(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र, न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य, विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य एवं उत्तरदायित्व, सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय) |
संदर्भ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने दो ऐसे मामलों में हस्तक्षेप किया है जिनमें उच्च न्यायालयों ने सिविल विवादों में भी आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी थी।
दीवानी और फौजदारी कानून
भारतीय न्याय व्यवस्था में सिविल एवं आपराधिक कानून के बीच का अंतर बुनियादी है। ये अपने उद्देश्य, संबंधित पक्षों और प्रक्रिया के संदर्भ में भिन्न होते हैं।
सिविल कानून
- सिविल कानून निजी व्यक्तियों या संगठनों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए बनाया गया है।
- सिविल मामले आमतौर पर पक्षकारों के एक-दूसरे के प्रति अधिकारों और कर्तव्यों को लेकर असहमति से जुड़े होते हैं।
- इसका उद्देश्य दंड देना नहीं, बल्कि एक उपाय प्रदान करना होता है, जो आमतौर पर मौद्रिक क्षतिपूर्ति (जिसे हर्जाना कहा जाता है) या अदालत द्वारा किसी पक्षकार को कुछ करने या न करने का आदेश (जिसे निषेधाज्ञा कहा जाता है) के रूप में होता है।
- सिविल मामलों के उदाहरणों में संपत्ति विवाद, अनुबंध उल्लंघन, तलाक और बच्चों की कस्टडी जैसे पारिवारिक एवं धन वसूली के मामले शामिल हैं।
- सिविल मुकदमे में मुकदमा दायर करने वाले व्यक्ति को ‘वादी’ और जिसके खिलाफ मुकदमा दायर किया जाता है उसे ‘प्रतिवादी’ कहा जाता है।
- सिविल मामले में वादी को अपना पक्ष ‘संभावनाओं की प्रबलता’ के आधार पर साबित करना होता है।
- इसका अर्थ है कि घटनाओं के बारे में उनका विवरण प्रतिवादी के विवरण की तुलना में अधिक सत्य होने की संभावना है।
- दीवानी कार्यवाही आपराधिक मुकदमों की तुलना में काफी अधिक समय लेने वाली होती है।
- पूरे भारत की जिला अदालतों के लिए राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (NJDG) के आंकड़े इस धारणा का समर्थन करते हैं।
- 14 अगस्त, 2025 तक 70.17% आपराधिक मुकदमों का निपटारा एक वर्ष के भीतर हो गया, जबकि केवल 37.91% दीवानी मुकदमे ही इसी समयावधि में निपटाए गए।
आपराधिक कानून
- आपराधिक कानून उन कृत्यों से संबंधित है जिन्हें राज्य या समग्र रूप से समाज के विरुद्ध अपराध माना जाता है।
- इसका उद्देश्य अपराधी को दंडित करना और दूसरों को समान अपराध करने से रोकना है।
- अभियोजक के माध्यम से प्रतिनिधित्व किए जाने वाले राज्य के द्वारा अभियुक्त के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही शुरू की जाती है।
- दोषी पाए जाने पर, अभियुक्त को जुर्माने से लेकर कारावास और यहाँ तक कि मृत्युदंड तक की सजा हो सकती है।
- आपराधिक कानून के अंतर्गत चोरी, धोखाधड़ी, हमला और हत्या जैसे अपराध शामिल हैं।
- आपराधिक मामले में अभियोजन पक्ष पर अभियुक्त के अपराध को ‘उचित संदेह से परे’ साबित करने का भार कहीं अधिक होता है।
- यह उच्चतर मानदंड आपराधिक दोषसिद्धि के गंभीर परिणामों को दर्शाता है, जिसमें स्वतंत्रता का हनन भी शामिल हो सकता है।