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भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

भारत सरकार ने भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS) के अनुपालन तंत्र में शामिल नौ भारी औद्योगिक क्षेत्रों में से आठ में कार्यरत संस्थाओं (जैसे कि इस्पात संयंत्र) के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता उत्पादन लक्ष्यों की घोषणा की है।

शामिल क्षेत्र 

  • एल्युमीनियम
  • सीमेंट
  • कागज़ एवं लुगदी
  • क्लोर-क्षार
  • लोहा एवं इस्पात
  • कपड़ा
  • पेट्रोकेमिकल 
  • पेट्रो रिफाइनरियाँ
  • ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद के एक शोध पत्र के अनुसार इकाई या क्षेत्र-स्तरीय उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य समग्र उत्सर्जन तीव्रता में कमी के बजाय केवल संस्थाओं व क्षेत्रों में वित्तीय हस्तांतरण निर्धारित करते हैं।

भारत में उत्सर्जन तीव्रता में कमी

  • भारत के लिए वर्ष 2030 तक राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान (NDC) के साथ संरेखित उत्सर्जन न्यूनीकरण परिदृश्य के अनुसार, भारत के ऊर्जा क्षेत्र (जी.डी.पी. की प्रति इकाई) की कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन तीव्रता वर्ष 2025 से 2030 के बीच औसतन 3.44% वार्षिक दर से घटने की संभावना है। 
    • इसी प्रकार भारत के विनिर्माण क्षेत्र में मूल्य वर्धित उत्सर्जन तीव्रता में इसी अवधि के दौरान कम-से-कम 2.53% वार्षिक गिरावट का अनुमान है। 
  • इससे पता चलता है कि निकट भविष्य में अन्य क्षेत्रों की तुलना में उद्योग क्षेत्र धीमी गति से कार्बन मुक्त हो सकता है।

उत्सर्जन लक्ष्यों का विकास एवं कानूनी समर्थन

  • शुरुआत में भारत ने ऊर्जा दक्षता पर केंद्रित प्रदर्शन, उपलब्धि एवं व्यापार (PAT) तंत्र का उपयोग किया। 
  • वर्ष 2022 में ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम ने ग्रीनहाउस गैस-आधारित व्यापार में बदलाव को सशक्त बनाया, जो कार्बन क्रेडिट व्यापार योजना (CCTS) का कानूनी आधार बना।
  • ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) द्वारा वर्ष 2026 तक इसे पूरी तरह से लागू करने की योजना है।

लक्ष्य एवं कवरेज

  • प्रारंभिक कवरेज : भारत में उत्सर्जन के लगभग 16-37% के लिए उत्तरदायी लोहा एवं इस्पात, सीमेंट, पेट्रोकेमिकल्स, एल्युमीनियम जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना
  • उद्देश्य : वार्षिक व्यापार चक्रों के साथ कार्बन तीव्रता को कम करना

बाजार डिजाइन एवं स्थिरीकरण

  • दोहरा बाजार : चरण I- हरित ऋण कार्यक्रम के माध्यम से स्वैच्छिक ऑफसेट तथा चरण II- CCTS के अंतर्गत अनिवार्य अनुपालन
  • बाज़ार स्थिरता : एक प्रस्तावित स्थिरीकरण कोष ऋण की आकर्षक कीमतों को बनाए रखने और बाज़ार के पतन से बचने के लिए एक मूल्य निर्धारण सीमा निर्धारित करेगा।

चुनौतियाँ 

  • ग्रीनवाशिंग : स्वैच्छिक बाज़ारों में, विशेष रूप से वानिकी/कृषि में, गैर-अतिरिक्त या बढ़े हुए ऋण उत्पन्न होने का जोखिम होता है।
  • छोटे किसानों का समावेशन न होना : भूमि विखंडन एवं मौजूदा प्रथाएँ वास्तविक प्रयासों को अयोग्य कर सकती हैं, जब तक कि ऋण डिज़ाइन भारत के कृषि संदर्भ के अनुकूल न हो।
  • सत्यापन एवं पारदर्शिता : उच्च  सत्यापन लागत एवं जवाबदेही के मुद्दों के कारण एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री, स्वतंत्र तृतीय-पक्ष ऑडिट और रीयल-टाइम रिपोर्टिंग की आवश्यकता है।
  • किसानों का समावेशन : वेरा के अंतर्गत सूचीबद्ध कृषि परियोजनाएँ ऋण जारी होने की प्रतीक्षा में हैं। 
    • इसमें समावेशिता संबंधी समस्याएँ देखी गईं, जिनमें केवल 13-17% लघु कृषि जोत धारक शामिल हैं।
      • वेरा एक कार्बन क्रेडिट रजिस्ट्री है जो सत्यापित कार्बन मानक का प्रबंधन करती है।

