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सर्वोच्च न्यायालय

प्रारंभिक परीक्षा –सर्वोच्च न्यायालय
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 2 - विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व। 

सन्दर्भ : प्रशांत कुमार मिश्रा और के.वी. विश्वनाथन का सर्वोच्च न्यायालय के नए न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा और वरिष्ठ अधिवक्ता के.वी. विश्वनाथन को सर्वोच्च न्यायालय के नए न्यायाधीशों के रूप में शपथ दिलाई। के.वी. विश्वनाथन सुप्रीम कोर्ट बार से सीधी नियुक्ति है।
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा केंद्र को इनके नामों की सिफारिश की गई थी।

कॉलेजियम प्रणाली, इसके कार्य और विकास

  • ‘कॉलेजियम’ सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय द्वारा विकसित एक प्रणाली है, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण से संबंध रखती है।
  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 सर्वोच्च और उच्च न्यायालय में क्रमशः न्यायाधीशों की नियुक्ति से सम्बद्ध हैं। परंतु कॉलेजियम प्रणाली संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा स्थापित नहीं है।

कॉलेजियम प्रणाली का विकास?

  • प्रथम न्यायाधीश मामला (1981)
    • इसके अंतर्गत न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश के सुझाव को अस्वीकार किया जा सकता है, बशर्ते इसके पीछे ठोस कारण हो। इस निर्णय के कारण अगले 12 वर्षों के लिए न्यायपालिका के ऊपर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित हो गई थी।
  • द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993)
    • कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यहां पर ‘परामर्श’ का अर्थ वास्तव में ‘सहमति’ है। इसमें ली जाने वाली राय मुख्य न्यायाधीश की व्यक्तिगत नहीं होगी अपितु सर्वोच्च न्यायालय के 2 वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली हुई संस्थागत राय होगी।
  • तृतीय न्यायाधीश मामला (1998)
    • राष्ट्रपति ने एक प्रेसिडेंशियल रेफरेंस जारी किया। इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय ने पांच सदस्यों के समूह के रूप में कॉलेजियम को मान्यता दी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होंगे।

कॉलेजियम के सदस्य

  • सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश इसके सदस्य होते हैं। वहीं उच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता उसके मुख्य न्यायाधीश करते हैं और उनके साथ चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश सदस्य होते हैं।
  • कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है और इसके बाद ही इस प्रक्रिया में सरकार की भूमिका आती है।

नियुक्ति प्रक्रिया

  • सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए वरिष्ठता को आधार बनाया जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को कॉलेजियम द्वारा अनुशंसा की जाती है।
  • राष्ट्रपति चाहे तो अनुशंसा को स्वीकार अथवा अस्वीकारभी कर सकता है। अस्वीकार की दशा में अनुशंसा वापस कॉलेजियम को लौटा दी जाती है। यदि कॉलेजियम अपनी अनुशंसा पुनःराष्ट्रपति को भेजता है तो राष्ट्रपति को उसे स्वीकार करना पड़ता है|
  • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति इस आधार पर की जाती है कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने वाला व्यक्ति संबंधित राज्य से न होकर किसी अन्य राज्य से होगा।
  • चयन का निर्णय कॉलेजियम द्वारा लिया जाता है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश भारत के मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले एक कॉलेजियम द्वारा की जाती है। 

कॉलेजियम प्रणाली से संबंधित प्रमुख चिंताएं

  • कार्यपालिका के भूमिका का अभाव: न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया में कार्यपालिका की कोई भूमिका नहीं रह जाती है। इसके अलावा, वे किसी भी प्रशासनिक निकाय के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं जिसके कारण सही उम्मीदवार की अनदेखी करते हुए गलत उम्मीदवार का चयन किया जा सकता है।
  • पक्षपात और भाई-भतीजावाद की संभावना: कॉलेजियम प्रणाली भारत के मुख्य न्यायाधीश पद के उम्मीदवार के परीक्षण हेतु कोई विशिष्ट मानदंड प्रदान नहीं करती है, जिसके कारण इसमें पक्षपात एवं भाई-भतीजावाद की संभावना बढ़ जाती है।यह न्यायिक प्रणाली की अपारदर्शिता को बढ़ा देती है, जो देश में विधि एवं व्यवस्था के विनियमन के लिये उचित नहीं है।
  • नियंत्रण और संतुलन (Principle of Checks and Balances) के सिद्धांत का हनन: इस प्रणाली से नियंत्रण एवं संतुलन के सिद्धांत का हनन होता है। भारत में व्यवस्था के तीनों अंग-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका आपस में संतुलन बनाए रखते हैं। कॉलेजियम प्रणाली न्यायपालिका की शक्तियों को अत्यधिक विस्तृत कर देती है।
  • पारदर्शिता का अभाव : इस प्रणाली को एक ‘क्लोज्ड डोर अफेयर’ के रूप में देखा जाता है, जहाँ कॉलेजियम के द्वारा चयन की प्रक्रिया के बारे कोई सार्वजनिक सूचना उपलब्ध नहीं होती।
  • प्रतिनिधित्व की असमानता: इस प्रणाली में लिंग असमानता चिंता का एक अन्य क्षेत्र है, जहाँ महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। 

स्रोत: the hindu

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