(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
लगभग 180 देश प्लास्टिक प्रदूषण को सीमित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से बाध्यकारी एक कानूनी समझौते पर आम सहमति बनाने में विफल रहे हैं।
प्लास्टिक के उपयोग में निरंतर वृद्धि
- प्लास्टिक के रासायनिक घटक पॉलिमर हैं और ये प्राकृतिक रूप से सेल्यूलोज और लिग्निन जैसे पदार्थों में पाए जा सकते हैं या फिर प्रयोगशालाओं में निर्मित किए जा सकते हैं।
- जीवाश्म ईंधन से प्राप्त और फिर वस्तुओं के आकार में ढाले गए पॉलिमर को प्राय: ‘प्लास्टिक' कहा जाता है।
- कच्चे तेल के व्युत्पन्न होने के कारण इसमें लगभग अनंत प्रकार की वस्तुओं में ढाले जाने की क्षमता है, जिनमें विमान और चिकित्सा उपकरण जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं से लेकर टिनसेल, बाउबल्स व पैकेजिंग जैसी कॉस्मेटिक वस्तुएँ शामिल हैं।
- इसके अलावा काँच और एल्युमीनियम जैसी सामग्रियों की तुलना में इसकी उत्पादन लागत भी कम है।
- एथिलीन, प्रोपिलीन, स्टाइरीन और इनके व्युत्पन्नों का उपयोग प्राय: प्लास्टिक उत्पादन में किया जाता है।
- पॉलीप्रोपीन, लो-डेंसिटी पॉलीइथाइलीन, लीनियर लो-डेंसिटी पॉलीइथाइलीन, हाई-डेंसिटी पॉलीइथाइलीन एवं पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट जैसे एथिलीन व्युत्पन्न प्लास्टिक पैकेजिंग बनाने में उपयोग किए जाने वाले डाउनस्ट्रीम पेट्रोरसायनों का सबसे बड़ा हिस्सा हैं।
- इनका उपयोग खाद्य कंटेनर, पेय की बोतलें, खिलौने, पॉलिएस्टर, इंट्रावेनस बैग (IV Bag), सौंदर्य प्रसाधन, पेंट, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, चिपकने वाले पदार्थ और सीलेंट बनाने में किया जाता है।
प्रदूषक के रूप में प्लास्टिक
- प्लास्टिक की सर्वव्यापकता और इसकी सस्ती कीमत के कारण यह कूड़े का प्रमुख स्रोत और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के पतन का प्रतीक बन गया है।
- प्लास्टिक विभिन्न प्रकार के मिश्रण होते हैं जिनमें मोनोमर, पॉलिमर और रासायनिक योजक शामिल होते हैं।
- प्लास्टिक सामग्री और उत्पादों में 16,000 से अधिक रसायनों का संभावित रूप से उपयोग या उपस्थिति है।
- इनमें से 10,000 से अधिक रसायनों के मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण पर संभावित प्रभाव के बारे में बहुत कम या कोई जानकारी नहीं है।
- नेचर जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक प्रमुख प्लास्टिक प्रकार, जैसे- पीवीसी, पॉलीयूरेथेन, पीईटी, पॉलीइथाइलीन और अन्य में 4,000 से अधिक ख़तरनाक रसायन मौजूद हो सकते हैं।
- इनमें से अधिकांश के सिंथेटिक और गैर-बायोडिग्रेडेबल होने के कारण सामान्य प्रयास प्राय: रीसाइक्लिंग या अपशिष्ट प्रबंधन पर केंद्रित रही है।
- ये रसायन नदियों, महासागरों, भूमि एवं अंततः मानव व पशुओं के शरीर के भीतर प्रवेश करते हैं।
प्लास्टिक का स्वास्थ्य पर प्रभाव
अंतर्ग्रहण और श्वसन
- माइक्रोप्लास्टिक खाद्य शृंखलाओं, पेयजल और वायु को दूषित करते हैं।
- अध्ययनों से पता चलता है कि मानव रक्त, फेफड़े, स्तन दुग्ध व वीर्य में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद होते हैं।
विषाक्तता और रासायनिक निक्षालन
- प्लास्टिक से थैलेट्स, बिस्फेनॉल-ए (बीपीए), ज्वाला मंदक जैसे हानिकारक योजक निकलते हैं।
- ये अंतःस्रावी तंत्र में व्यवधान, विकास संबंधी विकार, बांझपन, मोटापा और कैंसर से संबंधित हैं।
श्वसन और हृदय संबंधी जोखिम
- हवा में मौजूद प्लास्टिक के रेशे फेफड़ों में सूजन और अस्थमा जैसे लक्षण उत्पन्न करते हैं।
- नए शोध माइक्रोप्लास्टिक को रक्त के थक्कों और हृदय रोगों से जोड़ते हैं।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध
प्लास्टिक बैक्टीरिया के लिए सतह का काम करते हैं, जिससे संभावित रूप से एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन फैल सकते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य और अप्रत्यक्ष प्रभाव
अपशिष्ट स्थलों के संपर्क में आने वाले समुदायों को तनाव, चिंता और कलंक का सामना करना पड़ता है।
क्या है माइक्रोप्लास्टिक
- माइक्रोप्लास्टिक पाँच मिलीमीटर से भी छोटे प्लास्टिक होते हैं और विभिन्न प्रकार के एडिटिव्स या प्लास्टिक उत्पादों के घटक तत्वों को संदर्भित कर सकते हैं।
- इनका पता लगाने की तकनीक अपेक्षाकृत नवीन है, फिर भी ये वर्षों से रक्त, स्तन दुग्ध, प्लेसेंटा और अस्थि मज्जा में पाए गए हैं।
- हालाँकि, मानव स्वास्थ्य पर इनका सटीक प्रभाव स्पष्ट नहीं है, फिर भी ये कई प्रकार की बीमारियों से जुड़े हैं।
प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के भारत के प्रयास
- लगभग 20 राज्यों में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग पर प्रतिबंध है।
- ये प्लास्टिक के सामान की वह श्रेणी है जो सबसे कम पुन: उपयोग योग्य हैं और जिन्हें पुनर्चक्रित करना मुश्किल है।
- भारत में कई प्रशासनिक प्रक्रियाएँ हैं जिनका उद्देश्य कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करना है कि उपयोग किए गए प्लास्टिक का एक निश्चित हिस्सा वापस एकत्र किया जाए।
- हालाँकि, इसका सीमित प्रभाव पड़ा है।
- भारत अभी तक प्लास्टिक और रसायनों से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को नहीं पहचान पाया है।
- वैश्विक प्लास्टिक संधि पर अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में भारत और अन्य देशों ने प्लास्टिक संधि में स्वास्थ्य संबंधी चर्चाओं को शामिल करने पर आपत्ति जताई है और कहा है कि ये ऐसे मामले हैं जिन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन में विचार किया जाना है।
- इस प्रकार, जहाँ तक भारत का संबंध है, प्लास्टिक मुख्यतः अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या है।
- भारत में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध (2022) के साथ ही प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व जैसी नीतियाँ लागू की गई हैं।
- हालाँकि, इनका प्रवर्तन और अपशिष्ट पृथक्करण अभी भी कमज़ोर है।