प्रदर्शन, उपलब्धि एवं व्यापार (PAT) योजना

  • भारत में प्रदर्शन, उपलब्धि एवं व्यापार (PAT) योजना बड़े उद्योगों के लिए एक प्रमुख ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम है।
  •  इसके तहत ऊर्जा-गहन उद्योगों को अपनी ऊर्जा उपभोग कम करने के लक्ष्य दिए जाते हैं; जो अपने लक्ष्यों से अधिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं, वे अतिरिक्त बचत को दूसरों के साथ साझा कर सकते हैं। 
  • PAT चक्र I (2012-14) के तहत चार क्षेत्रों के प्रदर्शन आँकड़ों के विश्लेषण के अनुसार इस योजना से कुछ संस्थाओं में उत्पादन की प्रति इकाई ऊर्जा (ऊर्जा तीव्रता) में वृद्धि हुई जबकि अन्य में कमी आई। 
    • हालाँकि, समग्र रूप से समान मात्रा में आर्थिक उत्पादन के लिए कम ऊर्जा का उपयोग किया गया।

मूल्यांकन 

  • भारत की PAT योजना समग्र स्तर पर ऊर्जा तीव्रता में कमी लाने के लिए बाज़ार तंत्र का प्रभावी ढंग से उपयोग करने में सक्षम थी। 
  • समग्र ऊर्जा तीव्रता में कमी, यह दर्शाती है कि इसके तहत निर्मित बाज़ार तंत्र कारगर रहा है।

आगे की राह

  • पेरिस संरेखण : अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हस्तांतरित शमन परिणाम को सक्षम बनाने और दोहरी गणना से बचने के लिए इस योजना को पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के ढाँचों के अनुरूप होना चाहिए।
    • पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6 मुख्यत: कार्बन बाज़ारों के माध्यम से जलवायु कार्रवाई पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक ढाँचा स्थापित करता है ताकि देशों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान प्राप्त करने में मदद मिल सके।
    •  यह देशों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हस्तांतरित शमन परिणामों का उपयोग करके अपने एन.डी.सी. के कार्यान्वयन में स्वेच्छा से सहयोग करने की अनुमति देता है।
  • वैश्विक मानक : अंतर्राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार संघ एवं स्वर्ण मानक का उपयोग करते हुए भारत का लक्ष्य वैश्विक बाज़ारों में भागीदारी के लिए विश्वसनीयता बनाना और यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा जोखिम दबाव को कम करना है। 
  • शासन को सुदृढ़ बनाना : योजना में निवेशकों का विश्वास बनाने के लिए ऊर्जा दक्षता ब्यूरो या पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत केंद्रीकृत नियामक निकाय का गठन किया जाना चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी का एकीकरण : लक्ष्यों की निगरानी, दोहरी गणना से बचने और लेखा परीक्षण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए रिमोट-सेंसिंग, ब्लॉकचेन, IoT सेंसर का उपयोग।
  • समावेशिता में वृद्धि : हाशिए पर स्थित लघु जोत धारकों और महिलाओं की अधिक भागीदारी वाली परियोजनाओं के लिए स्तरीय मूल्य निर्धारण या ‘प्रीमियम क्रेडिट’।
  • हरित वित्त एवं ग्रामीण विकास : ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों में नए राजस्व स्रोतों की संभावनाओं की तलाश करना आवश्यक है। 
    • इस योजना/नीति की सफलता समान लाभ-साझाकरण एवं शीघ्र भुगतान पर निर्भर करती है।
  • भारत के कार्बन बाज़ार लक्ष्यों की महत्वाकांक्षा का आकलन व्यक्तिगत संस्थाओं या क्षेत्रों के स्तर के बजाय समग्र अर्थव्यवस्था-व्यापी स्तर पर किया जाना चाहिए।
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