New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

पूर्वोत्तर भारत में AFSPA के तहत क्षेत्रों में कमी  

प्रारंभिक परीक्षा के लिये - सैन्य बल (बिशेष शक्तियां) अधिनियम
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 3 - आंतरिक सुरक्षा 

 सन्दर्भ 

  • हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा असम, नागालैंड और मणिपुर में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 (AFSPA) के तहत 'अशांत क्षेत्रों' को कम करने का निर्णय लिया गया
  • इसके तहत 1 अप्रैल से असम के एक जिले, मणिपुर के चार पुलिस थानों और नागालैंड के तीन पुलिस थानों से AFSPA को हटा लिया जायेगा।

क्या है सैन्य बल(बिशेष शक्तियां) अधिनियम ? 

  • देश में कई अन्य विवादास्पद कानूनों की तरह,  AFSPA  भी एक औपनिवेशिक विरासत है।
  • 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार (वायसराय लिनलिथगो) ने सैन्य बलों को विशेष अधिकार देने के लिये सशस्त्र बल ( बिशेष शक्तियां ) अध्यादेश,1942 जारी किया था। 
  • इसी अध्यादेश की तर्ज पर, भारत सरकार ने 1947 में बंगाल, असम और पूर्वी बंगाल में विभाजन के कारण उत्पन्न अशांति से निपटने के लिए चार अध्यादेश जारी किए थे।
  • इन्ही अध्यादेशों को बाद में सैन्य बल(बिशेष शक्तियां) अधिनियम, AFSPA 1958  के रूप में पारित किया गया 

AFSPA के प्रमुख प्रावधान

  • यह अधिनियम सशस्त्र बलों को अशांत क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति देता है। 
  • इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को कानून तोड़ने वाले व्यक्ति को गोली मारने का अधिकार भी दिया गया है। 
  • यदि गोली चलने से उस व्यक्ति की मौत भी हो जाती है, तो भी उसकी जवाबदेही गोली चलाने वाले या गोली चलाने का आदेश देने वाले अधिकारी की नहीं होगी। 
  • सुरक्षा बलों के पास यह अधिकार होता है, कि वे इस क्षेत्र में पांच या अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने पर रोक लगा सकते हैं।
  • इस अधिनियम के अनुसार, सुरक्षा बल के सदस्य संदेह होने पर किसी भी स्थान की तलाशी ले सकते है, और खतरा होने पर उस स्थान को नष्ट करने का आदेश भी दे सकते है। 
  • इसके तहत सशस्त्र बलों के सदस्य किसी भी व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकते हैं तथा बिना किसी वारंट के किसी भी घर के अंदर जाकर तलाशी ले सकते है, इसके लिये आवश्यकता होने पर बल का प्रयोग भी कर सकते है।
  • हथियार ले जाने का संदेह होने पर किसी वाहन को रोककर उसकी तलाशी ली जा सकती है।
  • यदि कोई भी व्यक्ति जिसने एक संज्ञेय अपराध किया है, या जिसके खिलाफ एक उचित संदेह मौजूद है, कि उसने एक संज्ञेय अपराध किया है, या करने वाला है।
    • ऐसे व्यक्ति को वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है, और गिरफ्तारी करने के लिए आवश्यक बल का उपयोग भी किया जा सकता है।

अशांत क्षेत्र 

  • यदि किसी राज्य के राज्यपाल या केंद्र सरकार को किसी भी राज्य या संघ शासित क्षेत्र के मामले में यह लगे, कि वहां की स्थिति इतनी ज्यादा अशांत और खतरनाक है, कि सिविल अधिकारियों के सहयोग के लिये सैन्य बलों का प्रयोग आवश्यक है।
  • तो उस राज्य या संघ शासित क्षेत्र का राज्यपाल या केंद्र सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना जारी कर उस राज्य या संघ शासित क्षेत्र को या उसके किसी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकती है। 
  • जिसके बाद वहाँ केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात किया जाता है। 
  • अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 के अनुसार, एक बार अशांत घोषित होने के बाद, क्षेत्र को तीन महीने की अवधि के लिए अशांत क्षेत्र के रूप में बनाए रखा जाता है।
  • विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों, समुदायों के बीच मतभेद या विवादों के चलते राज्यपाल या केंद्र सरकार किसी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित करती है।
  • राज्य सरकारें यह सुझाव दे सकती हैं कि इस अधिनियम को लागू किया जाना चाहिये अथवा नहीं, परंतु उसके सुझाव को मानने या न मानने की शक्ति राज्यपाल अथवा केंद्र सरकार के पास होती है।

