| (प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक सम्मेलन एवं आयोजन) |
संदर्भ
हाल ही में देहरादून में आयोजित आपदा प्रबंधन पर विश्व शिखर सम्मेलन (WSDM) 2025 में डॉ. जितेंद्र सिंह ने उत्तराखंड की आपदा तैयारी और मौसम पूर्वानुमान क्षमता को लेकर बड़े विस्तार कार्यक्रमों की घोषणा की।

पृष्ठभूमि
- उत्तराखंड ने पिछले वर्षों में 2013 केदारनाथ बादल फटना, 2021 चमोली आपदा जैसी विनाशकारी त्रासदियों का सामना किया।
- तेज़ी से बदलते मौसम पैटर्न और हिमालयी अस्थिरता ने आपदा जोखिम को कई गुना बढ़ा दिया है।
- WSDM 2025 सरकारी प्रयासों की यात्रा का वैश्विक मंच पर प्रस्तुत उदाहरण है।
WSDM 2025 के बारे में
- यह एक वैश्विक मंच जो आपदा लचीलापन, खतरों का न्यूनीकरण, जलवायु अनुकूलन और वैज्ञानिक सहयोग पर केंद्रित है।
- थीम: “सुदृढ़ समुदायों के निर्माण के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सुदृढ़ करना (Strengthening International Cooperation for Building Resilient Communities)”
उद्देश्य
- देशों और विशेषज्ञों के बीच सहयोग बढ़ाना
- हिमालय जैसे संवेदनशील परिस्थिति तंत्र में आपदा प्रबंधन को मजबूत बनाना
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों और तकनीकी अनुसंधान को सुदृढ़ करना
मुख्य घोषणाएँ
1. मौसम रडार और पूर्वानुमान तंत्र का विस्तार
- उत्तराखंड में 3 रडार पहले ही स्थापित: सुरकंडा देवी, मुक्तेश्वर, लैंसडाउन
- 3 नए रडार घोषणा: हरिद्वार, पंतनगर और औली
2. विशाल मौसम निगरानी नेटवर्क
- 33 वेधशालाएँ
- 142 स्वचालित मौसम स्टेशन (AWS)
- 107 रेन गेज
- जिला और ब्लाक लेवल निगरानी प्रणाली
- किसानों के लिए विस्तृत ऐप आधारित आउटरीच कार्यक्रम
3. हिमालय जलवायु अध्ययन कार्यक्रम
- बादल फटने और अत्यधिक वर्षा पैदा करने वाली स्थितियों का वैज्ञानिक विश्लेषण
- संवेदनशील जिलों के लिए पूर्वानुमान संकेतक विकसित करना
- त्वरित पूर्वानुमान प्रणाली को पूरे उत्तराखंड में लागू करना
4. वनाग्नि अनुमान और तीव्र अलर्ट प्रणाली
- MoES, NDMA और वैज्ञानिक संस्थानों का वैज्ञानिक मॉडल
- तेजी से बढ़ती हिमालयी वनाग्नियों के लिए उन्नत अनुमान सेवाएँ

चुनौतियाँ
- हिमालय की नाज़ुक भौगोलिक संरचना
- जलवायु परिवर्तन से बढ़ती अतिवृष्टि
- बढ़ता अवैध खनन और निर्माण
- वनाग्नि हॉट स्पॉट
- त्वरित प्रशासनिक प्रतिक्रिया की कमी
- वैज्ञानिक पूर्वानुमानों पर समाज और स्थानीय प्रशासन की निर्भरता का अभाव
आगे की राह
- हिमालय विशिष्ट आपदा मोडल विकसित करना
- रडार नेटवर्क और पर्यवेक्षणशालाओं को पंचायत स्तर तक जोड़ना
- समुदाय-आधारित आपदा तैयारी को मजबूत करना
- भूमि-उपयोग नियमों का कड़ाई से पालन
- स्मार्ट तकनीकों (AI आधारित अलर्ट, ड्रोन निगरानी) को अपनाना
- हिमालयी आजीविका को जलवायु-लचीली बनाना