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बायोरिमेडिएशन : स्थिति, प्रकार एवं आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव।)

संदर्भ

भारत में बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण और ठोस व तरल कचरे के अनियंत्रित निपटान ने पर्यावरणीय प्रदूषण को गंभीर स्तर पर पहुँचाया है। नदियों, मिट्टी, भूजल और वायु को शुद्ध करने के लिए अब पारंपरिक तकनीकों से आगे बढ़कर टिकाऊ विकल्पों की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में बायोरिमेडिएशन एक महत्वपूर्ण समाधान के रूप में उभर रहा है।

क्या है बायोरिमेडिएशन (Bioremediation)

  • बायोरिमेडिएशन का अर्थ है “जैविक तरीकों से पर्यावरण को पुनर्स्थापित करना”।
  • इसमें बैक्टीरिया, फफूंद, शैवाल और पौधों जैसे सूक्ष्मजीवों का उपयोग कर प्रदूषक तत्वों को कम हानिकारक या निष्क्रिय पदार्थों में बदल दिया जाता है।
  • यह जीव प्रदूषकों को भोजन के रूप में उपयोग कर उन्हें पानी, कार्बन डाइऑक्साइड या ऑर्गेनिक एसिड जैसे साधारण उत्पादों में बदल देते हैं।
  • कुछ सूक्ष्मजीव भारी धातुओं को कम खतरनाक रूपों में भी परिवर्तित कर सकते हैं।

बायोरिमेडिएशन के प्रकार

1. इन-सीटू बायोरिमेडिएशन (In situ)

  • प्रदूषित स्थल पर ही उपचार किया जाता है।
  • उदाहरण: समुद्र में तेल फैलाव पर तेल खाने वाले बैक्टीरिया का सीधे छिड़काव।

2. एक्स-सीटू बायोरिमेडिएशन (Ex situ)

  • प्रदूषित मिट्टी/पानी को निकालकर नियंत्रित सुविधा में उपचार किया जाता है और फिर साफ होने के बाद वापस किया जाता है।

महत्त्व

  • आधुनिक तकनीकें शोधकर्ताओं को सूक्ष्मजीवों व बायोमॉलिक्यूल्स की क्षमताओं को गहराई से समझने में सक्षम बनाती हैं।
  • जेनेटिक मॉडिफिकेशन से ऐसे माइक्रोब बनाए जा रहे हैं जो प्लास्टिक, तेल, जहरीले रसायनों जैसे कठिन प्रदूषकों को भी तोड़ सकते हैं।
  • सिंथेटिक बायोलॉजी से ऐसे “बायोसेन्सिंग” जीव विकसित हुए हैं जो प्रदूषण का पता चलते ही रंग बदलकर चेतावनी देते हैं।
  • यह तकनीकें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, कृषि भूमि और औद्योगिक क्षेत्रों में उपयोगी हो रही हैं।

भारत में बायोरिमेडिएशन की आवश्यकता

  • भारत में तीव्र औद्योगिकीकरण और शहरी विस्तार के कारण नदियों, मिट्टी और भूजल में भारी प्रदूषण बढ़ा है।
  • गंगा और यमुना जैसी नदियों में बड़ी मात्रा में अनुपचारित सीवेज व औद्योगिक कचरा प्रतिदिन बहता है।
  • पारंपरिक सफाई तकनीकें महंगी, ऊर्जा-प्रधान और कभी-कभी नए प्रदूषण उत्पन्न करने वाली होती हैं।
  • बायोरिमेडिएशन कम खर्चीला, टिकाऊ, स्केलेबल और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करता है।
  • भारत में स्थानीय रूप से अनुकूलित सूक्ष्मजीवों की बड़ी विविधता उपलब्ध है, जो प्रभावी बायोरिमेडिएशन में मदद कर सकती है।

भारत की वर्तमान स्थिति

  • भारत में यह तकनीक अभी पायलट प्रोजेक्ट के रूप में तेजी से उभर रही है।
  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) अपने “क्लीन टेक्नोलॉजी प्रोग्राम” के माध्यम से कई परियोजनाओं को समर्थन दे रहा है।
  • CSIR-NEERI बायोरिमेडिएशन से संबंधित कार्यक्रमों को विकसित और लागू करने के लिए प्रमुख संस्था है।
  • IITs में तेल फैलाव को साफ करने के लिए कॉटन-आधारित नैनोकॉम्पोज़िट और प्रदूषण खाने वाले बैक्टीरिया पर शोध हो रहा है।
  • स्टार्टअप्स जैसे- BCIL, Econirmal Biotech माइक्रोबियल फॉर्मुलेशन से मिट्टी और अपशिष्ट जल को साफ करने के समाधान दे रहे हैं।

मुख्य चुनौतियाँ

  • प्रत्येक स्थल की परिस्थितियों के अनुसार तकनीक का ज्ञान कम है।
  • कई प्रदूषक अत्यधिक जटिल होते हैं, जिन पर सामान्य माइक्रोब प्रभावी नहीं होते।
  • एकीकृत राष्ट्रीय मानकों की कमी।
  • जीन संशोधित आधारित माइक्रोब्स के उपयोग से पर्यावरणीय जोखिम।
  • निगरानी, प्रशिक्षित मानव संसाधन और वैज्ञानिक अवसंरचना की सीमाएँ।

वैश्विक उपयोग

  • जापान : शहरी कचरा प्रबंधन में सूक्ष्म-जीवाणु व पौध-आधारित तकनीकों को जोड़कर व्यापक उपयोग।
  • यूरोपीय संघ : तेल फैलाव और खनन क्षेत्रों की बहाली हेतु बहुराष्ट्रीय परियोजनाएँ।
  • चीन : औद्योगिक प्रदूषित क्षेत्रों को साफ करने हेतु जेनेटिकली सुधारित माइक्रोब्स का उपयोग।

भारत के लिए अवसर

  • नदियों की सफाई, भूमि की पुनर्बहाली, औद्योगिक कचरे का प्रबंधन।
  • जैव-प्रौद्योगिकी, पर्यावरण परामर्श और अपशिष्ट प्रबंधन में बड़े रोजगार के अवसर।
  • स्वच्छ भारत मिशन, नमामि गंगे और ग्रीन प्रौद्योगिकी पहलों से जोड़कर बड़े-पैमाने पर लागू किया जा सकता है।

संभावित जोखिम

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित (GMO) सूक्ष्मजीव यदि बिना नियंत्रण के पर्यावरण में फैल जाएँ तो नई समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • अपर्याप्त परीक्षण से जैव विविधता पर प्रभाव।
  • जनता की जागरूकता कम होने पर नई तकनीकों को स्वीकारने में बाधाएँ।
  • मजबूत जैव सुरक्षा मानक, प्रमाणन प्रणाली और नियमित निगरानी की आवश्यकता।

आगे की राह

  • राष्ट्रीय बायोरिमेडिएशन मानक विकसित करना अत्यंत आवश्यक।
  • स्थानीय आवश्यकताओं को समझने हेतु क्षेत्रीय बायोरिमेडिएशन हब स्थापित करना।
  • DBT–BIRAC के माध्यम से स्टार्टअप्स और सामुदायिक परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना।
  • जनता को यह समझाना कि सूक्ष्मजीव पर्यावरण के दुश्मन नहीं, बल्कि उसके रक्षक बन सकते हैं।
  • जीएमओ आधारित तकनीक के लिए कठोर निगरानी और बायोसेफ्टी ढाँचे को सुदृढ़ करना।
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