विरोध में तर्क 

  • यह अधिनियम मानवाधिकारों की रक्षा और उन्हें बनाए रखने में विफल रहा है, यह 2004 में असम राइफल के सैनिकों द्वारा थांगजाम मनोरमा के कथित हिरासत में बलात्कार और हत्या के मामले में देखा जा सकता है।
  • सशस्त्र बलों को केवल संदेह के आधार पर गोली मारने का अधिकार है। गोली मारने की शक्ति जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है
  • यहां तक कि आपातकाल की स्थिति के दौरान भी जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार - अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 20 के तहत कुछ अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता। 
  • सशस्त्र बलों को दी गई मनमानी गिरफ्तारी और हिरासत की शक्ति अनुच्छेद 22 में निहित मौलिक अधिकार के विरुद्ध है, जो निवारक और दंडात्मक नजरबंदी के लिए सुरक्षा उपाय प्रदान करता है।
  • AFSPA के खिलाफ सबसे बड़ा मुद्दा सशस्त्र बलों को दी गई प्रतिरक्षा के कारण है। जिसके अनुसार सुरक्षा बलों के विरुद्ध कोई भी अभियोजन, वाद या अन्य कानूनी कार्यवाही केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी से ही की जा सकती है।
  • यह प्रतिरक्षा सशस्त्र बलों को कभी-कभी अनुचित निर्णय लेने की सुविधा भी प्रदान करती है।
  • वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाली समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में AFSPA को खत्म करने की सिफारिश की थी।

पक्ष में तर्क 

  • AFSPA केवल उस क्षेत्र पर लागू होता है, जहां देश के सामान्य कानून आतंक फैलाने वाले विद्रोहियों द्वारा उत्पन्न असाधारण स्थिति से निपटने के लिए अपर्याप्त पाए जाते हैं। 
  • यह तब लागू होता है, जब आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र में, पुलिस बल को आतंकवादियों से निपटने में अक्षम पाया जाता है। 
  • जिसके बाद आतंकवादियों से लड़ने और देश की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए सेना का प्रयोग करना अनिवार्य हो जाता है।
  • भारत के विद्रोही आंदोलनों में बाहरी तत्वों द्वारा भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़े गए है।
  • इनसे निपटने लिए बढ़ी हुई कानूनी सुरक्षा के साथ उग्रवाद विरोधी भूमिका में सशस्त्र बलों की तैनाती की आवश्यकता है।
  • देशी और विदेशी आतंकवादियों से निपटने के लिए सेना को विशेष शक्तियों की आवश्यकता होती है। 

आगे की राह 

  • सशस्त्र बलों को आतंकवाद और विद्रोही गतिविधियों का मुकाबला करने में स्थानीय समर्थन सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय आबादी के बीच विश्वास निर्माण करने के लिये आवश्यक कदम उठाने चाहिये।
  • सुरक्षा बलों और सरकार को मौजूदा मामलों को तेजी से सुलझाना चाहिए, और दोषियों पर मुकदमा चलाकर पीड़ितों के लिए त्वरित न्याय सुनिश्चित करना चाहिए। 
  • सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से निपटने के लिए मौजूदा अपारदर्शिता के स्थान पर एक पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
  • सरकार को AFSPA  को पूरे राज्य में लागू करने के बजाय केवल कुछ अशांत क्षेत्रों तक ही  सीमित करना चाहिए।
  • सरकार और सुरक्षा बलों को सुप्रीम कोर्ट, जीवन रेड्डी आयोग, संतोष हेगड़े समिति और एनएचआरसी द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिये।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR