि, वर्षा के वितरण में विभिन्न राज्यों के मध्य असमानता विद्यमान है। उत्तर प्रदेश और मणिपुर (-44%) तथा बिहार (-39%) इस मौसम में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं।
  • वर्तमान ला नीना भारतीय मानसून के लिये एक अच्छा संकेत है। उत्तर प्रदेश, बिहार और पड़ोसी क्षेत्रों को छोड़कर अब तक मानसून की बारिश अच्छी रही है।

ला नीना की चक्रवात निर्माण में भूमिका 

  • ला नीना की अवधि में अटलांटिक महासागर और बंगाल की खाड़ी में क्रमश: बारंबार एवं तीव्र हरिकेन तथा चक्रवात उत्पन्न होते हैं।
  • बंगाल की खाड़ी के ऊपर उच्च सापेक्षिक आर्द्रता और निम्न सापेक्षिक वायु प्रवाह सहित कई सहायक कारकों के कारण अरब सागर तथा हिंद महासागर सहित उत्तरी हिंद महासागर में भी अत्यधिक चक्रवात आने की संभावना होती है।
  • उत्तरी हिंद महासागर में मानसून के बाद अक्टूबर से दिसंबर तक के महीने चक्रवात के विकास के लिये उपयुक्त होते हैं। साथ ही, नवंबर माह चक्रवाती गतिविधियों के लिये चरम समय होता है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR