(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास) |
संदर्भ
- वर्तमान में भारत में हर साल 65% से ज्यादा मौतें डायबिटीज, दिल की बीमारियों और कैंसर जैसी गैर-संक्रामक बीमारियों से हो रही हैं। पुरानी दवाइयाँ सिर्फ लक्षण दबाती हैं, बीमारी की जड़ को ठीक नहीं करतीं। अब नई तकनीकें जैसे CRISPR, CAR-T सेल थेरेपी, mRNA वैक्सीन ने साबित कर दिया है कि जेनेटिक स्तर पर बीमारी को जड़ से खत्म करना मुमकिन है।
- भारत सरकार ने वर्ष 2024 में BioE3 नीति में “प्रेसिजन बायोथेरेप्यूटिक्स” (सटीक जैव चिकित्सा) को 6 प्रमुख क्षेत्रों में से एक घोषित किया है। इसी साल ImmunoACT ने भारत की पहली CAR-T सेल थेरेपी NexCAR19 को बाजार में उतारा, जिसकी कीमत विदेशी थेरेपी की तुलना में 8-10 गुना कम है।
क्या है प्रेसिजन बायोथेरेप्यूटिक्स (Precision biotherapeutics)
यह एक ऐसी नई चिकित्सा पद्धति है जिसमें मरीज की जेनेटिक जानकारी (DNA), प्रोटीन की स्थिति और जीवनशैली के आधार पर उसके लिए खास दवा या इलाज बनाया जाता है। सामान्य दवा सबके लिए एक जैसी होती है, प्रेसिजन दवा हर मरीज के लिए अलग-अलग बनाई जाती है।
मुख्य उपकरण
- जीन एडिटिंग (CRISPR-Cas9) : खराब जीन को कैंची से काटकर ठीक करना
- mRNA थेरेपी : कोशिकाओं को सिखाना कि सही प्रोटीन बनाओ या गलत प्रोटीन बनाना बंद करो
- CAR-T सेल थेरेपी : मरीज के इम्यून सेल्स को निकालकर कैंसर को पहचानने की ट्रेनिंग देकर वापस डालना
- मोनोक्लोनल एंटीबॉडी : खास लक्ष्य पर हमला करने वाली लैब में बनी प्रोटीन
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस : दवा कैसे काम करेगी, इसका पहले से अनुमान लगाना
भारत में आवश्यकता क्यों
- भारत में जेनेटिक विविधता बहुत ज्यादा है, एक ही दवा पंजाब में काम करती है, केरल में नहीं कर सकती।
- थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया, कुछ तरह के कैंसर भारतीय आबादी में ज्यादा हैं।
- विदेशी दवाइयाँ बहुत महंगी (30-40 करोड़ रुपए एक डोज), भारत में नहीं चल सकतीं।
- IndiGen और GenomeIndia प्रोजेक्ट से 20,000+ भारतीयों का जीनोम मैप हो चुका है, अब इसका इस्तेमाल इलाज में करना है।
- भविष्य में इलाज अस्पताल से हटकर “पहले से पता करना, पहले से रोकना” (Predictive & Preventive) हो जाएगा।
भारत की वर्तमान स्थिति
सरकारी पहल
- बायोटेक्नोलॉजी विभाग (DBT) और BIRAC ने BioE³ नीति में इसे प्राथमिकता दी
- IGIB दिल्ली, NIBMG कल्यान (प. बंगाल), THSTI फरीदाबाद में रिसर्च चल रही है
प्राइवेट सेक्टर के प्रणेता
- ImmunoACT : भारत की पहली CAR-T थेरेपी (कीमत सिर्फ 42 लाख रुपए)
- 4baseCare : कैंसर के लिए AI आधारित जेनेटिक टेस्टिंग
- Biocon, Dr. Reddy’s, Zydus : बायोसिमिलर और जीन थेरेपी पर काम
- Bugworks : नई एंटीबायोटिक दवाएँ
- Immuneel : इम्यूनो-ऑन्कोलॉजी
चुनौतियाँ
- स्पष्ट कानून नहीं : CDSCO के पास जीन थेरेपी के लिए अलग से नियम नहीं हैं
- महंगी दवाइयाँ : अभी भी आम आदमी की पहुंच से बाहर
- बायोमैन्युफैक्चरिंग की कमी : ज्यादातर सामान विदेश से आता है
- जेनेटिक डाटा की गोपनीयता : कहीं दुरुपयोग न हो
- प्रशिक्षण की कमी : डॉक्टरों-वैज्ञानिकों को नई तकनीक की ट्रेनिंग की कमी
वैश्विक पहल
- अमेरिका : 30+ जीन-सेल थेरेपी को मंजूरी, Zolgensma, Casgevy (2023 में पहली CRISPR थेरेपी)
- चीन : 800 से ज्यादा क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं
- जापान-कोरिया : तेज अप्रूवल प्रक्रिया
- सिंगापुर : बायोमैन्युफैक्चरिंग हब बन रहा है
आगे की राह
- CDSCO में अलग “जीन एंड सेल थेरेपी विंग” बनाया जाए
- बायोबैंकिंग कानून जिसमें डाटा की सुरक्षा और डोनर की सहमति सुनिश्चित हो
- आयुष्मान भारत में महंगी जीन थेरेपी को शामिल किया जाए
- देश में 5-10 बायोमैन्युफैक्चरिंग पार्क बनाए जाएं (जैसे हैदराबाद, बेंगलुरु, पुणे में प्रस्तावित)
- जेनेटिक डाटा और इलाज की निगरानी हेतु नेशनल बायोएथिक्स कमेटी का गठन
- स्कूल-कॉलेज में जेनेटिक्स और बायोटेक को आसान भाषा में पढ़ाया जाए
निष्कर्ष
प्रेसिजन बायोथेरेप्यूटिक्स सिर्फ नई तकनीक नहीं, बल्कि भारत को “बीमार होने के बाद इलाज” से “बीमार होने से पहले रोकथाम” की ओर ले जाने का रास्ता है। अगर भारत अभी निवेश करे, तो वर्ष 2030 तक हम न सिर्फ अपने मरीजों का सस्ता इलाज कर पाएंगे, बल्कि दुनिया को सस्ती जीन थेरेपी भी निर्यात कर सकेंगे। यह आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत@2047 का सबसे मजबूत स्तंभ बन सकता है।
इसे भी जानिए!
BioE3 नीति के बारे में
- BioE3 का अर्थ है: अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार हेतु जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology for Economy, Environment and Employment)।
- नोडल विभाग : जैवप्रौद्योगिकी विभाग (DBT) एवं जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) द्वारा वर्ष 2024 में प्रारंभ।
- उद्देश्य : भारत को वैश्विक बायोटेक हब बनाना, नवाचार को बढ़ावा देना, रोजगार सृजन करना और उभरती जैव-प्रौद्योगिकियों को सुरक्षित व सुलभ बनाना।
BioE3 नीति के 6 मुख्य फोकस क्षेत्र
1. प्रिसीज़न बायोथेरेप्यूटिक्स
- जीन थेरेपी, सेल थेरेपी, mRNA उपचार, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, और विशिष्ट रोग-लक्षित दवाओं को बढ़ावा देना।
- भारत में आनुवंशिक विविधता पर आधारित व्यक्तिगत और लक्षित उपचार विकसित करना।
2. बायो-निर्माण और बायो-फाउंड्रीज़
- बड़े पैमाने पर बायोलॉजिक्स, वैक्सीन, एंज़ाइम, बायो-मटेरियल का स्वदेशी उत्पादन बढ़ाना।
- भारत को निम्न-लागत वैश्विक जैव विनिर्माण हब बनाना।
- स्टार्टअप, उद्योग और शोध संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ाना।
3. स्वच्छ और हरित जैव-प्रौद्योगिकी
- पर्यावरण-अनुकूल तकनीकें जैसे बायोफ्यूल्स, बायोप्लास्टिक, बायो-रिमेडिएशन को बढ़ावा देना।
- उद्योगों और कृषि में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए वैकल्पिक जैव-आधारित समाधान।
4. कृषि और पोषण जैव-प्रौद्योगिकी
- उच्च उत्पादकता वाली फसलें, कीट-प्रतिरोधी बीज, जैव-उर्वरक, जैव-कीटनाशक।
- पोषण-समृद्ध (Biofortified) फसलों का विकास।
- खाद्य सुरक्षा व जलवायु-लचीली कृषि को बढ़ावा।
5. माइक्रोबायोम और वन हेल्थ
- मानव, जानवरों और पर्यावरण के माइक्रोबायोम पर आधारित उपचार व निदान।
- एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (AMR) का समाधान।
- स्वास्थ्य, पर्यावरण और पशु चिकित्सा को एकीकृत करने का प्रयास।
6. बायो-सुरक्षा, बायो-सेफ्टी और उभरती तकनीकें
- जीन एडिटिंग, सिंथेटिक बायोलॉजी, AI-बायोलॉजी जैसी तकनीकों के लिए नियामक ढांचा विकसित करना।
- जैविक खतरों, महामारी जोखिम और लैब सुरक्षा मानकों को मजबूत करना।
- सुरक्षित और जिम्मेदार बायोटेक्नोलॉजी का उपयोग सुनिश्चित करना।

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