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हरित क्रांति ऋण : महत्व, चुनौतियाँ एवं अवसर

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

  • हरित क्रांति ने भारत को खाद्य आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक छलांग लगाने में मदद की। इस क्रांति के पीछे मेक्सिको स्थित इंटरनेशनल मेज़ एंड व्हीट इम्प्रूवमेंट सेंटर (CIMMYT) और फिलीपींस स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (IRRI) जैसे संस्थानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 
  • अमेरिका द्वारा यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) को बंद करने के बाद CIMMYT जैसे संस्थान भारत से आशान्वित हैं। यह भारत के लिए हरित क्रांति के ऋण को चुकाने एवं वैश्विक कृषि अनुसंधान में अपनी भूमिका बढ़ाने का महत्त्वपूर्ण अवसर है।

हरित क्रांति ऋण की अवधारणा

  • परिचय : ‘हरित क्रांति ऋण’ (Green Revolution Debt) उस सहायता को संदर्भित करता है जो CIMMYT एवं IRRI जैसे संस्थानों ने भारत को उच्च उपज वाली किस्मों व तकनीकी सहायता प्रदान करके दी थी। 
  • वर्तमान स्थिति : वर्ष 2024 में CIMMYT को कुल $211 मिलियन अनुदान में से $83 मिलियन USAID से प्राप्त हुए थे।
  • भारत की भूमिका : भारत हरित क्रांति का प्रमुख लाभार्थी रहा है और अब इन संस्थानों के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार बन सकता है जिससे वैश्विक कृषि अनुसंधान में उसकी भूमिका बढ़ेगी।

इतिहास

  • उत्पत्ति : हरित क्रांति की शुरुआत 1940-50 के दशक में मेक्सिको में हुई, जब नॉर्मन बोरलॉग ने CIMMYT के तहत गेहूँ की बौनी किस्में विकसित कीं। इन किस्मों को 1964-65 में भारत में प्रस्तुत किया गया।
  • 8 मार्च, 1968 को USAID प्रमुख विलियम स्टीन गाउड ने हरित क्रांति शब्द गढ़ा था।
  • वैश्विक प्रसार : CIMMYT की गेहूँ की किस्में (जैसे- लर्मा रोजो 64A, सोनोरा 64) और IRRI की चावल की किस्में (जैसे- IR 8, IR 36) दुनिया भर में फैलीं।
  • शीत युद्ध का संदर्भ : शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने खाद्य उत्पादन बढ़ाने को अपनी विदेश नीति का हिस्सा बनाया, ताकि विकासशील देशों में खाद्य असुरक्षा के कारण होने वाली अस्थिरता एवं साम्यवादी प्रभाव को रोका जा सके।
  • नॉर्मन बोरलॉग का योगदान : बोरलॉग को वर्ष 1970 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया क्योंकि उनकी किस्मों ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा में योगदान दिया।

भारत को लाभ

  • उत्पादन में वृद्धि : CIMMYT की गेहूँ की किस्मों (जैसे- कल्याण सोना, सोनालिका) और IRRI की चावल की किस्मों (जैसे- स्वर्ण, सांबा मसूरी) ने भारत में गेहूँ एवं चावल के उत्पादन को क्रमशः 4-4.5 टन तथा 4.5-10 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया।
  • खाद्य आत्मनिर्भरता : 1960 के दशक में खाद्य संकट का सामना कर रहे भारत की हरित क्रांति के कारण खाद्य आयात पर निर्भरता समाप्त हुई और वह खाद्य अधिशेष वाला देश बना।
  • बासमती चावल का निर्यात : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) की बासमती किस्मों (जैसे- पूसा बासमती 1, 1121, 1509) ने वर्ष 2024-25 में 6.1 मिलियन टन बासमती चावल ($5.94 बिलियन) का निर्यात सक्षम किया।
  • संस्थागत विकास : IARI एवं भारतीय वैज्ञानिकों (जैसे- एम.एस. स्वामीनाथन, वी.एस. माथुर) ने CIMMYT और IRRI के सहयोग से स्वदेशी किस्में विकसित कीं, जैसे- HD 2285, HD 2329 और HD 2967
  • नेतृत्व समर्थन : तत्कालीन कृषि मंत्री सी. सुब्रमण्यम और लाल बहादुर शास्त्री व इंदिरा गांधी जैसे प्रधानमंत्रियों के समर्थन ने हरित क्रांति को सफल बनाया।

चुनौतियाँ

  • पर्यावरणीय प्रभाव : हरित क्रांति में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग हुआ, जिससे मिट्टी की उर्वरता में कमी, जल प्रदूषण और जैव विविधता हानि हुई।
  • आर्थिक असमानता : बड़े किसानों को छोटे और सीमांत किसानों की तुलना में अधिक लाभ हुआ, जिससे क्षेत्रीय और सामाजिक असमानता बढ़ी।
  • जल संसाधन : गहन सिंचाई ने भूजल स्तर को कम किया, खासकर पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में।
  • वित्तीय संकट : USAID के बंद होने से CIMMYT और IRRI जैसे संस्थानों को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वैश्विक कृषि अनुसंधान प्रभावित हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन : बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा के कारण उच्च उपज वाली किस्मों की प्रभावशीलता कम हो रही है।

आगे की राह

  • वित्तीय सहायता बढ़ाना : भारत को CIMMYT एवं IRRI को अधिक वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए, विशेष रूप से गर्मी व सूखा सहनशीलता, नाइट्रोजन उपयोग दक्षता, जीन एडिटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए।
  • स्वदेशी अनुसंधान को प्राथमिकता : वैश्विक संस्थानों को सहायता प्रदान करते समय IARI और भारतीय परिषद् कृषि अनुसंधान (ICAR) जैसे राष्ट्रीय संस्थानों के लिए पर्याप्त वित्त होना चाहिए।
  • टिकाऊ कृषि को बढ़ावा : भारत को जैविक खेती, जल संरक्षण एवं मृदा उर्वरता को बढ़ावा देने वाली तकनीकों पर ध्यान देना चाहिए ताकि हरित क्रांति की पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान हो।
  • जलवायु-अनुकूल किस्में : CIMMYT एवं IRRI के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन के अनुकूल नई किस्में विकसित की जानी चाहिए।
  • किसानों का सशक्तिकरण : छोटे व सीमांत किसानों को हरित क्रांति के लाभों तक पहुँचाने के लिए विशेष योजनाएँ लागू की जानी चाहिए।

निष्कर्ष

हरित क्रांति ने भारत को खाद्य सुरक्षा एवं आर्थिक विकास के मामले में विश्व में एक मजबूत स्थिति प्रदान की। CIMMYT एवं IRRI जैसे संस्थानों का इस सफलता में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। USAID के बंद होने के बाद भारत के पास इन संस्थानों को सहायता प्रदान करके हरित क्रांति के ऋण को चुकाने और वैश्विक कृषि अनुसंधान में नेतृत्व करने का अवसर है।

CIMMYT के बारे में

  • पूर्ण नाम : इंटरनेशनल मेज़ एंड व्हीट इम्प्रूवमेंट सेंटर (International Maize and Wheat Improvement Center)
  • स्थापना : 1940-50 के दशक में मेक्सिको सरकार और रॉकफेलर फाउंडेशन के सहयोग से
  • मुख्यालय : मेक्सिको
  • उद्देश्य : गेहूँ एवं मक्का की उच्च उपज वाली, रोग-प्रतिरोधी और जलवायु-अनुकूल किस्मों का विकास करना
  • भारत में योगदान : CIMMYT की गेहूँ की किस्मों ने भारत में हरित क्रांति की नींव रखी। वर्ष 2024-25 में भारत में बोई गई 32 मिलियन हेक्टेयर गेहूँ की फसलों में से 20 मिलियन हेक्टेयर में CIMMYT की किस्में शामिल थीं।
  • वर्तमान स्थिति : USAID के बंद होने के बाद CIMMYT को वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। वर्ष 2024 में भारत ने CIMMYT को केवल $0.8 मिलियन का योगदान दिया था।
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